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भारत की वो तीन बड़ी गलतियां जो चीन के लिए मील का पत्थर साबित हुईं

बात शुरू होती है 1951 से जब चीन ने तिब्बत पर आपना दावा ठोक दिया और उसको अपने कब्जे में ले लिया। इस दौैरान हम सिर्फ मूकदर्शक बन कर देखते रहे। हम युद्ध भी नहीं कर सकते थे क्योंकि हमारी सेना उस समय इतनी समर्थ नहीं थी कि चीन की सेना का मुकाबला कर सके।

हमारी सेना में ज़रूरी समानों की भारी कमी थी लेकिन हमारे पास और भी कई रास्ते थे जिनसे हम तिब्बत को बचा सकते थे। मगर हमने चुप रहना सहीं समझा। अपने काम से काम रखने में भलाई समझी लेकिन यही हमारी सबसे बड़ी गलती थी। भारत ने सोचा कि अगर हम चीन के खिलाफ बोलेंगे तो उसकी आक्रामकता भारत के खिलाफ और बढे़गी। इसी के चलते हमने इस फैसले को स्वीकार लिया।

उस समय अगर तिब्बत को कोई बचा सकता था तो वो था अमेरिका लेकिन उसने भी कुछ नहीं किया और इसी बात का फायदा चीन को मिला। हम बिना सेना के तिब्बत को कैसे बचा सकते थे उदाहरण के साथ समझें।

अमेरिका के साथ साझीदारी न करना बड़ी गलती

चीन हमारे अरुणाचल प्रदेश को आपना हिस्सा बताता है लेकिन उसे भी पता है कि वो इसे भारत से कभी नहीं ले सकता। कारण कि अब भारत की सेना बहुत मजबूत हो चुकी है और भारत एक परमाणु समृद्ध देश है। इसलिए वो दूसरे रास्ते अपनाता है। जैसे उस हिस्से को विवादित बताकर किसी भी तरह का बाहरी निवेश नहीं होने देता। इस राज्य के लिए वर्ल्ड बैंक के हर प्रोजेक्ट में अंड़गा डालता है।

इसी तरह विश्व के तमाम बड़े मंचों पर इस मुद्दे को उठाकर हम भी तिब्बत को बचा सकते थे। यहीं हमारी सबसे बड़ी गलती रही कि हमने तिब्बत को बचाने के लिए कदम नहीं उठाए।

अब नज़र डालिए 1962 के युद्ध से कुछ सालों पहले हुई घटना पर। जब यू.एस. के राष्टपति जॉन एफ केनेडी ने भारत को न्यूक्लियर बम देने की पेशकश की और साथ ही यू.एस. के साथ साझेदारी की बात की। इससे हमें हमारे पडोसियों से होने वाले खतरे से सुरक्षा मिल सकती थी लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने यह कहकर मना कर दिया कि हम परमाणु युद्ध का समर्थन नहीं करते या यूं कहें कि उस समय भारत समझ नहीं पा रहा था कि उसे यू.एस. का के साथ हो जाना चाहिए या नहीं।

इसका एक कारण यह था कि तब की सरकार चीन को लेकर बुहत ज्यादा सेंसटिव थी। उसे डर था कि अमेरिका के साथ सुरक्षा समझौते को चीन आपने लिए खतरा मानकर भारत पर हमला ना कर दे लेकिन भारत सरकार का डर वैसे भी सच हो गया जब चीन ने 1962 में हमला कर दिया।

ऐसे में अगर हम आमेरिका के साथ अलाइंस कर लेते तो शायद स्थिति कुछ और होती। यही शायद हमारी दूसरी बड़ी गलती रही कि हमने सारे फैसले चीन को खुश रखने के लिए ही लिए।

क्या वायुसेना के इस्तमाल करने से बदल सकती थी सूरत?

अब बात करते हैं भारत की सबसे बड़ी नाकामी की। जो इतिहास के पन्नों मे भारत की सबसे बड़ी गलती के रूप में देखी जाती है। वो यह कि 1962 युद्ध में वायु सेना का उपयोग ना होना।

चीन के साथ 62 के युद्ध में हमने वायु सेना का इस्तमाल इसलिए नहीं किया, क्योंकि हमें डर था कि कहीं चीन की वायु सेना हमारे बडे शहरों पर हमला ना कर दे। हमारी खुफिया एजेंसियों के पास यह जानकारी भी नहीं थी कि चीन की सेना कहाँ पर है?

मगर बात की जाए तब की स्थिति की, तो चीन की वायु सेना इतनी समर्थ नहीं थी कि पहाड़ी क्षेत्रों में लड़ सके और उस दौरान भूटान का मौसम भी बेहद खराब बताया जाता है जो कि हमारी वायु सेना के लिए एक बहुत बड़ा एडवांटेज हो सकता था। यहां हमने फिर एक बार अपनी बचाव वाली रणनीति को ही अपनाया। अगर 62 के युद्ध में वायु सेना का इस्तमाल होता, तो शायद आज कुछ और ही परिणाम होते।

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