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ऑनलाइन शिक्षा में फीस पर उपजे विवाद पर प्राइवेट टीचरो का भविष्य अंधकार मे

महंगी होती शिक्षा और उससे जुड़ी आजीविका

अगर देखा जाए तो भारत की शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन अगर किसी वजह से हुए हैं तो वह प्राईवेट स्कूलों की वजह से हुआ है। प्राइवेट स्कूलों के टीचरों ने अपनी मेहनत के दम पर जो शिक्षा जगत में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं, वह सरकार अपने तमाम दावों के बावजूद भी ना कर पाई। लेकिन अफसोस की बात यह है कि वहीं प्राइवेट टीचर कोरोना के कारण हुए सम्पूर्ण लॉक डाउन के चलते देश के सारे स्कूल, कॉलेज बंद होने के कारण आज पिछले तीन महीनों से बिना वेतन के खाली घर पर बैठे हैं, जिसके चलते उन्हें अपनी आजीविका के लाले पड़े हुए हैं।

इस समय सोशल मीडिया पर प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ तरह-तरह के ट्रेंड चल रहे हैं कि स्कूल नहीं तो फीस नहीं, अपनी मनमानी वसूली बन्द करो जैसे ट्रेंड रोज चल रहे है, लेकिन एक बडी़ आबादी जिससे करोड़ों लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है उस पर कोई बात नही कर रहा है।

महंगी होती शिक्षा और उससे जुड़ी आजीविका

एक औसत प्राइवेट स्कूल में लगभग 30-35 का स्टाफ होता है जिसमें बस वाले, गाडी़ वाले, आया इत्यादि लोग होते हैं। स्कूल की इसी आय से इनके परिवार का खर्चा चलता है जो कि पिछले तीन महीनों से पूरी तरह बन्द है। इसके बावजूद भी इन लोगों ने बच्चों को पूरे मन से पढ़ाया है , हर टीचर ने सारे बच्चों को अपने घर के बच्चो की तरह शिक्षा दी है।

एक प्राइवेट टीचर का औसतन वेतन तीन से चार हजार होता है, जिस से उसकी जिंदगी चलती है लेकिन यह ध्यान रहे कि उसकी आय एक मजदूर से भी कम होती है। अगर इनका ट्यूशन-कोचिंग से अपना खर्चा ना चले तो उसको और उसके परिवार की भूखा मरना पद सकता है।

सरकारी टीचर एवं प्राइवेट स्कूल के टीचर के वेतन में असमानताएं

जबकि एक सरकारी टीचर औसतन 40,000 रुपये महीने की सैलरी पाता है और शिक्षा के क्षेत्र मे इनका क्या योगदान रहता है? यह हम सबको मालूम है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा की क्या हालत है? यह किसी से छुपा भी नहीं है तब भी उनको कोरोना के कारण हुए सम्पूर्ण लॉक डाउन में घरों पर बैठे-बैठे हजारों रूपये मिल रहे हैं पर एक प्राइवेट टीचर जो जी-तोड़ मेहनत करता है उसके हिस्से में मात्र कुछ ही रुपये आते हैं, जो भी पिछले तीन महीनों से बन्द हैं।

बड़े-बड़े स्कूल फीस वसूली के नाम पर अभिभावकों से तो बड़ी- बड़ी रकम वसूल लेते हैं पर टीचरो की सैलरी बढ़ाने एवं उसे समय से देने पर हमेशा रोना रोते रहते हैं। बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूल, अपनी फीस के दम पर बड़ी-बडी बिल्डिंगे खड़ी करने वाले, बड़ी-बड़ी गाड़ियो का काफिला बढ़ाने वाले संस्थान भी इस समय अपने स्टाफ एवं उनके परिवार की समस्याओं की तरफ से अपनी आंखें मूंदे हुए हैं।

हमें जरुरत है एक सुलभ स्वास्थ्यवर्धक शिक्षा नीति की

ऐसे कठिन समय में देश की तमाम राज्य सरकारों को एकअच्छी सुलभ शिक्षा नीति की सख्त जरूरत है। सरकार को चाहिए कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों तक इन्टरनेट से पढ़ाई करने के साधन पहुंचाए, वो ऐसे हर गाँवों में इन्टरनेट के संसाधनों एवं जरुरी साधनों की व्यवस्था करे जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की पढ़ाई सुचारु रूप से हो सके।

हमारे देश की सरकार को प्राइवेट टीचरों एवं उनके परिवारों के पालन-पोषण के लिए कुछ भत्ते की व्यवस्था करनी चाहिए, जो उनके खाते मे आए भले उसके लिये सरकार को सरकारी टीचरों के मासिक वेतन से कटौती करनी पड़े या वह एक ऐसा फंड जारी करे जो उनके जीवन एवं परिवार के पालन-पोषण के लिए कारगर साबित हो।

आखिर जब पूरा देश महामारी के इस दौर से गुजर रहा है तो सरकार को समान वेतन (एक काम एक वेतन) पर गंभीरता से सोचना चाहिए। उसे प्राइवेट टीचरों का या जो इस कोरोना महामारी के चलते बेरोज़गार हुए हैं, उनके बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए।

इससे पहले कि देश की एक बड़ी आबादी अवसाद मे कोई गलत कदम उठाए इससे पहले सरकार को सचेत हो जाना चाहिए और तमाम शिक्षण संस्थाओं को भी आगे आकर यह मांग उठानी चाहिए सरकार बच्चों को फ्री में शिक्षा पहुंचाए पर उन तक शिक्षा पहुंचाने वालों के लिए भी कुछ कारगर इंतजाम करे जिससे उनकी आजीविका चलती रहे।

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