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“दुर्भाग्यपूर्ण हैं रिहाना के ट्विट पर आने वाली प्रतिक्रियाएं”

पिछले ढाई महीनों से किसान अपने घरों को छोड़ दिल्ली के सिंघु, गाज़ीपुर और टिकरी बॉर्डर पर सरकार द्वारा लाये तीन कृषि कानूनों की विरोध में आंदोलन कर रहे हैं।

इस बीच उन्होंने क्या कुछ नहीं सहा? चाहे वह ‘मौसम की मार हो या सरकार की अत्याचार’। बता दें बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, आंदोलन के दौरान अब तक 53 से भी ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी है। हालांकि, यह आंकड़े थोड़े पुराने हैं और मौजूदा संख्या 150 से ऊपर जा चुकी है। बावजूद इन सबके किसान अब भी सीमाओं पर डटे हुए हैं और आंदोलन कर रहे हैं।

इंटरनेशनल सिलिब्रिटीज़ के साथ मानवाधिकार संगठनों ने भी आंदोलन को समर्थन दिया

किसान और सरकार के बीच अब तक 11 वें दौर तक बात चीत हो चुकी है लेकिन अबतक इसका कोई हल नहीं निकला। एक तरफ जहां सरकार अपनी बात पर अड़ी है, वहीं दूसरी तरफ किसान भी अपनी बातों पर अड़े हुए हैं। किसान आंदोलन का ये मामला इतना बढ़ गया है कि अब देश ही नहीं विदेश में भी इसकी बातें हो रही हैं। लोग किसान आंदोलन के पक्ष और विपक्ष में खुलकर सामने आ रहे हैं। अब यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय भी हो चुका है।

दरसअल, इंटरनेशनल पॉप स्टार रियाणा ने दो फरवरी को भारत में किसान आंदोलन के प्रदर्शन स्थल पर इंटरनेट बंद करने की आलोचना करते हुए सीएनएन के एक रिपोर्ट लिंक को ट्वीट किया, ‘‘हम इसके बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं?” जिसके बाद सोशल मीडिया पर खलबली मच गई। हर तरफ बातें होने लगी। कुछ लोग समर्थन में और कुछ लोग खिलाफ में बोलने लगे।

आंदोलन का समर्थन यहीं खत्म नहीं हुआ। रियाणा के बाद बाद जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग, जेमी मार्गोलिन, इल्हान ओमर, हाले स्टीवेंस, मारिया अबी हबीब, शवॉन हेन्यू, जेरी डायर, स्टीव कोहेन, क्लॉडिया वेब, जॉन क्यूज़ैक, अन्नालिसा मेरिली, केल ब्रूक, मेहदी हसन, मीना हैरिस, मिया खलीफा जैसे कई हस्तियों ने आंदोलन पर ट्वीट किया।

वहीं अब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार (UN Human Rights) ने भी किसान आंदोलन पर एक ट्वीट किया जिसमें इंटरनेट बैन का जिक्र करते हुए कहा कि “हम भारत में अधिकारियों और प्रदर्शनकारियों से कहना चाहते हैं कि आंदोलन में अधिकतम संयम बरतें। अभिव्यक्ति के अधिकार को शांतिपूर्ण तरीके से ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरीके से संरक्षित किया जाना चाहिए। सभी के लिए इस मसले का उचित समाधान खोजना महत्वपूर्ण है।”

सरकार ने इसे आंतरिक मामला बताते हुए टिप्पणी न करने की सलाह दी

अब सोशल मीडिया ही नहीं पूरे देश मे खलबली मची हुई है। बॉलीवुड के एक्टर हों या डायरेक्टर या कोई खिलाड़ी, सब सरकार के समर्थन में अपनी-अपनी राय दे रहे हैं। इतना ही नहीं इस मामले में एक्सटर्नल अफेयर्स मिनिस्ट्री ने भी अपना एक स्टेटमेंट जारी किया।

अब वो लोग भी सामने आकर बोल रहे हैं जो इतने दिनों में कभी भी किसान आंदोलन को लेकर कुछ नहीं बोला था। मगर एक ट्वीट के बाद सबने अपना मौन व्रत तोड़ दिया है। कुल मिलाकर लोगों का कहना है कि ये भारत की आंतरिक मामला है इसमें बाहर वालों को बोलने का कोई हक नहीं है।

इसका मतलब ये है कि हम दुनियाभर के मसलों पर बोलेंगे लेकिन हमारे मसलों में कोई कुछ नहीं बोलेगा, चाहे सही हो या गलत।
मुझे ये बात बिल्कुल सही नहीं लगी कि ये हमारा आंतरिक मामला है। इनमें बाहर वाले नहीं बोल सकते लेकिन जब ब्लैक लाइव्स आंदोलन हो या अमेज़न की जंगल की बात तो इसपर हमसब बोलते हैं। अपनी विचार रखते हैं, उनको सपोर्ट करते हैं। तब सब सही है। तब वो उस देश का आंतरिक मामला नहीं होता।

बस अगर वो अपनी विचार रखते हैं तो गलत है। जरा सोचिए आखिर क्यों नहीं बोल सकते? मेरा मानना है अगर दुनिया में कहीं भी कुछ भी गलत होता है तो हमसब को उसपर बोलना चाहिए क्योंकि आज कहीं पर भी कुछ गलत होता है, तो उसका असर कहीं न कहीं सबपर पड़ता है।

उदहारण के लिए बता दें कि पिछले साल जब अमेज़न के जंगल में आग लगी थी। अगर पूरी जंगल जल जाती तो क्या उसका असर सिर्फ ब्राजील के लोगों के ऊपर पड़ता? नहीं! उसका असर पूरी दुनिया के ऊपर पड़ता। ऐसे ही एक लोकतांत्रिक देश में अगर किसानों के साथ ऐसा सलूक होता है, तो इसका भी असर सारे लोकतांत्रिक देशों पर पड़ेगा। कल होकर वहां के लोगों के साथ भी ऐसा बर्ताव हो सकता है।
इसलिए गलत (ज़ुल्म) को कभी बढ़ावा नहीं देना चाहिए।

क्या एक लोकतांत्रिक देश में किसानों को प्रॉटेस्ट करने का हक नहीं है?

अब बात यहां किसान आंदोलन के समर्थन और विरोध की नहीं है। बात यहां सही और गलत की है। क्या आपको लगता है कि जो किसानों के साथ हो रहा है वो सही है? मेरे हिसाब से जो हो रहा है वह बिल्कुल गलत है क्योंकि भारत एक लोकतंत्र देश है जहां सबको अपनी बात रखने का अधिकार है। इस तरह किसान भी प्रोटेस्ट कर सकते हैं चाहे वो जब तक चाहें।

मुझे नहीं लगता कि सरकार ने किसानों के साथ जो व्यवहार किया है वो ठीक है। बैरिकेडिंग लगा देना, हाइवेज़ खुदवा देना, कंटीली तार लगा देना, जहां वो प्रोटेस्ट कर रहे हैं उस क्षेत्र का इंटरनेट बंद कर देना, पानी की आपूर्ति बंद कर देना आदि। ये कैसा तरीका है अपने देश के किसानों के साथ व्यवहार और बातचीत करने का?

लोकतांत्रिक देश भारत के एक नागरिक होने के कारण मैं इसकी कड़ी निंदा करती हूं। यहांं हर एक आदमी को अपनी बात रखने का अधिकार है। संविधान के अनुसार अगर सरकार से लोगों का ताल-मेल नहीं बैठता किसी भी मुद्दे को लेकर और जब तक ताल मेल न बैठ जाए, वो चाहे तो प्रोटेस्ट भी कर सकते हैं और जब तक मर्जी हो रोड पर भी बैठ सकते हैं। उनका ये अधिकार है जिसे कोई छीन नहीं सकता।

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