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“जब धर्म का चश्मा हटेगा और आप चेतेंगे, तब तक आंखें देखने लायक नहीं बचेंगी”

2021 आ चुका है और शायद अच्छे दिन भी! देखिए ना किसान आंदोलन के 90 दिन हो चुके हैं। मतलब किसान 90 दिन से सड़कों पर हैं। कहीं एसएससी सीजीएल (CGL) को लेकर हड़ताल हो रही हैं तो कहीं पीएससी परीक्षा के बाद भी ना हो रही बहालियों पर। किसान आंदोलन को लेकर रोज नई-नई गिरफ्तारियां, फिर चाहे वो टूल किट मामले में दिशा रावी हों या स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया।

शायद यही वो अच्छे दिन हैं जिसका हम बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। खैर! मैं कितनी नकारत्मक विचारधारा से भरी हूं या कहें राष्ट्रद्रोह से!बेशक एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में सांस लेने वाले आप ऐसा सोच सकते हैं। इनमें से एक भी विषय उठाने पर यानि मेरे राष्ट्रद्रोह को खारिज़ करने के लिए, राष्ट्र प्रेम की धरोहर के तौर पर एक तस्वीर सामने रख दी जाती है और वो है अयोध्या के भव्य मंदिर का खाका।

फेसबुक से लेकर वाट्सएप तक जहां-तहां आपको चंदा देते लोगों की तस्वीरें दिख जाएंगी और आपको लगेगा इससे बड़ी राष्ट्र सेवा कुछ हो ही नहीं सकती। अच्छा है! यदि यही राष्ट्र प्रेम की परिभाषा है तब अच्छा है लेकिन क्या हमारे युवाओं के लिए मंदिर का चंदा इकठ्ठा करना ही असल रोजगार है?

क्यों कोई ये नहीं समझता कि आज मंदिर-मस्ज़िद के रोजगार में लगा युवा कल इसी सियासत के चलते दंगों में भी लगा दिया जाएगा, क्योंकि अब कुछ ना सोचना, ना समझना ही राष्ट्रवाद है। महंगाई! पेट्रोल/डीज़ल, एलपीजी, खाद्य तेल के दाम आसमान चढ़ रहे हैं। किसानों के फसलों की प्राइवेटाइजेशन की तैयारी में सब लगे ही हैं। अब पेट्रोल भी 100 पर पहुंच चुका है लेकिन कोई उनपर वाद-विवाद तो क्या प्रश्न भी नहीं करना चाहता।

और भला प्रश्न क्यों करे? जब हमारे प्रधानमंत्री ही कह रहे हों कि ये पिछली सरकारों का काम है। यदि उन्होंने ध्यान दिया होता तो मध्यम वर्ग को यह मार (पेट्रोल कीमत) नहीं झेलना पड़ती।

मगर आंकड़े क्या कहते हैं?

इंडियन ऑयल के 16 फरवरी के आंकड़ों (प्राइस बिल्डअप) के अनुसार पेट्रोल पर 32.90 रुपये और डीज़ल पर 31.80 रुपये एक्साइज ड्यूटी है। यानि पेट्रोल की कीमत में 39 फीसदी और डीज़ल में 42 फीसदी हिस्सा एक्साइज ड्यूटी का है। इसमें राज्यों का वैट मिला दें तो पेट्रोल की कीमत का 60 फीसदी और डीजल का 54.5 फीसदी टैक्स में जाता है।

राज्य सरकारें भी पेट्रोल-डीजल पर वैट और अन्य लेवी बढ़ाती रही हैं लेकिन केंद्र सरकार के अनुपात में इन्होंने कम बढ़ाया है। 2014-15 से तुलना करें तो पेट्रोलियम पर केंद्र का एक्साइज संग्रह 125 फीसदी बढ़ा, जबकि राज्यों का वैट संग्रह 46 फीसदी। इसकी मार सिर्फ मेट्रो शहरों में नहीं और ना ही मध्यम वर्ग पर है बल्कि हर वर्ग पर पड़ रही है।

महंगाई की मार हर छोटे-बड़े गाँव-शहर तक

मेरा शहर (गैरतगंज) जहां बैठकर अभी मैं यह लिख रही हूं, एक छोटी सी आबादी वाला शहर है। यहां प्रति व्यक्ति औसतन कमाई 200 रु भी नहीं है। वहीं पता नहीं कितने ही लोग कोविड19 के चलते रोज़गार से भी हाथ धो बैठे हैं। यहां भी पेट्रोल की कीमत 100 पर पहुंच चुकी है। यहां मुख्य शहर से जुड़ने का जरिया ही अपना कोई वाहन है, फिर चाहे उनके बच्चों को स्कूल में दाखिला लेना हो या किसी को सरकारी अस्पताल तक पहुंचना हो।

तब आप अंदाज़ा लगाइए कि कैसे इस पेट्रोल की मार छोटे-छोटे गांव-कस्बों को पीड़ित कर रही है। फिर अभी तो खेतों में फसलें भी खड़ी हैं उनके लिए छोटे किसान उधार का ट्रैक्टर जुटा भी लें तो पेट्रोल/डीज़ल नहीं जुटा पाएंगे। मगर इससे भी कहीं ज़्यादा दुखद है हमारी तर्कशक्ति का अपाहिज होना। हालात ये हैं कि लोगों पर महंगाई की मार तो है लेकिन किसी के पास यहां इस पर बात करने का समय नहीं है।

सो कॉल्ड देशभक्त युवा सब राम मंदिर के लिए चंदा मांगने में व्यस्त हैं

इसलिये कि हर जगह हमारा सो कॉल्ड युवा राम मंदिर के लिए चंदा इकट्ठा करने में व्यस्त है। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस विभाग में कितनी पोस्ट की छंटनी की गई है? उसे नहीं जानना कि उसके घर पर आने वाले राशन पर कितने प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, क्योंकि उसके पास खर्च करने को पैसे ही नहीं हैं। तब उसे महंगाई पेट्रोल/डीज़ल की कीमतों से क्या लेना और क्या देना?

उसके पास तो भरपूर समय है, जिसे उसने रामकाज में लगा रखा है। मैं जानती हूं इस समय राम के खिलाफ होना मुझे राष्ट्रद्रोही बना सकता है लेकिन मैं राम के खिलाफ नहीं हूं। मैं उस व्यवस्था के खिलाफ हूं जिसने हमें राम के नाम पर बरगला रखा है।

यहां मैं अपनी ही लिखी एक पंक्ति का ज़िक्र कर रही हूं क्योंकि मुझे लगता है

“मैं राम की प्रजा हूं,

थोड़े ही सही राम मेरे भी हैं

हम दोनों ही व्यथित हैं, हमारे दुख बहुतेरे भी हैं।”

क्योंकि राम यदि ये देख रहे होंगे तब वो भी इस अराजकता और तानाशाही से दुखी होंगे। रामकाज में लगे लोगों से मेरा अनुरोध है, वे राम तो नहीं बन सकते लेकिन कभी गोस्वामी तुलसीदास जी के राम को पढ़िए तब आप जान पाएंगे।

‘रामकाज तभी सफल है, जब राम राज्य लाया जा सके।’

वर्ना ये लोग आपको भगवान के नाम पर भटकाकर महंगाई, बेरोजगारी, जमाखोरी का पर्दा या आज के संदर्भ में ये कहें कि आपकी आंखों में पेट्रोल/डीज़ल झोंकने जैसा है। जबतक आप चेतेंगे, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। सम्भव है तब तक आप कुछ देखने के लायक ही ना बचें।

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