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समाज को अपने दोनों पक्षों को समानता से देखा जाना चाहिए

समाज को अपने दोनों पक्षों को समानता से देखा जाना चाहिए

हमारे समाज में एक दौर था, महिला उत्पीड़न का दौर। जिसमें महिलाओं का शारीरिक एवं मानसिक रूप से  शोषण, उनके सामाजिक अधिकारों का हनन, कहीं समाज की प्रथाओं की आड़ में शोषण था तो कहीं धर्म की आड़ में महिलाओं का शोषण किया जाता था।

 जिस धर्म में हम स्त्रियों को देवियों के रूप में दर्शाते हैं, उन्हीं धर्म के ठेकेदारों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए धर्म को ही अपना ढाल बना लिया है। हमारे समाज में महिलाओं के शोषण के लिए पहले से ही जैसे बाल विवाह, सती प्रथा, घूंघट प्रथा, चुंदरी प्रथा, तीन तलाक जैसी ना जाने कितनी सामाजिक बुराइयां धर्म और समाज की आड़ में मौजूदा थीं।
जैसे कि हम सब जानते हैं कि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है, इसलिए समाज में परिवर्तन हुआ और सामाजिक प्रथाओं के नियम भी  बदले और हमारे देश में एक नया दौर आया महिला सशक्तिकरण का। महिलाओं ने हर क्षेत्र में प्रगति की शिक्षा, कला, विज्ञान हर क्षेत्र में भारतीय महिलाओं ने अपना परचम बुलंद किया।
 
 एक बार फिर बदलाव आया जब महिला सशक्तिकरण ने नारीवाद का रूप ले लिया। इस दौर मे केवल एक पक्ष की ही बातें सुनी जाने लगीं।अब महिला सशक्तिकरण के लिए जो कानून सरकार ने बनाए थे, वही कानून पुरुषों के अधिकारों का हनन करने लगे। लेकिन, फिर इस बार परिवर्तन का दौर आया उससे  पुरुषों और महिलाओं ने अब एक-दूसरे एवं दोनों पक्षों को समझना शुरू कर दिया। 
 
  लेकिन फिर वही सामाजिक कुरीति, लोगों ने इसे भी ढाल की तरह उपयोग करना शुरू कर दिया, क्योंकि इस दौर मे दोनों पक्षों को समझा जाने लगा इसलिए हमारी न्याय व्यवस्था अत्यधिक शिथिल पड़ गयी और न्याय मिलना जटिल हो गया। मेरे ख्याल से महिला सशक्तिकरण का दौर थोड़ा और वक्त तक होना चाहिए था। क्योंकि वह दौर तब आया जब हमारे पास महिला सशक्तिकरण को सुचारू रूप से लागू करने के ज्यादा माध्यम नहीं थे, वह बात शहरों तक उठकर दब गई, गांव तक तो कुछ हुआ ही नहीं।
 
 अभी हाल ही में हरियाणा के एक बड़े बुजुर्ग का एक साक्षात्कार देखा था। जिसमें उनका मानना था कि 16 साल की लड़की हो जाए तो रेप जैसी घटना रेप नहीं होती क्योंकि 16 साल की उम्र में लड़की शारीरिक संबंध बनाने योग्य होती है तब मेरे मन में एक सवाल आया सभी पुरुषों को आज के समाज की तस्वीर क्यों ना दिखाऊं ! ना महिलावाद गलत है ना पुरुषवाद जिसके भी अधिकारों का हनन होगा वह आवाज उठाएगा, इस लिखावट के जरिये आप लोगों को बस एक बार समझाना चाहूंगा कि इस समाज को जान लीजिए और देखिए अभी महिला सशक्तिकरण का दौर खत्म नहीं हुआ है।  
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