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समाजिक कुरुतियों से लड़ते समाज को किन्नरों के हक के लिए भी लड़ना होगा

किन्नर! ऐसे व्यक्ति जिनके लिंग की पहचान उनके जैविक सेक्स से संबंधित नहीं होती हैैै। इस तरह उनके उपांगों की बनावट सामान्य पुरुषों और महिलाओं से भिन्न होती है। “किन्नरों” में यौन अनुस्थापन या शारीरिक सेक्स के लक्षण शामिल नहीं हैैं लेकिन वास्तव में यह एक लाक्षणिक शब्द है, जो लिंग पहचान और लिंग के उपांग से संबंधित हैै।

भारतीय समाज! जहां 5 लाख से भी ज़्यादा लोग थर्ड जेंडर में आते हैं, उस समाज में किन्नर समुदाय को बड़ी हीन दृष्टि से देखा जाता है, जहां हम इंटरनेट के युग में विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बने हुए हैं वहीं किन्नर समाज को अभी भी हमारे समाज में सामाजिक, मानसिक तथा शारीरिक शोषण झेलना पड़ता है।

सामाजिक अलगाववाद शोषण की सबसे बड़ी वजह

भारतीय परिपेक्ष्य में देखा जाए, तब भारतीय समाज एक विकासशील देश होने के साथ-साथ रूढ़िवादी बंधनो में जकड़ा हुआ भी है, जहां अभी भी बाल-विवाह जैसी कुरुतियां विद्यमान हैं।

वहीं जब किन्नरों के अधिकार की बात की जाएगी तब यह समाज कहीं न कहीं इसे स्वीकृति देने से भी मना करेगा या कहें अपना विरोध जताएगा।  दरअसल बात केवल किन्नरों के अधिकारों की नहीं है बल्कि बात है गे, लेस्बियन, क्वीर, बाई सेक्सुअल और अन्य विभिन्न तरह की सेक्सुअल इच्छा रखने वाले लोगों की भी है, जो कहीं न कहीं उम्र के किसी पड़ाव पर सामाजिक/ मानसिक अलगाव का शिकार होते हैं।

हमें खाई को पाटना ही होगा

जब अलगाव पैदा होता है तभी भेदभाव पैदा होता है साथ ही जब भेदभाव आता है तब असमानता जन्म लेती है। यही असमानता शोषण का कारण बनती है। हमारा LGBT समाज, जो हमेशा से शोषित होता आया है और कठिनाई के समय में भी अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ता रहा है।

अब हमारा यह कर्तव्य होना चाहिए कि उन्हें इस दुराव और इस शोषण से निकाला जाए। भारतीय समाज के संदर्भ में ये समस्या दो ही तरीके से हल हो सकती है। एक हमारी सोच में बदलाव और दूसरा सरकार की तरफ से ठोस कदम।

व्यवहारिकता में देखा जाए तो,  जो देश विकसित हैं, जहां शिक्षा दर काफी उच्च है, वहां किन्नरों को समाज का अंग ही माना जाता है और वही जब सरकार किसी शोषण के खिलाफ कोई प्रतिबंध लगाए तो वह सोने में सुहागा हो जाता है।

समाज की भागीदारी सरकार से कहीं ज़्यादा

हमें प्रत्येक क्षेत्र से, इस समाज के लोगों को मुख्य धारा में लाना होगा। इसके लिए शिक्षा, नौकरी में इनके लिये विशेष आरक्षण की आवश्यकता होगी। इनके साथ अलगाव रखने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही के लिए कानून लाने की भी ज़रूरत है। वहीं हमें वैश्विक स्तर पर सेमिनार आयोजित करवाने चाहिए, जहां पढ़़े-लिखे LGBT समुदाय को नौकरी और अन्य सामाजिक भागीदारी से जोड़ना होगा।

जब बात अधिकारों की आती है, तब हमें भारत की राजनीति में भी किन्नर समुदाय की भागीदारी को समझना ज़रूरी है, जो अपने अधिकारों के लिए संसद में आवाज़ उठा सकें, क्योंकि एक किन्नर ही किन्नर समाज की समस्या अच्छे से समझ सकता है और उसके निराकरण के लिए मांग कर सकता है।

जब हम वैश्विक स्तर पर नज़़र डालेंगे, तब पाएंगे कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया! जहां किन्नर को तीसरा लिंग मानकर उसके साथ दुराचार ओर भेदभाव खत्म किया गया। वहां,उन्हें समाज का मुख्य स्तम्भ माना जाता है और सामान्य लोगों की तरह ही ट्रीट किया जाता है लेकिन भारतीय समाज में किन्नरों और अन्य सेक्सुअल डिज़ायर (LGBT) वाले लोगों का उत्थान होना ‌बाकी हैै, जो कई सौ वर्ष से अधिकारों और समानता के लिए तड़प रहे हैं।

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