मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले की भूरी बाई को कला के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए इस बार पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा गया है। मध्यप्रदेश में झाबुआ जिले के पिटोल गांव में जन्मी भूरी बाई भारत के सबसे बड़े आदिवासी समूह भीलों के समुदाय से हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार, शिखर सम्मान द्वारा कलाकारों को दिए गए सर्वोच्च राजकीय सम्मान सहित कई पुरस्कार जीते हैं।
Ms. Bhuri Bai, an Internationally acclaimed Bhil Painter from Jhabhua, is the first to transfer mud wall paintings to huge canvases. She will be awarded the Padma Shri this year. #PeoplesPadma #PadmaAwards2021 pic.twitter.com/v8mFc8xjGK
— Padma Awards (@PadmaAwards) January 31, 2021
पिटोल की भूरी बाई की खास बात यह है कि उन्हें हिंदी बोलनी भी ठीक से नहीं आती थी। वे केवल स्थानीय भीली बोली जानती थीं। वो अपनी चित्रकारी के लिए कागज तथा कैनवास का इस्तेमाल करने वाली प्रथम भील कलाकार हैं। भारत भवन के तत्कालीन निदेशक जे. स्वामीनाथन ने उन्हें कागज पर चित्र बनाने के लिए कहा। भूरी बाई ने अपना सफर एक समकालीन भील कलाकार के रूप में शुरू किया।
उस दिन भूरी बाई ने अपने परिवार के पैतृक घोड़े की चित्रकारी की और वह उजले कागज पर पोस्टर रंग के स्पर्श से उत्पन्न प्रभाव को देखकर रोमांचित हो उठी। बोलीं ‘‘गांव में हमें पौधों तथा गीली मिट्टी से रंग निकालने के लिए काफी मेहनत करनी होती थी लेकिन यहां मुझे रंग की इतनी सारी छटाएं तथा बना-बनाया ब्रश दिया गया।’’ शुरू में भूरी बाई को बैठकर चित्रकारी करना थोड़ा अजीब लगा लेकिन चित्रकारी का जादू शीघ्र ही उनमें समा गया।
बहुत गरीबी में बीता भूरी बाई का बचपन
भूरी बाई का बचपन बेहद गरीबी में बीता था। भूरी बाई पहली आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने गांव में घर की दीवारों पर पिथोरा पेंटिंग करने की शुरूआत की। उनकी पेटिंग की पहचान जिले भर में होने लगी। इस दौरान वे जीवन का गुजर बसर करने के लिए राजधानी भोपाल में आकर मजदूरी करने लगी। वे उस समय में भी भोपाल में पेटिंग बनाने का काम करती थीं।
बाद में संस्कृति विभाग की तरफ से उन्हें पेटिंग बनाने का काम दिया गया। जिसके बाद वे राजधानी भोपाल के भारत भवन में पेटिंग करने लगी। भूरी बाई अब भोपाल में आदिवासी लोककला अकादमी में एक कलाकार के तौर पर काम करती हैं। उन्हें मध्यप्रदेश सरकार से सर्वोच्च पुरस्कार शिखर सम्मान (1986-87) प्राप्त हो चुका है। 1998 में मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें अहिल्या सम्मान से विभूषित किया।
भूरी बाई का कहना है कि हरेक बार जब भी वह चित्र बनाना शुरू करती हैं तो वह अपना ध्यान भील जीवन और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर पुन: केंद्रित करती हैं और जब कोई विशेष विषय-वस्तु प्रबल हो जाती है तो वह अपने कैनवास पर उसे उतारती हैं। उनके चित्रों में जंगल में जानवर, वन, वृक्षों की शांति तथा गाटला (स्मारक स्तंभ), भील देवी-देवताएं, पोशाक, गहने तथा गुदना (टैटू), झोपड़ियां तथा अन्नागार, हाट, उत्सव तथा नृत्य और मौखिक कथाओं सहित भील के जीवन के प्रत्येक पहलू को समाहित किया गया है।
भूरी बाई ने हाल ही में वृक्षों तथा जानवरों के साथ-साथ वायुयान, टेलीविजन, कार तथा बसों का चित्र बनाना शुरू किया है। वे एक दूसरे के साथ सहज स्थिति में प्रतीत हो रहे हैं।
अमेरिका तक पहुंची भूरी बाई की पेटिंग
भूरी बाई की बनाई गई पेटिंग्स ने न केवल देश बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई। उनकी पेटिंग अमेरिका में लगी वर्कशॉप में भी लगाई गई जहां उनकी पेटिंग को खूब पसंद किया गया। भूरी बाई आज चित्रकारी के क्षेत्र में एक बड़ा नाम बन चुकी हैं। वे देश के अलग-अलग जिलों में आर्ट और पिथोरा आर्ट पर वर्कशॉप का आयोजन करवाती हैं। अब केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान देने का ऐलान किया है।