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“ज़िन्दगी को बेहतर बनाने के लिए रिश्तों को समझना होगा”

इंसान को समझना और समझाना शायद इस दुनिया का सबसे कठिन कार्य है। इसीलिए समझने-समझाने में वक्त लेना कतई गलत नहीं है। हाँ ये ज़रूरी नहीं कि सोचने के बाद लिया गया फैसला सही ही हो। गलत भी हो सकता है। दोनों की सम्भावना होती है क्योंकि गलती इंसान ही करता है। मगर हाँ! जीवन में एक बात ज़रूर याद रखनी चाहिए कि आपके द्वारा लिए गए फैसले को कोई और बदल न सके। आपके द्वारा लिया गया फैसला, आपका होना चाहिए।

रिश्ते को न बिगाड़ते हुए आगे निकलना

अब बात करते हैं रिश्ते की जो कि हर किसी के जीवन में होता है भले ही वो कोई भी रिश्ता हो। आपके दुनिया में आने से पहले ईश्वर ने जो रिश्ते (चाचा, चाची,बुआ …) खुद से बना डाले होते हैं। उनको निभाना आपका कर्त्तव्य समझा जाता है जो कि निभानी भी चाहिए।

मगर इसमें भी कोई दो राय नहीं कि कुछ रिश्ते भारी लगने लगते हैं, जिससे निकलना आपके सेहत के लिए अति आवश्यक हो जाता है। हालांकि आप निकलते तो नहीं, पर किनारा ज़रूर कर लेते हैं। जो कि एक हद तक रिश्ते को कायम रखने में भी मदद करता है।

रिश्ते जो खुद हमने बनाये होते हैं

अब आते हैं उन रिश्तों और बातों पर जिसको हमने खुद गढ़ा होता है। बचपन से लेकर जवानी तक न जाने कितने लोगों से मुलाकात होती है लेकिन उसमें से कुछ लोग लंबे याद रह जाते हैं। कई कुछ दिनों के लिए रहते हैं फिर चले जाते हैं। आपको दुःख होता है, पर आप कुछ समय में ही अपने कामों के आपाधापी में भूल जाते हैं।

आपको कोई फर्क नहीं पड़ता, सालों न मिलें तब भी। शायद आपके दिल में उसने वो जगह नहीं बनाई, जो बनानी चाहिए थी। खैर छोड़िये।बहुत सी बातें न चाहते हुए भी आपके मुंह से गलत निकल जाती है। बाद में आप सिर्फ अफसोस कर सकते हैं मगर इतना नहीं कि उससे आपकी जीवन रथ रूकने लगे। इस बात का खास ख्याल रहे।

अब बात इश्क की

कॉलेज का दिन हो, स्कूल का दिन या बचपन का, इश्क कभी भी हो सकता है। याद रहे इश्क किसी इंसान से नहीं उसके अदा से होती है। इश्क किसी फायदा या नुकसान को देखते हुए नहीं होती। बस हो जाती है। मगर एक बात गौर करने वाली है, जो बात आपके दिल में है वही दूसरे के ये हमेशा मुमकिन नहीं हो सकता। इस बात का ख्याल रखते हुए इश्क को हमसफर बनाया जा सकता है।

रिश्ते को संजोना

आखिरी बात जो बेहद ज़रूरी है। किसी भी रिश्ते के लिए खास करके जीवनसाथी को लेकर, वो है एक दूसरे के समझ को समझते हुए रिश्ते में सामंजस्य बैठाना जो कि रिश्ते को मजबूत बनाता है। याद रहे दुनिया में कोई भी परफेक्ट नहीं होता। बहुत से लोग इश्क में कहते हैं “खुद को बदल लेंगे”। ये एक हद तक सही है, पर जायज़ नहीं है। मैं अपने हिसाब से देखूं तो मुझे भी मेरी साथी पूर्ण रूप मेरी तरह ही चाहिए। मुमकिन है कि अगला भी यही चाहेगा, होना भी चाहिए।

ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक आदमी ही रिश्ते को कायम रखने या आगे बढ़ाने के लिए प्रयास करे, और खुद को उसके हिसाब से बदल ले। ये सरासर गलत होगा, और ये कहना गलत न होगा कि आपने अपने प्यार को पाने के लिए खुद को खो दिया। बदलने कि ज़रूरत पड़े तो दोनों अपने में कुछ-कुछ बदलाव ला सकते हैं, क्योंकि ऐसा नहीं हो सकता कि अगले आदमी में कोई कमी हो ही नहीं। ज़िन्दगी तराजू के उस कांटे की तरह होती है, जो बिल्कुल बीच में सीधा तभी रहता है जब दोनों तरफ पल्ले में रखा सामान का वजन बराबर हो।

रिश्ता और इंसानियत

खैर बात बहुत लंबी हो गई लेकिन इतनी भी नहीं कि इसके सामने ज़िन्दगी छोटी पड़ जाए। ज़िन्दगी बड़ी हो या छोटी, ये अपने हाथ की चीज़ नहीं पर वक्त लेकर जीवन साथी के रूप में कोई लड़का या लड़की को अपनाने से पहले ये पक्का कर लें कि क्या वो इंसान है? मेरे साथ-साथ इंसानियत से भी इश्क करता है? ये परखना बहुत ज़रूरी है।

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