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“द ग्रेट इंडियन किचन”, कहानी हर महिला की रसोई और उसके अस्तित्व की

द ग्रेट इंडियन किचन हर महिला की कहानी है चाहे वो हाउस वाइफ हों या वर्किंग विमेन। ये कहती है कि अपने अस्तित्व और उसके सम्मान को पहचानो।

एक महिला रसोई के साथ अपना संबंध विच्छेद कभी नहीं कर सकती

“मर्द के दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है।” इस एक सूत्र वाक्य को समझने में महिलाओं का पूरा जीवन खप जाता है और महिलाएं रसोई घर का गुलाम बनाकर रह जाती हैं। नई-नई शादी के बाद पतियों के दिल तक पहुंचने के लिए रसोई घर का जो सफर महिलाओं ने शुरू किया, वह कभी खत्म नहीं होता और पूरी ज़िंदगी गुजर जाती है।

इस विषय को मलयालम भाषा के ड्रामा फिल्म “द ग्रेट इंडियन किचन” में निर्देशक जियो बेबी ने निमिषा सजयन, सूरज वंजरामुडु के स्टार कास्ट के साथ कहने की कोशिश की है और वह काफी कामयाब भी हो गए हैं। इस कहानी को गैर-मलयालम भाषी भी पसंद कर रहे हैं और सबटाइटल्स के सहारे समझने की कोशिश कर रहे हैं। इसकी एक वज़ह यह हो सकती है कि भले ही भाषाएं अलग-अलग हो पर “मर्द के दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है” इस सूत्र वाक्य के कारण तमाम गैर मलयालम भाषी महिलाओं का सफर भी रसोई के साथ जो शुरू होता है वह कभी खत्म नहीं होता है।

शायद ही इस दुनिया में कोई भाषा हो जिसको बोलने वाली महिला का संबंध रसोई से न हो। महिलाओं के जीवन से जुड़ा हुआ एक शाश्वत सच बना दिया गया है कि रसोई का काम महिलाओं का ही है। फिर चाहे वह कामकाजी महिला हो या हाउस वाइफ। वह रसोई के साथ अपना संबंध विच्छेद कभी कर ही नहीं सकती हैं। महिला का रसोई के साथ संबंध और उसको लेकर महिलाओं के अपने अस्तित्व के जुड़े सवाल को कहने की कोशिश इस कहानी में है।

क्या कहानी है द ग्रेट इंडियन किचन में?

निर्देशक जियो बेबी ने कहानी शुरू की है एक दो अजनबी (निमिषा सजयन और सूरज वंजरामुडु) के शादी के समारोह से। जहां दोनों शादी करके नए जीवन की शुरूआत करते हैं। उसके बाद निमिषा सजयन बार-बार रसोई में खाना बनाते हुए नज़र आती हैं या पति-ससुर को खाना खिलाते या घर के काम करते हुए। जहां उसके ससुर मोबाईल-टीवी तमाम इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को जीवन में मज़े से उपयोग करते हैं मगर खाने में उन्हें चूल्हे पर का चावल ही चाहिए। चटनी मिक्सर में पीसा हुआ नहीं होना चाहिए। वे कपड़े साफ करने लिए वॉशिंग मशीन के उपयोग के भी खिलाफ हैं।

यहां तक जब निमिषा सजयन डांस स्कूल में नौकरी करना चाहती है तो इसके लिए वे मना कर देते हैं। पति सूरज वंजरामुडु से होटल में खाने के दौरान टेबल मैनर्स के बारे में बोलती है तो पति नाराज़ हो जाता है। वह अपने गुस्से को इस तरह से प्रदर्शित करता है कि निमिषा को माफी मांगनी पड़ती है। कहानी में सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश की खबर टीवी पर दिखती है और निमिषा के मासिक धर्म शुरू होने पर अशुद्धता के कारण रसोई न बनाने का दृश्य सांकेतिक रूप में आता है, मगर इस विषय पर कहानी खड़ी नहीं होती है।

निमिषा पूरी कहानी में मुख्य पात्र की तरह दिखती है पर उसका अस्तित्व गायब दिखता है। ठीक उसी तरह जैसे वह किसी अजनबी पति के साथ सेक्स कर रही है पर उसमें कहीं शामिल नहीं है। आगे जानने के लिए आप खुद इस दिलचस्प कहानी को देखिए।

आपको क्यों देखनी चाहिए ये फिल्म?

इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि कुछ भी थोपने का प्रयास नहीं किया गया है। यही प्रतीत होता है कि सब कुछ कितनी सहजता से चल रहा है, सब कुछ स्वीकृत हो जैसे। पूरी कहानी किसी भी दृश्य में कहीं भी पुरुष के भयानक क्रोध या हिंसा को नहीं दिखाया गया है। सब कुछ साइलेंट हिंसा की तरह होता है – पुरुष मीठे जहर के तरह अपनी इच्छा महिला पर थोपते हैं।

पूरी कहानी में बस एक चीज़ खटकती है। वो यह कि लगातार रसोई में काम करती हुई महिला के काम की महानता को स्थापित करने की कोशिश नहीं करती है। जबकि कहानी जानती है कि रसोईघर में उसका खाना बनाने का दृश्य, या कपड़े साफ करने का दृश्य या फिर बर्तन धोने या टेबल साफ करने का दृश्य एक महिला के महान श्रम का दृश्य है, जिसका कोई भुगतान नहीं है।

चूंकि यह हर महिला, उसकी रसोई और उसके अस्तित्व से जुड़ी हुई कहानी है इसलिए इसको देखनी चाहिए। गैर मलयालम भाषी महिलाओं को भी इसलिए क्योंकि यह उनकी भी कहानी है। जो हर महिला से कहना चाहती है कि अपने स्वयं के अस्तित्व को पहचानो, उसके सम्मान को पहचानो।

ये आपकी इच्छा है कि आपको हाउस वाइफ ही बनना है या वर्किंग वूमेन बनना है पर कोई भी महिला बनने से पहले ज़रूरी है अपने अस्तित्व को पहचानने की और उस अस्तित्व को आत्मसम्मान दिलाने की। अगर महिलाएं स्वयं को पुनर्परिभाषित नहीं करेंगी तो वह अपना तो जो करेगी वह करेगी ही बल्कि अपने साथ-साथ उन महिलाओं के अस्तित्व को भी ले डूबेगी जो कई मामलों में एक-दूसरे से भिन्न हैं महिला होकर भी।

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