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सिस्टम की हकीकत बयां करती वेब सीरीज़ पताललोक

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पाताल लोक वेब सीरीज़ में हाथीराम चौधरी का कैरेक्टर निभाने वाले जयदीप अहलावत

महाभारत हिन्दू धर्म का एक ऐसा इतिहास या कहें ग्रंथ! सीरियल के रूप में भी जो एक स्वस्थ मनोरंजन के साथ ज्ञान की एक बेहतरीन ख़ुराक भी सही तरीक़े से मुहैया  करवाता है। भिन्न-भिन्न मौक़ो पर मुझे महाभारत के संवाद और सीन याद आते हैं।

जैसे अभी हाल ही में रिलीज़ हुई वेब सीरीज़ “पाताललोक” को जब देखा तब मुझे महाभारत के चार प्रमुख पात्र दुर्योधन,कर्ण, दुशासन और शकुनी मामा के वह संवाद याद आ गए, जब दुर्योधन पांडवो का अज्ञातवास तोड़ने के लिए मत्स राज्य पर हमला करने की योजना बना रहा होता है।

महाभारत के पात्रों की याद दिलाती ‘पाताललोक’

तब मामा शकुनी उसे राय दे रहें होते हैं और वह अपनी बात कहते ही हैं कि तभी अंगराज कर्ण मामा शकुनी से कहता है कि मामा आप कभी तो सीधे बोल, बोल लिया करिए! जिसके जबाव में  मामा शकुनी कहते हैं कि “सीधे बोल बोलने वाला सतयुग तो कबका चला गया अंगराज।”

वो आगे कहते हैं ये तो टेड़े बोल बोलने वाला द्वापर हैं इसमें बात कुछ कहो और अर्थ कुछ और निकले और जीना चाहते हो भांजे तो ये कला भी सीख ही लो।

खैर इस कला में अंगराज कर्ण निपुण थे या नहीं ये अलग बात है लेकिन वेब सीरीज़ ‘पाताल लोक’ ने मामा शकुनी की इस कला की जानकारी देने की एक कोशिश तो की ही है, क्योकि आज जो बातें कहते हुए मुख्य धारा मीडिया की रूह हलक़ में अटक जाती है उन सभी बातों को मामा शकुनी की कलानुसार वेब सीरीज़ पाताललोक ने बहुत ज़बरदस्त तरीक़े से कहा है।

क्लास डिफ़्रेन्स का नमूना पाताललोक

वेब सीरीज़ ‘पाताललोक’ ने क्लास डिफ़्रेंस को बहुत अच्छी तरह से पेश किया है कि बच्चों के मन में हीन भावना और आपराधिक प्रवर्त्ति पैदा होती कहां से है? इस बात का उदाहरण वेब सीरिज़ के मुख्य पात्र इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी का बेटा है,जो एक बहुत ही शानदार कान्वेंट स्कूल में पढ़ता है लेकिन वह इकलौता ऐसा बच्चा होता है, जो अपनी कार से स्कूल नहीं आता,

उसकी इंगलिश भी अच्छी नहीं होती और वो उस माहौल में एडजस्ट नहीं हो पाता, क्योंकि अन्य छात्र इंस्पेक्टर हाथीराम के बेटे को अपने बराबर का समझते ही नहीं है,जिसकी वजह से वह मन ही मन हीन भावना का शिकार होता रहता है।

बालशोषण से बाल आपराध तक की कहानी

यही हीन भावना उसके अन्दर दिन प्रतिदिन गुस्से को पैदा करती है, फिर एक दिन उसके सहने की ताकत जवाब दे देती है। इस तरह सीरीज़ के अन्य बाल किरदार जैसे विशाल त्यागी का अपना सगा चाचा ज़मीन की लालच में उसकी तीन बहनों के साथ बलात्कार करवा कर बड़े काम को अंजाम देता है,

जिसके बाद विशाल त्यागी चाचा के तीनो बेटों की हत्या कर बड़े काम का बदला पूरा कर लेता है और विशाल त्यागी से हथौड़ा त्यागी बन जाता है। इसके अतिरिक्त चीनी के साथ भी बचपन से शोषण होता है, जिससे निजात पाने के लिए ही वह संजीव मेहरा मर्डर केस में शामिल होता है।

इन सभी बाल किरदारो के साथ बचपन से ही बुरा होता है, जिसके फ़लस्वरूप उन्हें वह सब करना पड़ता है, जो वह नहीं करना चाहते।

कास्ट सिस्टम से ग्रसित समाज की कलात्मक प्रस्तुति

इसी तरह वेब सीरीज़ पाताललोक ने क्लास डिफ़्रेन्स के साथ दूसरी महत्वपूर्ण बात कास्ट सिस्टम को भी बहुत कलात्मक अंदाज़ के साथ बयान किया है।

पंजाब जैसे राज्य में आज भी किस तरह से छोटी कास्ट वालो को बात-बात पर खूबसूरत से खूबसूरत गालियों से नवाज़ा जाता है यानि जितनी हो सके उनकी उतनी तौहीन की जाती है। इस तौहीन का फल यह निकलता है कि ‘तोप सिंह’ जैसा सीधा आदमी अपराधी बन जाता है।

सुख्खा, जो तोप सिंह को ट्रेन करता है उसका सर धड़ से ऐसे अलग किया जाता है, जैसे दूध में से मक्खी निकाली जाती है। बड़ी कास्ट का रुतबा यहीं पर ख़त्म नहीं होता! तोप सिंह के न मिलने पर उसकी मां के साथ कैसे दस लोग बारी-बारी से शोषण करते हैं,

शोषण का सीन और मंत्री की जीप में रखा गंगाजल ‘कास्ट सिस्टम’ की मज़बूत जड़ो के बारे में अधूरा ज्ञान पूरा कर देता है कि आज भी समाज इस बीमारी से कितना ग्रसित है? ठीक इसी तरह  वेब सीरीज पाताललोक ने अल्पसंख्यक समुदाय को जिस से टारगेट कर उनको निशाना बनाया जाता है, इस बात को भी इशारो में बताने की बेहतरीन कोशिश की है, जिसका एक ज़बरदस्त उदाहरण सीरीज़ का पात्र ‘कबीर एम’ है।

अल्पसंख्यकों के साथ होते भेदभाव की कहानी

कहानी में  ‘कबीर एम’ के पिता ने उसके लिए एक सर्टिफिकेट बनवाया होता है कि इसका ख़तना नहीं बल्कि आपरेशन हुआ है, क्योंकि उसके पिता के दिल में यह डर होता है कि जिस तरह ‘बड़े के गोश्त’ की वजह से उसके बड़े बेटे की हत्या कर दी जाती है कहीं इसी तरह कबीर एम की भी हत्या न हो जाए,

जो डर कबीर एम के पिता को था वही डर पूरा अल्पसंख्यक समुदाय लेकर हर रोज़ जीता है कि कहीं कोई घटना उनके परिवार के साथ न हो जाए। पाताललोक अल्पसंख्यक समुदाय के मन में मौजूद इसी डर की ओर इशारा कर रही है।

इसके साथ अल्पसंख्यक समुदाय की ओर विभाग में जिस तरह का भेदभाव होता है और ‘कट्टा’ कहकर किस तरह से सम्बोधित किया जाता है। इस चीज़ को भी सीरीज़ में बख़ूबी दिखाया गया है कि ज़्यादा संख्या भेदभाव करने वालों की होती है और कम साथ देने वालों की।

अल्पसंख्यक समुदाय या किसी भी समाज की जीत इसी बात पर है कि वह शिक्षा पर सही से ध्यान दें, तभी उसे सम्मान मिल सकता है, जिसका अच्छा उदाहरण ‘इंस्पेक्टर अंसारी’ का किरदार है, जो नीचे से उठकर पहले इंस्पेक्टर और बाद में  ‘यूपीएससी’ का एग्ज़ाम क्लीयर करता है।

LGBT समुदाय की परतों को उघाड़ती सीरीज़

‘पाताललोक’ में एलजीबीटी समाज की मुश्किलों को भी बख़ूबी दिखाया है कि कैसे चीनी को पहले लड़की समझकर उसे महिला वार्ड में रखा जाता है लेकिन जब यह बात खुलती है की चीनी एक एलजीबीटी समुदाय से है, तब किस तरह से उसके साथ मारपीट की जाती है।

दरसल ये लातें पड़ तो चीनी को रहीं थीं लेकिन असल में पीटा पूरा एलजीबीटी समाज  जा रहा था। ठीक इसी तरह रोज़ किसी न किसी की मार वे खाते ही हैं, क्योंकि इस समाज में एलजीबीटी होना आज भी बहुत शर्म का मुद्दा है।

इन्हीं शोषण भरी लातों से बचने के लिए वह विशाल त्यागी के साथ रहता है, क्योंकि उसे भरोसा रहता है कि शायद काम खत्म होते ही उसे पैसे मिल जाएंगे और वह ऑपरेशन करवाकर एक ख़ुशहाल ज़िन्दगी जी सकेगा?

पत्रकारिता से पुलिस तक सबकी नब्ज़ पकड़कर चलती कहानी

इन सबके साथ सीरीज़ में पुलिस इन्वेस्टिगेशन को भी ज़बरदस्त तरीक़े से दिखाया गया है कि किस तरह से सिस्टम में मौजूद बड़ी मछलियां हाथीराम जैसी छोटी मछलियों के साथ कैसे खेल खेलती हैं। जिन्हें पता तो सब होता है कि केस किसे दिया जा रहा है। केस हल हो पाएगा या नहीं?

फिर भी केस दिए जाते हैं, क्योंकि उनके फ़ेल होने की स्थिति में बड़ी मछलियों के आका उन्हें भरपूर इनाम से नवाज़ देंगे। इसके विपरीत इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी जैसी छोटी मछली इस बात से ही खुश हो जाती है कि उसे एक हाई प्रोफ़ाइल केस मिल गया है।

वहीं, दूसरी तरफ संजीव मेहरा, जो सिर्फ एक मोहरे से ज़्यादा और कुछ नहीं होता उसे भी यह सोचने का मौका मिल जाता है कि आज तक वह जैसी पत्रकारिता कर रहा होता है यदि उससे अलग हटकर दूसरे टाइप की पत्रकारिता की जाए तो कैसा रहेगा?

संजीव मिले मौके का लाभ उठाकर अपना रास्ता बदल देता है। वहीं इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी इस ग़ुमान में होता है कि इस हाई प्रोफ़ाइल केस को सॉल्व करने के बाद उसे भी तरक्की मिल जाएगी लेकिन यह सब एक भ्रम से ज़्यादा और कुछ नहीं होता है,

सिस्टम की तरफ से चलता दो तरफा खेल

क्योंकि खेल तो दोनों तरफ से सिस्टम की बड़ी मछलियां ही खेल रही होती हैं और इस बात का यह सबूत है कि जैसे ही इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी से चूक होती है तब फ़ौरन ही तरक़्की के बजाए उसे सस्पेंशन मिलता है और उसकी जांच  सीबीआई के हाथों में दे दी जाती है।

अब यहीं पर से महाभारत का वह दृश्य जिसमें दुर्योधन, कर्ण, दुशासन और मामा शकुनी संवाद कर रहे होते हैं कि पांडवों का अज्ञातवास कैसे तोड़ा जाए जबकि उन्हें यह बात बहुत अच्छे से मालूम है कि पांडव मत्स राज्य में अज्ञात वास काट रहे होते हैं।

तब मामा शकुनी दुर्योधन को राय देते हैं कि ‘भांजे दुर्योधन तुम जाकर जीजा महाराज को अर्ध सत्य बताओ कि कीचक वध के उपरान्त मत्स राज्य अनाथ हो गया है, अब वह हस्तिनापुर की छांव तले आना चाहता है और इस कार्य को तुम स्वंय करना चाहते हो,फिर गंगापुत्र भीष्म, आचार्य द्रोण और कुल गुरु कृपाचार्य भी तुम्हारे प्रस्ताव का विरोध नहीं कर पाएंगे।’

जैसा सच दुर्योधन अपने पिता को बताता है वैसी ही जांच वेब सीरीज़ पाताललोक में सीबीआई भी करती है और जो नहीं होता वह भी बताती है। अपने सस्पेंशन से न टूटकर इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी अर्धसत्य को पूर्ण सत्य बनाने की तलाश करने में कामयाब हो जाता है और इस कामयाबी का पुरस्कार उसकी बची हुई जान और नौकरी पर बहाली होती है।

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