बात उस वक्त की है जब मैं असम के तिनसुकिया ज़िले में नौकरी कर रहा था। मौसम के हिसाब से उत्तर भारत की तुलना में पूर्वोत्तर राज्यों का मौसम काफी लुभावना और मनमोहक होता है। जगह-जगह पर चाय के बगान, बूंद-बूंद बारिश और रात को एक पतली चादर ओढ़े तकिए के सहारे करवटें लेना और शुष्क मौसम का आनंद लेना काफी रोमांचकारी रहा।
बिहार के गया ज़िले में मेरा जन्म हुआ। जीवन के 18 वर्ष बिहार में ही रहने के बाद अचानक जिन जगहों के बारे में पुस्तक में पढ़ा करता था, अब उन्हीं जगहों पर जाने का मौका मिल रहा था। हम अक्सर अखबारों में आकर्षक हेडिंग के ज़रिये कुकृत्यों के बारे में पढ़ा करते हैं। जैसे- “राजस्थान के एक शहर में 10 वर्ष की बच्ची से बलात्कार”, “उत्तर प्रदेश के फलां ज़िले में दलित को निर्वस्त्र किया गया” वगैरह वगैरह मगर पूर्वोत्तर भारत के बारे में ऐसी खबर कभी-कभार या नाममात्र की ही सुनने को मिलती है।
काफी जांच-पड़ताल करने के बाद पता चला कि यहां के कुछ सामाज मातृसत्तात्मक हैं मगर क्या समाज का मातृसत्तात्मक होना ही बलात्कार जैसी घटनाओं का कम होना माना जाए? खैर, करीबन 2 साल असम के तिनसुकिया में बिताए और इन दो सालों में कई लोगों से मिला। मुलाकात का सिलसिला दफ्तर से शुरू होकर रेस्टोरेंट, रेस्टोरेंट से पार्क और पार्क से फिर दफ्तर।
दरअसल, यह मुलाकात शब्द को परिभाषित केवल पूर्वोत्तर राज्यों में ही किया जा सकता है और तो और असम के बीहू में लड़की भगाने की भी परंपरा है (यानि लड़की भगाकर शादी करना, जिसे वो लड़की बीहू मेले में पसंद करे)। उत्तर भारत में इसे भगौड़ा शादी भी घोषित कर दी जाएगी। घर वाले मारपीट पर भी आतुर हो जाएंगे, गोलियां चलने लगेंगी।
अपना एक दिलचस्प वाकया सुनाता हूं जो उन तमाम नौजवानों और नवयुवतियों के लिए भी है जो यह सोचते हैं कि आज की युवापीढ़ी काफी “फॉरवर्ड” हो गई है और इसपर पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव है। मेरी एक महिला मित्र थी जिससे मेरी रोज़ाना बात हुआ करती थी। अच्छी महिला थी वह, समय पर फोन करना, हर बात के लिए फिक्र करना उनकी आदत थी।
वैसे तो यह आम बातें हैं, सारी लड़कियां चाहे वे पूर्वोत्तर भारत की हों, उत्तर भारत की हों, पश्चिम भारत की या दक्षिण भारत की। सब ऐसा करती होंगी मगर इन रोज़ाना की बातों में मुझे उस शाम की बात सबसे दिलचस्प लगी।
उन्होंने कहा, “देखो आप पिछले एक महीने से मुझसे बात कर रहे हो, मैं बस यह जानना चाहती हूं कि हमारे इस अंजान रिश्ते को कोई नाम तो दे दो। मैं ऐसा इसलिए पूछ रही हूं कि कल ही मुझे मेरे पुराने दोस्त ने प्रपोज़ कर दिया है जिससे मैं रोज़ बात करती थी। मैंने अभी तक उसको कोई जवाब नहीं दिया है। तुम आज कन्फर्म करो कि आगे बढ़ाना है या नहीं, तभी मैं उसे कुछ बोलूंगी।”
यहां पर दो मानसिकता बाहर आ रही है। पहली यह कि कुछ लोग यहां (खासकर उत्तर भारत के) यह कह सकते हैं कि लड़की बहुत चालू है, मतलब उसको कोई ना कोई टाइम पास चाहिए, बच के रहना। दूसरी मानसिकता यह है, जो मैं सोचता हूं कि लड़की ने आगे होने वाले दुष्परिणाम को पहले ही भांप लिया और अपने दिल की बात कह डाली। इसमें कुछ भी गलत नहीं है, आखिर उसे जानने का हक है कि जिससे वह पिछले कुछ दिनों से अपने दिल की हर बात ज़ाहिर कर रही है, वह उसके दिल की बात सुन भी रहा है या नहीं।
वह बस एक हमसफर और साथी चुनने की लगन में अपनी सूझबूझ का प्रयोग कर रही थी। इस बात को सुनकर मैंने कह डाला कि मैं सोचकर बताऊंगा। उसके बाद भी मेरी उससे बात होती रही और वह भी मुझसे बात करती रही। यहां यह घटना मुझे सोचने को मजबूर करती है कि वह पूर्वोत्तर राज्य की महिला (जहां साक्षरता दर आज भी भारत के उत्तर के राज्यों से कम है) में कितनी समझ और परिपक्वता थी। वह और लड़कियों की तरह हमें अपने किस्से सुना सकती थी। हमारे साथ बाइक पर पिछली सीट पर बैठकर घूम सकती थी।
क्या उसे ऐसा किरदार निभाने के लिए उसके समाज ने सिखाया था जो मातृसत्तात्मक है? उसने अपना ही नहीं, बल्कि उन तमाम लोगों के मुंह पर तमाचा मारा जो भारत की राजधानी नई दिल्ली में पूर्वोत्तर की छात्राओं से बदसलूकी और बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं। देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में हमें पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। वे भी हम में से ही हैं और हम सब एक-दूसरे से हैं।