मेरे कुछ दोस्त लंच में रोज बिस्किट, समोसा खाते हैं। वो रोटी नहीं खाते हैं, क्योंकि रोटी महंगी है। वे हॉस्टल में रहते हैं तो 3200/ रूपये महीने की मेस की फीस है, तो उन्होने हॉस्टल की मेस छोड़ रखी है। कभी कभी तो वे पूरे दिन में बस 1 कचोरी या ब्रेड पकोड़ा खाते हैं।
आप सोच रहे हैं ! वो ऐसा क्यों करते हैं? जाहिर सी बात है कि वो अपने पैसे बचाते हैं। क्योंकि किसी के परिवार में 2 बहनें हैं तो किसी के परिवार में 3 बहनें हैं, उन्होंने ऐसे ही बातचीत के दौरान एक बार मुझे खुद बताया की उनकी शादी उन्हें ही करनी है। इसके लिए उन्हें पैसे बचाने जरूरी हैं वरना शादी टूट जाएगी। हमारे घरों में इतनी कमाई नहीं है कि हम उनकी शादी अच्छे से कर सकें।
अक्सर कई बार रात के दौरान उनके पेट में बहुत ज्यादा दर्द होने लगता है, लेकिन वे कुछ कर नहीं कर सकते पहले तो वे दर्द को सहते रहते हैं और दर्द जब असहनीय बन जाए तब स्टूडेंट हेल्थ सेंटर से बस दवाई लेते रहते हैं। सामान्यतया मेरे सारे अधिकांश दोस्त SC/ ST समुदाय के हैं, सामान्य वर्ग के लोग भी गरीब हैं, पर इतने नहीं कि उन्हें बिस्किट, नमकीन खाकर अपना पेट भरना पड़े।
जाति हमारे देश में एक अहम सवाल ?
हमारे साथ के कुछ SC/ ST समुदाय के स्टूडेंट अमीर भी हैं, जिनके घरवाले सरकारी नौकरी में हैं। जो सारे दिन दिखावे की ज़िन्दगी जीते हैं। उन्हें अपने समाज एवं उसकी परेशानियों से कोई मतलब नहीं है, उन्हे तो अपनी जाति बताने पर भी शर्म महसूस होती है।
मुझे कभी-कभी लगता है कि SC/ ST समाज में भी क्रीमी लेयर होनी चाहिए, ताकि जिनको नौकरी मिल गई है वे आरक्षण के द्वारा दोबारा नौकरी ना ले सकें और जिससे समाज के अन्य गरीबों को भी उनका हक मिल सके। सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को भी आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए।
यह सब बातें हम अपने दोस्तों को भी नहीं बता सकते क्योंकि वो हमारा मजाक उड़ाते हैं और हम लड़कियों से तो बात भी नहीं करते हैं, क्योंकि अगर किसी ने हमें बोल दिया अपनी औकात में रहो तो हम क्या करेंगे? हम में तो इतनी भी हिम्मत नहीं की उनके आगे कुछ बोल सकें।
कुछ लड़कियां बोलती जरूर हैं कि हम इंसान की सोच देखते हैं, कपड़े नहीं। पर पता नहीं उन्हें मेरे गरीब दोस्त पसंद क्यों नहीं आते हैं। कई बार मुझे उनकी मनोदशा देख कर रोना आ जाता है, जब मेरे किसी दोस्त के माता- पिता या उनकी बहन फोन करके उन्हें पूछती हैं कि खाना खा लिया ? और वो पूछती हैं क्या खाया? तो हम मनगढ़त सब्जी के नाम बताते हैं और फोन रख देते हैं।
जाति और आर्थिक तंगी की हीनभावना
मेरे सभी दोस्त ना कभी कॉलेज की फ्रेशर पार्टी में शामिल होते हैं, ना ही किसी फेयरवेल में क्योंकि उन कार्यक्रमों में सबको पैसे देने पड़ते हैं। उनमें जाने के लिए साथ ही में महंगे कपड़े और जूते भी लेने पड़ते हैं। हमारे सहपाठी हमसे बोलते हैं कि तुम बहुत बोरिंग हो, क्लास का साथ भी नहीं देते हो उस समय बस हम अपनी नज़रे नीचे झुकाकर सुनते रहते हैं। ना हम कभी रेस्तरां में गए हैं, ना कभी कॉफी डेट पर। कभी- कभी तो रिक्शा के पैसे बचाने के लिए हम कई किलोमीटर पैदल तक चलते हैं।
पिछले 3 साल से हमारी SC /ST Scholarship भी नहीं आई है, और हमें उम्मीद है कि वह अब आएगी भी नहीं, अब तो उस स्कॉलरशिप के फॉर्म निकलने ही बंद हो चुके हैं।
समाज में समानता का आभाव
यह लेख मैं सरकार से कुछ मांगने के लिए नहीं लिख रहा हूं। मैं तो बस इसलिए यह बता रहा हूं कि हर लड़का कुत्ता नहीं होता। मै जब YouTube पर कुछ लड़कियों के वीडियो देखता हूं तो मेरा दिल दुखता है, थोड़ा नहीं बहुत ज़्यादा दुखता है। वो लड़कियां वीडियो में बोलती हैं कि “लड़को को सारे हक मिले हुए हैं, लड़कियों को कुछ भी नहीं मिला हुआ है, Bloody डॉग्स, उन्हे ज़िन्दगी में कुछ करना ही नहीं पड़ता।”
वो लड़का जो बिस्किट के सहारे अपनी ज़िन्दगी जी रहा है। वह अपनी बहन से बहुत प्यार करता है, कई बार वो उसे इसलिए भी डांट देता है, क्योंकि जब उसकी बहन को लगता है कि तेरी आवाज इतनी कम क्यों आ रही है? बीमार है क्या? हालांकि वह बीमार होता है, फिर भी वह अपनी बहन को बोल देता है कि दिमाग मत खराब करो मैं ठीक हूं, ताकि वो परेशान ना हो। वैसे भी विटामिन b12 की कमी से उसमें चिड़चिड़ापन भी आ सकता है। अगर यह बात कोई सोशल मीडिया पर डाल दे, तो उसे समाज में पितृसत्तात्मक सोच का तमगा भी मिल सकता है।
ऊपर से पढ़ाई का इतना बोझ, बिना किताबों के पढना आसान नहीं है। किताबें बहुत महंगी आती हैं, लाइब्रेरी वाले हमें किताबें देने में नखरे करते हैं, कई बार लाइब्रेरी में किताबें होती भी नहीं हैं। एक और महत्वपूर्ण बात की कॉलेज के कई प्रोफेसर महीने में केवल 7 घंटे काम करते हैं और सरकार से हर महीने 1.5 लाख का वेतन लेते हैं। वैसे भी अब कॉलेजों में किताबे कूड़ा हो गई हैं, अब सारी पढ़ाई कोचिंग सेंटरों से होती है जिसकी फीस हम पूछने से डरते है।
समाज में दिखावे की आड़ में पिसता आम वर्ग
आपको क्या लगता है कोई बहन अपने भाई के लिए यह सब करेगी ! उसका भाई केवल बिस्किट खा कर जी रहा है ताकि उसकी बहन शादी में 5,000/ की मेहंदी लगवा सके, 20,000 का लहंगा पहन सके, सिर्फ 1 बार और 1 दिन में कुछ घंटों के लिए। वह अपनी बहन को दहेज में अपाची बाइक दे सके क्योंकि स्पलेंडर अब ओल्ड फैशन हो चुकी है।
इसमें गलती उसकी बहन की भी नहीं है, उसे भी समाज में अपना स्टैंडर्ड कायम करना है तो गलती है हमारे समाज की, जहां इतनी महंगी शादी, बकवास रस्में निभानी पड़ती हैं। हर तरफ बस एक दिखावे की दुनिया है।
हमारे समाज में लड़कों के लिए नौकरी करना बस एक मजबूरी है और लड़कियों के लिए अपना पैशन फॉलो करना ही बड़ी बात है। समाज में मजबूरी से भागने वाले को नालायक कहते हैं, और पैशन ना फॉलो करने वालों को पता ही नहीं क्या कहते हैं? मेरे दोस्त लड़कियों की बहुत इज्जत करते है, उन्हे ‘Misogyny’ (स्त्रियों से द्वेष रखना) ‘Musculanity’ टॉक्सिक का अर्थ भी पता है लेकिन उनकी सोच बिलकुल भी पितृसत्तात्मक नहीं है।