1947 में ना तो हम थे और ना ही हमारे माता-पिता। हां! दादा-दादी हों तो कुछ कह नहीं सकते। आइए हम मिलते हैं 2021 के उपनिवेश भारत से। यह वही भारत है, जो 1947 में दंगों से भरा हुआ था और आंदोलकारियों से देश जल रहा था। अंग्रेज़ बिल्कुल ऐसी ही स्थिति में थे जैसे आज हमारे देश के सबसे बड़े मंत्री, जिन्होंने आंखों में पट्टी और कानों में रूई डाल रखी है। सरकार को अपने पेट के अलावा कुछ नहीं दिख रहा है। गरीबों, किसान और बेघरों को घर देने का वादा करने वाली जाने कहां गुम हो गई।
देश उस वक्त विदेशियों के हाथ में था, तो थोड़ा सुकून था कि कभी-ना-कभी तो वे जाएंगे। बात जब घरेलू लोगों की आती है तब परेशानी बढ़ जाती है। देश के नेता ही देश को नोचने में लगे हैं, ऐसे में विदेशियों का क्या? देश में आज देश की सरकार के खिलाफ ही आवाज़ें बुलंद होती दिख रही हैं।
ऐसा लगता है जैसे प्रलय आने वाली है। हर ओर आग और उसकी लपटें देश की नींव को कमज़ोर कर रही हैं। मुझे चिंता होती है कि आखिर भविष्य में क्या होगा? क्या बचेगा? क्या भारत मज़बूती से खड़ा हो पाएगा? देश में राष्ट्रीय पर्व बड़े ज़ोर-शोर से मनाए जाते हैं। 2 महत्वपूर्ण पर्व हैं, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस। फिलहाल गणतंत्र की बात करते हुए आगे बढ़ते हैं।
गणतंत्र का मतलब अपने आप में बहुत विस्तृत है, जो कि काफी महत्व रखता है। गणतंत्र यानि कि लोगों का समूह। लोगों के लिए, लोगों के द्वारा समूह का संचालन। हमारा भारत गणतांत्रिक देशों में गिना जाता है। यह विश्व प्रख्यात है कि भारत में लोकतांत्रिक सरकार है, जहां अनेक धर्मों का समावेश होता है।
हर वर्ष 26 जनवरी को भारत में गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। बड़े ज़ोरृ-शोर से दुनिया के प्रधानमंत्रियों या राष्ट्रपतियों को न्यौता दिया जाता है। स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस, देश में प्रशासन के महकमे में रौशनी की लड़ियां लगाई जाती हैं। तरह-तरह के पकवानों से बड़े-बड़े भवन महक उठते हैं।
यह तो बात हुई देश की सरकार की, वहीं अगर बात करें देश में एक ग्राउंड रिपोर्ट के नज़रिये से तो पाएंगे कि समाज में स्वतंत्रता और गणतंत्र नाम की शायद कोई चीज़ मौजूद है। यहां संविधान के चिथड़े देखने को मिलेंगे और नाम के लिए सिर्फ और सिर्फ गणतंत्र देश। वहीं, 1976 के 42वें संविधान संशोधन में तीन महत्वपूर्ण शब्द जोड़े गए ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता।’
गणतंत्र और लोकतंत्र के नाम पर जन और लोग दोनों ही देश की सड़कों पर आपको खून में लथपथ और अपाहिज होता दिख जाएगा। यहां मरता हुआ 2015 का अखलाक मिल जाएगा, ऐसे कई अखलाक सड़कों पर इंसानों द्वारा सरेआम मारे जाते हैं। हद तो तब हुई जब स्वामी अग्निवेश पर भी भीड़ ने हमला बोल दिया। यह सिर्फ अभी की बात नहीं है, बल्कि यह दो दशकों से चली आ रही प्रथा है। ये भी हमारे जन और गण हैं।
सड़कों पर बैठा हुआ शाहीन बाग तो आपको ज़रूर नज़र आएगा। साथ ही साथ कॉलेज के बच्चों पर लाठीचार्ज भी आपको अपनी ओर आकर्षित ज़रूर करेगा। सड़कों पर बैठी हुई वो गोद भी नज़र आ जाएगी, जिस गोद में मरा हुआ दूधमुंहा बच्चा पड़ा था।
यह वही देश है, जहां लोग आपको धर्मों में तौलते हैं। अपने ही देश में ऐसा महसूस होना कि हम विदेशी हैं। कई बार तो ऐसा लगने लगता है कि हमारा देश आखिर है कौन सा? हमारे देश के हुक्मरान ऐसा क्यों कर रहे हैं? आज़ादी के बाद से ये पहला वक्त गुज़रा जब देश में ऐसी उथल-पुथल मची जैसे हम आज़ादी के दिनों में पहुंच गए हों। बेशक हमारे दादा या परदादा ने वो वक्त देखा होगा मगर हमने तो 20वीं सदी में शायद वही बात महसूस की जो देश के विभाजन के समय थी।
मेरा वतन किस ओर बढ़ रहा है? सोचो और देखो तो पता लगता है किसान सड़कों पर मौजूद हैं। मज़दूरों को जहन्नुम में ज़िंदा दफ्नाया जा रहा है। वहीं, मुसलमानों की रीढ़ को दीमक कुंद नए-नए फतवे खोखला कर रहे हैं। आम जनता को घरों से बाहर निकालकर जेलखानों में ठूंसा जा रहा है।
कश्मीर नाम की जन्नत को कर्फ्यू द्वारा नरक बनाया जा रहा है। प्रेम करना अब अपराध घोषित है। ज़िन्दगी को जीना मुहाल कर दिया गया है मगर मैं चुप हूं। किसी भी तरह की बेचैनी मुझे तोड़ नहीं रही और ना ही मैं कमरे के फर्श पर खून थूक रहा। मैं सहज हूं और सरल भी मगर जब देश के नौजवानों की स्थिति की बात आती है और भविष्य याद आता है, तो एक कंपकपी सी छूट जाती है कि क्या होगा?
देश के सियासतदानों के काहिलपने को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। आप कौन सा गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं और कहां का संविधान? कौन सा संविधान? यह अम्बेडकर वाला संविधान तो कहीं से नहीं लगता। हां! अडानी और अम्बानी ने जो संविधान 2014 में बनाया था, देश आज उसी पटरी पर रेंग रहा है। सबसे बड़ी न्याययिक व्यवस्था जिसे कभी सुप्रीम कोर्ट समझा जाता था, आज पूरी तरह बिक चुकी है। उनके द्वारा दिए गए फैसलों से तो यही लगता है कि जो सरकार बोलती है, वही बात आप भी दोहरा देते हैं। यह आपकी छवि पर सवालिया निशान लगाते हैं।
ये कैसी सियासत है मिरे मुल्क पर हावी
इंसान को इंसां से जुदा देख रहा हूं।
-साबिर दत्त