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प्राकृतिक आपदाओं के भीषण कहर के लिए हम ज़िम्मेदार हैं

प्राकृतिक आपदाओं के भीषण कहर के लिए हम ज़िम्मेदार हैं

मनुष्य अपनी स्वार्थ सिद्धि और तरक्की के लिए आये दिन प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहा है। इसी के चलते प्रकृति मनुष्य का इतना अत्याचार सहन नहीं कर पा रही है, नतीजा असमय होने वाले प्राकृतिक आपदाएं। ऐसी घटनाएं जो प्रकृति और पर्यावरण को हानि पहुंचाए और जान-माल का नुकसान करें उसे प्राकृतिक प्रकोप अथवा प्राकृतिक आपदा कहा जाता है।

अखबारों में आए दिन खबरों में ऐसी भयानक खबरें हमें सुनने और देखने को मिलती हैं, जिसके फलस्वरूप धरती पर बाढ़, भूकंप, जंगलों में आग, तूफान, बादल फटना, चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाएं पृथ्वी पर लगातार हो रही हैं। इन्हें रोकना मनुष्य के बस में नहीं है, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार मनुष्य खुद है।

मनुष्य प्रकृति के प्राकृतिक संसाधनों जैसे-जल, वन, मैदानों, खनिज पदार्थों और सारे प्राकृतिक साधनों का बेरोक-टोक उपयोग कर रहा है, जिसके चलते उसे अपने पर्यावरण एवं प्रकृति की लेशमात्र भी परवाह नहीं है। इसी कारण प्रकृति का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ना लाज़िमी है।

प्राकृतिक आपदाओं से होती भीषण जन-धन हानि

मनुष्य को जरुरत है कि अब वह इन प्राकृतिक संसाधनों का सोच समझ कर उपयोग करे। ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का कहर सब पर टूटता है और कई हजार निर्दोष लोग अपनी जान गंवा देते हैं। भारत ने कई भीषण प्राकृतिक आपदाओं का अनुभव किया है। 1999 में गुजरात में भारी चक्रवात हुआ था, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे।

2001 में गुजरात के भुज में दहला देने वाले भूकंप को आज भी कोई भुला नहीं सकता है। इस भूकंप ने अहमदाबाद से लेकर सूरत, जामनगर और गांधीनगर जैसे जिलों को बुरी तरीके से प्रभावित किया था। 2014 में जम्मू कश्मीर में भीषण बाढ़ आयी थी, जिसमें जान-माल का काफी नुकसान हुआ था।

कुछ साल पहले उत्तराखंड और केदारनाथ में बादल फटने के कारण, भूंकम्प और बाढ़ दोनों आ गया था। यह भयानक घटना 2013 में हुई थी। इसकी वजह से कई लोग पानी में बह गए और उनका अब तक पता नहीं चला है, इससे केदारनाथ मंदिर को भी भारी नुकसान हुआ था। प्रत्येक वर्ष असम जैसे राज्यों में बाढ़ जैसे हालात पैदा होते हैं, इससे वहां के गाँव और गरीब लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

प्राकृतिक आपदाएं कुछ वक़्त के लिए आती है और बरसों का नुकसान करके चली जाती हैं। कई मकान और बड़े शहरों को चंद मिनटों में नष्ट कर देती हैं। इमारते, बड़े- बड़े पुल और सड़के टूट कर बिखर जाते हैं। हर जगह त्राहि-त्राहि मच जाती है। बड़ी-बड़ी इमारतें भी ताश के पत्तो की तरह नीचे ढह जाती हैं। कई परिवार हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं और कभी ना भूलने वाले गम दे जाते हैं।

जिन नगरों में भूकंप और बाढ़ जैसी आपदाएं आती हैं, वे पूरी तरह से तबाह हो जाते हैं। उन्हें फिर से बनाने में सालों लग जाते हैं। ऐसी आपदाओं के दौरान हर तरीके का संपर्क चाहे बिजली हो या मोबाइल सेवा, सब बंद पड़ जाती है । देश में बाढ़ के कारण राज्यों में फसल बर्बाद हो जाती है, जिससे भुखमरी जैसी स्थिति उतपन्न हो जाती है।

भूकंप अचानक आ जाता है और पूरे जगह को प्रभावित कर देता है। पृथ्वी के सतह पर अचानक कम्पन यानी लगातार हिलने के कारण, हमे झटके महसूस होते है, इसे भूकंप कहा जाता है।

बरसात के मौसम में अक्सर बिजली गिरने के कारण कई लोगों की मौत हो जाती है। प्रत्येक वर्ष बीस हज़ार से अधिक लोग बिजली गिरने के कारण मारे जाते हैं। जब उलटी दिशा से बादल एक-दूसरे से टकराते हैं, तो बिजली पैदा होती है। बारिश के वक्त लोगों को बिजली के खम्भों के पास खड़े नहीं होना चाहिए और पेड़ के नीचे भी खड़े नहीं होना चाहिए। व्यक्ति को धातु जैसी वस्तुओं से इस वक्त दूर रहना चाहिए और ऐसे वक्त में नहाना भी नहीं चाहिए।

प्रकृति के प्राकृतिक असंतुलन से समुद्रों में उठते भीषण चक्रवात

सुनामी यानी समुन्दर तल में हलचल, दरार और अत्यधिक कम्पन के तेज लहरें उठती हैं। इसके कारण भयानक तरंगे उठती है। सुनामी आस पास के इलाकों, छोटी बस्तियों को नष्ट कर देती है। साल 2004 में हिन्द महासागर में भयानक सुनामी आईं थी, जिसकी वजह से लाखों लोग मारे गए थे। कई लोगो का आसरा छिन गया था।

सुनामी आने से पूर्व मौसम विभाग के सारे निर्देशों का पालन करना चाहिए। एक फर्स्ट ऐड बॉक्स और फोन इत्यादि अपने पास रखना ना भूलें। अगर पशु अपनी जगह छोड़कर जाने लगें तो इसका मतलब है, सुनामी किसी भी वक्त दस्तक दे सकती है।

जब किसी जगह अचानक, असंतुलित और लगातार बरसात के कारण पानी हर एक स्थान पर अत्यधिक भरने लगे, तो उसे बाढ़ कहते है। सड़के, रास्ते, नालों में पानी का अतिरिक्त बढ़ जाने के कारण आम लोगो को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कई लोगों का घर डूब जाते हैं और पशु-पक्षी पानी में डूबकर मर जाते हैं। यातायात के साधन-सुविधा सब बंद पड़ जाते हैं। साल 2005 में मुंबई में भयानक बाढ़ आई थी। हर वर्ष मुंबई में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं।

सूखा हमारे देश की गंभीर समस्या है, जिससे कृषकों को हर वर्ष दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। प्रत्येक वर्ष, महीनों तक वर्षा नहीं होती और उनकी फसलें बर्बाद हो जाती हैं । मनुष्य, पशु-पक्षियों के पास अपनी प्यास बुझाने के लिए जल प्राप्त नहीं होता जिसके कारण मनुष्य समेत सभी जीव जंतु मर जाते हैं। भूमिगत जल का अतिरिक्त इस्तेमाल, पर्वतो का खनन, यह सब आकाल पड़ने के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक हैं।

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