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“जब नौकरी ही नहीं मिली तो यह पढ़ाई किस काम की?”

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

मोदी जी,

2014 में आपकी पार्टी को जितनी बहुमत मिली थी, उससे कहीं ज़्यादा 2019 लोकसभा चुनाव में मिली। हमें खुशी होती है जब आप दूसरे देशों में जाकर भारत की उपलब्धियां गिनवाते हैं, ठीक है हम भी सपना देख रहे हैं कि एक रोज़ यह मुल्क फिर से सोने की चिड़ियां बनेगी।

सवाल यह है कि बेरोज़गारी दूर करने के संदर्भ में आप कभी बयानबाज़ी से बाहर निकल ही नहीं पाए हैं। यदि आपने वाकई में बेरोज़ारी दूर करने के लिए कोई पहल की होती, तो मुझे जैसा ग्रैजुएट युवक झारखंड के सुदूर ग्रामीण इलाके में बोरोज़गार नहीं बैठा होता। मुझे जितनी चिढ़ आपसे है, उतनी ही इस देश की व्यवस्था से जो मेरे जैसे बेरोज़गारों को उचित काम भी मुहैया कराने में विफल है।

बेरोज़गारी का आलम यह है कि मैं पिछले 10 वर्षों से कभी किसी रोज़गार सेवक के अंडर रहकर ठेकेदारी का काम करता हूं, कभी जनगणना, कभी पशु गणना, कभी आरएसबीवाई के तहत हेल्थ कार्ड बनाना तो कभी मनरेगा के तहत स्मार्ट कार्ड बनाना। यह सब करते-करते सरकारी नौकरी के लिए उम्र खत्म होने पर क्या आप मुझे और मेरे परिवार को हर महीने खर्च देंगे?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

मुझे पता है आपके पास इसका कोई जवाब नहीं होगा क्योंकि आप तो एयर स्ट्राइक के नाम पर वोट मांग लेते हैं। माफी चाहता हूं मोदी जी कि मैं गुस्से वाले लहज़े में आपसे बात कर रहा हूं लेकिन मेरी जगह यदि आप भी होते और आपका वास्ता भी गरीबी से पड़ा होता तो शायद मुझे समझ पाते।

अब नौकरी की बात करते हैं। मैंने भी कई नौकरियों के लिए अप्लाई किया है मगर होता कहां है किसी में? लोग कहते हैं कि तुम्हें तो आरक्षण मिलता है, तुम्हारी ज़िन्दगी आसान है मगर उन्हें क्या पता कि हमारे साथ किस स्तर का भेदभाव होता है।

चलिए मान लेते हैं कि आरक्षण हमारे काम की चीज़ है मगर जिन सराकारी विद्यालयों में हमने पढ़ाई की है, क्या वहां अब भी बेहतर शिक्षा व्यवस्था है? जिन सरकारी स्कूलों के भवन ढंग के नहीं होते थे, जहां योग्य शिक्षक नदारत थे और जहां तमाम बुनियादी सुवाधाएं नहीं थी, भला वहां से पढ़कर हम यह कैसे कल्पना कर सकते हैं कि आरक्षण के बल पर हमारी नौकरी लग जाएगी।

नौकरियों के लिए सवाल तो हमसे भी वही पूछे जाते हैं, जो जेनरल कैटेगरी वालों से पूछे जाते हैं, फर्क केवल इतना होता है कि हम थोड़ा कम नंबर लाने पर भी उत्तीर्ण हो जाते हैं मगर उस थोड़े कम नंबर लाने के लिए भी क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था ने हमें उस काबिल बनाया है? रहने दीजिए साहब, जब नौकरी ही नहीं मिली तो यह पढ़ाई किसी काम की नहीं है।

यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम जब बचपन की दहलीज़ को पार कर यौवन में कदम रख रहे होते हैं, तब हमारा समाज हमसे भेदभाव करता है, शिक्षा व्यवस्था में दोहरी नीति होती है और यहां तक कि सरकारी दावे भी झूठ में परिवर्तित हो जाते हैं।

मोदी जी, मैं अंत मे केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि अगली दफा जब आप किसी मुल्क में जाकर अपनी उपलब्धियां गिनवाएंगे, तब झारखंड के गोड्डा ज़िले के सरभंगा गाँव के बारे में भी बात करिएगा कि किस तरीके से वहां मुझे जैसे बेरोज़गार युवकों के साथ छलावा हो रहा है।

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