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हमारे देश भारत में युवाओं में बढ़ती अदृश्य शिक्षित बेरोज़गारी

देश में बढ़ती हुई अदृश्य शिक्षित बेरोज़गारी

आज हम 21वी सदी के दौर में हैं, जहां सब कोई अपनी एक नई पहचान बनाने के लिए परेशान है। अमेरिका कोरिया से तो कोरिया अमेरिका से परेशान है, विश्व के हर देश की समस्या एक जैसी है बस हमारे देश भारत को छोड़कर।

हमारे देश भारत में एक समस्या नहीं है वरन भारत में दो समस्याएं हैं, एक पाकिस्तान एवं चीन और दूसरी समस्या भारत के युवाओं की बहकी सोच या हम कहें भटकी हुई सोच है।

भारत में युवाओं की असल समस्या क्या है? मैं यह अपने लेख के माध्यम से बताना चाहता हूं।

आजकल के युवाओ की परेशानी है धर्म,जाति

आज देश में धर्म के नाम पर बढ़ते आपसी वैचारिक मतभेद एवं अराजकता को लेकर देश के युवाओं में सबसे अधिक टकराव है, वैसे यदि समाज के सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो धर्म को लेकर चिंतन का काम हमारे बड़े-बुज़र्गों का होना चाहिए। देश के युवाओं की भागीदारी अपने सर्वांगीण विकास को लेकर पढ़ाई, खेलकूद और रोजगार में होनी चाहिए और बुजुर्गो को धर्म एवं समाज के अन्य सामाजिक दृष्टिकोणों पर चिंतन- मनन करना चाहिए। 

लेकिन, आज देश में युवा वर्ग की जो भागीदारी एवं अपने भविष्य के दृष्टिकोण को लेकर जो उल्टा रुख देखने को मिल रहा है, वह चिंतनीय है क्योंकि आज युवाओं में धर्म, जाति एवं समाज के अन्य सामाजिक दृष्टिकोणों को लेकर जो राजनैतिक आपसी वैचारिक मतभेदों के टकराव जो देश के लिए चिंतनीय हैं। देश का युवा आज अपने जीवन के  मुख्य उद्देश्यों को ध्यान में क्यों नही रख पा रहा है इसके इतर वह धर्म, जाति एवं अन्य राजनैतिक गतिविधयों के चलते वह अपने भविष्य के रास्ते से भटक कर कहीं ना कहीं वह पढ़ाई, खेलकूद और रोज़गार से दूर हुआ जा रहा है।

आज के परिप्रेक्ष्य में युवाओं को लेकर यह चिंतन करने का मुद्दा है, आप को स्वयं खुद से प्रश्न पूछना चाहिए ऐसा क्यों हो रहा है कि आज का युवा शिक्षा की लड़ाई नहीं लड़ रहा है। मैं आप को इसका एक उदाहरण बताता हूं सरकार द्वारा UPSC में लगातार पदों की संख्या में कमी की गई लेकिन किसी युवा या युवा संगठन द्वारा सरकार के इस कदम के विरोध में आवाज नहीं उठाई गई।

देश में बढ़ती हुई बेरोज़गारी  

रोज़गार की कमी तो भारत मे इतनी है कि माननीय प्रधानमंत्री जी खुद मानते है कि पकौडा बेचना रोज़गार है तो आप इससे अंदाजा लगा सकते है कि भारत मे रोजगार की कितनी कमी है, हर वर्ष देश में लाखों की संख्या में युवाएं अपनी पढ़ाई पूरी करके रोज़गार की तलाश में  भटक रहे हैं। ऐसे तमाम शिक्षित, रोज़गार की तलाश में भटकते  हुए बेरोज़गार युवाओं को आप-हम भी जानते होंगे, लेकिन कोई युवा और युवा संगठन ने उनके  रोजगार के लिए आवाज़ नहीं उठाई है।

आज कल खेलकूदों में युवाओं की रुचि बहुत ही कम देखने को मिल रही है, जब से इंटरनेट का जमाना आ गया है तब से देश का युवा बस अपने प्रतिदिन मिलने वाले डेढ़ जीबी के नेट को खर्च करने में व्यस्त है। देश का आज का  युवा आजकल अपनी प्राथमिक जिम्मेदारियों (शिक्षा, खेलकूद, रोज़गार )को छोड़कर कर बस धर्म, जाति एवं अन्य राजनैतिक गतिविधियों में संलिप्त है।

आज के युवाओं की लड़ाइयां क्या हैं? कभी आप ने उन मुद्दों पर गौर किया?

आज देश के युवा आपस में ही वन्दे मातरम बोलने और किसी के ना बोलने, भारत माता की जय बोलने और ना बोलने पर, जय परशुराम, जय भीम और अन्य महापुरुषों को मानने और ना मानने इन्हीं वैचारिक मतभेदों को लेकर एक- दूसरे से ही लड़ रहे हैं।

ऐसे हैं हमारे युवा, ऐसी हैं उनकी लड़ाइयां 

कुछ युवा हिंदुत्व के नाम पर लड़ रहे हैं, कुछ इस्लाम के नाम पर, कुछ ब्राह्मणवाद के नाम पर, कुछ अम्बेडकरवाद के नाम पर और कुछ अपने वैचारिक मतभेदों को लेकर सब एक-दूसरे की विचारधाराओं को लेकर लड़ रहे हैं।

आखिर युवा क्यों लड़ रहे हैं? उनका उद्देश्य क्या है? या फिर किसी ने युवाओं को भटकाया है?

ऐसे बहुत से सवाल हैं, जो युवाओ को अपने आप से पूछने चाहिए जिससे उन्हें पता चले कि वो क्या कर रहे हैं?

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आज के युवाओं की सबसे बड़ी समस्या है, उनकी भावना को ठेस पहुंचने की आदत जिससे वे जल्दी आहत हो जाते हैं और वो अपना आपा खो देते हैं या कहें कि अमानवीय कार्यों में संलिप्त हो जाते हैं।

आज सबसे बड़ी बात यह है कि यह जो भी समस्या इस समाज में पनप रही है, उसमें सबसे बड़ी भागीदारी हमारे पढ़े-लिखे युवाओं की है चाहे वो धर्म के नाम पर लड़ रहे युवा हों या झूठी देशभक्ति के नाम पर एक-दूसरे से लड़ रहे युवा हों या जाति के नाम पर लड़ रहे युवा हों। 

इतने पढ़े-लिखे, शिक्षित युवाओं की इतनी संकुचित, संकीर्ण मानसिकता को देख कर, मैं यह सोचने पर मज़बूर हो जाता हूं कि ये कौन सी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं? और ऐसी शिक्षा कौन दे रहा है? जिससे देश का युवा इतना भटकता जा रहा है कि आपस में कटने-मरने को तैयार है।

आज हमारे समाज का परिवेश इस कदर बदल गया है कि किसी भी सफल कहानी या विफल कहानी या किसी भी विवाद को सबसे पहले धर्म से जोड़ा जाता है, इसके बाद जाति से जोड़ा जाता है और उस घटना को ऐसे दिखाया जाता है कि वह वर्ग समाज से बिल्कुल अलग-थलग है।

कोई आईएएस बनता है तो उसे बधाई उसकी जाति या धर्म से दी जाती है ना कि उसके मेहनत को दी जाती है ना ही उसके परिवार को दी जाती है। समाज में ऐसे लोगों की मानसिकता को कौन  जन्म देता है? यह सवाल बहुत बड़ा है इसका उत्तर अपने आप से प्रश्न करने पर ही मिलता है,इसका जवाब कोई देता नहीं है।

समाज में जो लोग या राजनैतिक संगठन देश के युवाओं में धर्म और जाति के नाम पर जहर बो रहे हैं, इस ज़हर रुपी फसल को या तो हम भुगतेंगे या आने वाली हमारी पीढ़ियां भुगतेंगी, इसलिए आप अपने आप को बदलें और अपने करीबियों को बदलने की भी कोशिश करें।

आप की अपनी सोच को आप को कभी गलत नहीं लगेगी, जब तक आप उस पर चिंतन-मनन ना करें या जब तक कोई आप को स्मरण ना कराए।

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