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महिलाओं में छुपा हुआ पितृसत्ता का वीभत्स रूप

महिलाओं में छुपा हुआ पितृसत्ता का वीभत्स रूप

दिल्ली के ही कुछ युवा लड़कों के एक इंस्टाग्राम ग्रुप चैट का स्क्रीनशॉट जिसे सोशल मीडिया से लेकर बड़े-बड़े न्यूज़ चैनलों पर ‘बॉयज लॉकर रूम’ के नाम से जाना गया, उसका हाल ही में सामूहिक बलात्कार को बढ़ावा देने के मामले में पर्दाफाश हुआ। कथित तौर पर किशोर ( 15 से 18 वर्ष की आयु वाले ) लड़के इस ग्रुप में लड़कियों की तस्वीरें साझा करते हुए पाए गए, जिनमें से कुछ मात्र 15-16 साल की उम्र के ही थे और उनके ऊपर लड़कियों की आपत्तिजनक तस्वीरें साझा करने, महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने और लड़कियों के सामूहिक बलात्कार की योजना के बारे में बातें करने का आरोप था।

इस मुद्दे एवं महिलाओं से जुडी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सोशल मीडिया पर लोग जमकर बरसे और अधिकतर यूजर्स ने पुलिस से आग्रह किया कि अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए , हालाँकि बाद में इसमें काफी किन्तु और परन्तु जुड़े और कहानी का एक दूसरा सिरा भी निकल कर आया।

#Boislockerroom स्क्रीनशॉट के वायरल होने के कुछ समय बाद, हमने अपने यूथ लीडर्स (यूथ लीडर वे बच्चे हैं जिन्होंने प्रोजेक्ट खेल के कार्यक्रमों को पास किया है और अब हमारे साथ पार्ट टाइम काम करते हैं) के साथ संक्षिप्त चर्चा की जिसका मुख्य बिंदु था कि वे लोगों से आने वाली प्रतिक्रियाओं के बारे में कैसा महसूस कर रहे हैं?

हमने विशेष रूप से अपनी चर्चा में ‘ये लड़के’ और ‘आजकल के लड़के’ और ‘लड़के हमेशा…’ पर उनके विचारों पर चर्चा को केन्द्रित रखा, आखिरकार ‘ये लड़के’ कहां से आ रहे हैं और यह किसकी ज़िम्मेदारी है ? इसके बाद हुई बातचीत में परिवार, स्कूलों, समाज और मीडिया की भूमिका के बारे में चर्चा हुई (यह अब तक के हमारे प्रभाव को देखने के लिए वास्तविकता की एक जाँच जैसा भी था)

पितृसत्ता व महिलाओं में पितृसत्ता का रूप

हम जब कभी भी महिला-पुरुष समानता या महिला अधिकारों से सम्बंधित मुद्दों को समझने की कोशिश करते हैं तो उसमें कई अवधारणाओं का ज़िक्र निकल कर सामने आता है। उसी में से एक है- पितृसत्ता, पितृसत्ता एक ऐसी व्यवस्था की तरफ़ इशारा करती है जो पुरुष प्रधान सत्ता होती है यानी उन्हें घर व समाज में उच्च माना जाता हैं। वे राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक अधिकारों व अन्य ज़रूरी मौलिक अधिकारों पर नियंत्रण जमाये रखते हैं व पारिवारिक दृष्टिकोण में महिलाओं और बच्चों के ऊपर अधिकार जमाते हैं।

माहौल, जाति, समाज व रूढ़िवादी परम्पराएं पितृसत्ता को अधिक ताक़तवर बनाती हैं । भारत में पितृसत्ता को पुरुषों की तरफ ही केन्द्रित करके देखा जाता रहा है, जबकि उसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में समझने की भी ज़रूरत है। पितृसत्ता एक व्यवस्था के रूप में होती है जिसके पीछे एक विचारधारा होती है। हम जब अपने समाज, आस-पास व अपने घरों में गौर करेंगे तो पाएंगे कि हमारे परिवार एवं समाज में महिलाएं भी पितृसत्ता की एक शाखा के रूप में उभर कर सामने आती हैं।

इसके तहत कई महिलाएं पितृसत्ता को मजबूत बनाये रखने में मदद करती हैं बल्कि इसे बढ़ावा भी देती हैं और अपने प्रभाव के अनुसार लोगों को नियंत्रित करने की कोशिश भी करती हैं। इसका निशाना ख़ास तौर पर किशोर/किशोरियाँ बनते है और उनके विचार, कपड़े, कहीं आने-जाने, काम को लड़के-लड़की के अनुसार बाँटने आदि के ज़रिए नियंत्रित व उन पर की गई टीका-टिप्पणियों के द्वारा किया जाता है।

वास्तविकता की जांच

जैसा कि हमने कहा, हम #Boislockerroom और उससे जुड़े मुद्दों पर चर्चा कर रहे थे और हमारी दो महिला यूथ लीडर्स, जो सरकारी शेल्टर होम में पली-बढ़ी हैं और लगभग हमेशा महिलाओं से घिरी रही हैं, जब उन्होंने अपने अनुभव बताने शुरू किये कि अपनी पूरी ज़िन्दगी महिलाओं के बीच बिताते हुए उन्होंने आज तक सिर्फ महिलाओं में ही पितृसत्ता का वीभत्स रूप देखा है।

जिस तरीके से स्टाफ ने अपने विचारों को थोपने की कोशिश की, उससे उन्हें उनकी उपस्थिति सिर्फ विषाक्त ही लगी । उन्होंने अपने जीवन से कुछ घटनाओं को साझा करते हुए ध्यान दिया कि महिलाएं भी अपनी पितृसत्तात्मक मानसिकता के माध्यम से विषाक्तता को बढ़ावा देने में शामिल हैं। जो एक लड़की के शरीर, उसके विचारों और उसके कार्यों को नियंत्रित करना चाहती हैं इसी सोच के साथ उन्होंने निर्णय लिया कि वीडियोज के ज़रिए, वो अपनी बात और लोगों तक पहुंचाएंगी।

परिस्थितियों के अनुसार महिला पितृसत्ता के अनेक रूप

बस उस के बाद से ही उन्होंने इस पर काम करना शुरू कर दिया और विडियोज़ की सीरीज़ ही बना डाली, जहाँ पर उन्होंने महिला पितृसत्ता के रूप को उजागर करने की कोशिश की और बड़े सरल तरीके से हर विडियो के अंत में एक सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सन्देश भी डाला जिसे वे हमेशा से समाज की तथाकथित आंटियों से कहना चाहती थीं।

यह 15 सेकंड तक के विडियोज़ लोगों को इस बारे में आसानी से समझने व गौर करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं कि कैसे यह महिला पितृसत्ता का रूप परेशानी का सबब बन जाता है जैसे कि एक विडियो के दो दृश्यों में दर्शाया गया है, वो कुछ इस तरह है कि पहले एक दृश्य में एक लड़की 1 रोटी खा रही है और एक महिला (आंटी) उससे तंज़ देने वाले लहजे में कह रही है कि ‘थोड़ा और खालो, लड़कों को भरे गाल वाली लड़कियाँ अच्छी लगती हैं।

वहीं ठीक वीडिओ के दूसरे दृश्य में ‘एक अन्य लड़की 4 रोटी खा रही है तो उस पर एक महिला की टिप्पणी कुछ इस प्रकार है कि ‘थोड़ा कम खाओ, लड़कों को पतली लड़कियाँ पसंद आती हैं।’ इस वीडिओ के अंत में एक सन्देश है कि ‘अगर मुझे एक रोटी की भूख है तो मैं चार रोटी क्यों खाऊं, और अगर चार रोटी की भूख है तो एक रोटी थोड़े ही खाऊँगी।’

ऐसे ही एक और अन्य विडियो में लड़के-लड़की को आपस में बात करते हुए देखने पर ‘आंटी’ लड़की को बॉयफ्रेंड होने का ताना मारती हैं। एक दूसरे विडियो में लड़की मोबाइल फोन देखते हुए मुस्कुराती है तो ‘आंटी’ कहती हैं कि ज़रूर कोई ‘चक्कर’ चल रहा है और दूसरी तरफ़ जब वो फ़ोन पर थोड़ा गंभीरता के साथ मेसेज कर रही होती है तो ‘आंटी’ की टिप्पणी आती है कि ज़रूर ब्रेकअप हुआ होगा।

अपने फैसलों को दूसरों पर थोपना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन

एक विडियो में लड़की स्कूल ड्रेस पहन कर स्कूल में दाखिल होती है और स्कूल टाइम खत्म होने पर घर के कपड़ों में बाहर निकलती है, तभी ‘आंटी’ की टिप्पणी होती है कि ज़रूर किसी लड़के से मिलने जा रही होगी। एक और विडियो में लड़की ढीले-ढाले कपड़े पहने हुए है तो ‘आंटी’ मज़ाक उड़ाती हैं कि ऐसे तो कोई लड़का नहीं पटेगा और वहीं जब कोई लड़की शॉर्ट्स में दिखती है तो ‘आंटी’ उसकी टांगें दिखने पर उसे ताना मारती हैं। लगभग हर जगह कुछ ‘आंटी’ रोमांस या बॉयफ्रेंड का ताना मारती हैं, जैसे कि लड़कियों की अपनी कोई पसंद या चयन खुद की खुशी के अनुसार हो ही नहीं सकता।

हमारे यूथ लीडर्स को लगता है कि सोशल मीडिया एक मज़बूत मंच हो सकता है जहाँ पर वो अपनी बात आसानी से अधिकतर लोगों तक पहुंचा सकते हैं। उनको यह भी लगता है कि विडियोज़ का फॉर्मेट छोटा व शैली हास्य होने के कारण वे ज़्यादा यूजर्स तक अपनी पहुँच बना सकते हैं, साथ ही साथ लोग इसे साझा भी कर पाएंगे।

परिस्थितियों को चुनते हुए व इनमे ‘आंटी’ के रूप में अभिनय करते हुए और पहले से जिए हुए लम्हों को फिर से दोहराते हुए इन लड़कियों को इस बात का गहरा अहसास रहा कि हमें बड़े होकर किस तरीके की महिला नहीं बनना है। हमारे यूथ लीडर्स की तरफ़ से अगली विडियो सीरीज़ विषाक्त पुरुषत्व (toxic masculinity) पर आधारित होगी।

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