दिल्ली से सटे हरियाणा और उत्तरप्रदेश की सीमा पर किसान आंदोलन पिछले दो ढाई महीनों से चल रहा है। ग्यारहवें दौर की बातचीत तक के बाद भी इसका कोई हल नहीं निकल सका है। प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में चुटीले अंदाज में विपक्ष को घेरने के साथ-साथ किसान आंदोलन पर कटाक्ष किया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने साफ-साफ कहा है कि किसान आंदोलन वास्तविक किसानों की बजाय आंदोलनजीवियों द्वारा चलाया जा रहा है। किसान आंदोलन एक प्रायोजित आंदोलन है। यहां तक कहा कि आंदोलनजीवी देश को अस्थिर करना चाहते हैं। हमें ऐसे लोगों से बचने की आवश्यकता है।
ग्यारह दौरों की बातचीत के बाद भी कोई हल नहीं
साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का उदाहरण देते हुए बताया कि मनमोहन सिंह जी चाहते थे कि बड़ी मार्केट को लाने में जो दिक्कतें थी उसे समाप्त किया जाना चाहिए। हमने ये तीन कृषि कानून लाकर किसानों को बड़ा मार्केट देने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश में एमएसपी लागू है, लागू था और लागू रहेगा। किसानों से अपील भी की कि आंदोलन खत्म करें।
कृषि कानूनों के तीनों प्रावधान के खिलाफ सड़क से संसद तक विरोध हो रहा है। किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार किसानों के साथ अन्याय कर रही है और यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक कि सरकार तीनों कानूनों को वापस नहीं ले लेती।
ग्यारह दौर की वार्ता के बाद भी आज किसान सड़क पर है। छिटपुट संघर्ष के अतिरिक्त आंदोलन शान्तिपूर्ण ही रहा है। हालांकि, कई बार आंदोलन में टकराव या बाधा पैदा करने की कोशिश की गयी परन्तु किसानों ने अपने कड़े अनुशासन से उसे काबू करने में कामयाब रहे। किसानों ने 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड निकालकर शक्ति प्रदर्शन ज़रूर किया लेकिन परेड छिटपुट संघर्ष के अतिरिक्त शान्तिपूर्ण ही रही। इसके बाद 6 फरवरी को किसानों ने पूरे देश में चक्काजाम किया। इसका प्रभाव भी कई जगहों पर देखने को मिला।
सरकार बता रही फायदा, विशेषज्ञ कह रहे थाली से रोटी तक गायब हो जाएगी
सरकार लगातार यह कह रही है, कि यह आंदोलन देश को अस्थिर करने के लिए किया जा रहा है। कृषि कानून लागू होने से बिचौलियों पर असर पड़ेगा। इसलिये यह आंदोलन बिचौलियों द्वारा चलाया जा रहा है। कृषि कानून पर विश्लेषण की बजाय मैं कुछ चीजों पर प्रकाश डालना चाहूंगा। जैसे नोटबंदी और जीएसटी से देश का कितना फायदा हुआ?
इसके साथ-साथ कई प्रतिष्ठानों की बोली लगायी गई। जिसे आप लगातार देख रहे हैं और आने वाले समय में आशंका भी देख रहे हैं। जैसे रेल, एयरपोर्ट और टेलीकॉम सेक्टर। जिसे अर्थव्यवस्था सुधारने का मास्टर प्लान बताया गया था। मगर होगी सीधे उसके उलट। अर्थव्यवस्था की हालत सुधरने का नाम ही नहीं ले रही। रूपये डॉलर के मुकाबले दिन ब दिन गिरती ही जा रही है। बेरोजगारी की दर बढ़ती ही जा रही है।
महंगाई चरम पर है। पड़ोसी देशों में पेट्रोल की कीमत 50 से 60 रूपये लीटर है। जबकि भारत में इसकी कीमत शतक पार करने की कोशिश में लगी हुई है। इसपर भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रह्मण्यम् स्वामी जी टिप्पणी भी कर चुके हैं। कहीं अगर कृषि कानून का प्रभाव भी इसी प्रकार रहा तो गरीबों की थाली में रोटी मुश्किल हो जाएगी।
किसानों पर कोई कानून थोपने की बजाय उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए
दुलारी और राम प्यारे केवल गेहूं का उत्पादन करते हैं। जब अपना गेहूं किसी बाज़ार में बेचते हैं तो औने-पौने दामों में बेचने पर मजबूर होते हैं। मगर उपभोग की अन्य वस्तुओं को खरीदने में उनकी सांसें ऊपर नीचे होने लगती है। खुदा न खास्ता अगर ये सिर्फ कृषि पर ही निर्भर रहे तो दुलारी और रामप्यारे को कर्ज भी लेना पड़ सकता है। ऐसा केवल रामप्यारे या दुलारी के साथ नहीं होगा बल्कि उस बड़ी आबादी के साथ भी होगा, जो अपने छोटे खेतों से अपने जीवन जीने की ज़द्दोज़हद कर रहे हैं।
कोरोना काल में हर व्यक्ति की हालत उस टूटी खाट की भांति है, जिसका उपयोग भी ज़रूरी है और उसे बचाये रखना भी। इसलिये ज़रूरी है कि देश के प्रधानमंत्री को पहले देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती के साथ-साथ रोजगार सृजन और बाजार को नियंत्रित करके सरकारी प्रतिष्ठानों को पल्लवित पोषित करने की आवश्यकता है। ऐसा तो बिल्कुल नहीं है कि सरकारी प्रतिष्ठान सदैव घाटे में ही रहा हो।
इसी प्रकाश देश के अन्नदाता को इस समय सहयोग और अनुदान की आवश्यकता है। सिवाय कृषि कानून थोपने के सरकार को किसान संगठनों से पहले बातचीत करनी चाहिए थी। किसानों को आंदोलन की बजाय देश के विकास में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। कृषि कानून पर जितनी जल्दी हो सरकार को निर्णय लेकर आंदोलन समाप्ति की तरफ ले जाना चाहिए।