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“चरित्र हर मनुष्य का होना चाहिए उत्तम, जाने क्यों चरित्रवान खोजी जाती हैं सिर्फ बेटियां?”

एक सा ही तो दर्द होता है हर बच्चे को जन्म देने में, यकीन मानिये
फिर ना जाने कैसे फर्क कर दी जाती है सिर्फ बेटियां?
मां के कोख में नहीं होती रसोई, यकीन मानिए
फिर ना जाने क्यों चूल्हे में झोंक दी जाती है सिर्फ बेटियां?

जन्म के वक्त एक जैसे ही होते हैं सारे बच्चे, यकीन मानिए
फिर ना जाने कैसे कमजोर हो जाती हैं सिर्फ बेटियां?
सृष्टि चलती है स्त्री पुरुष दोनों से, यकीन मानिए
फिर ना जाने क्यों उपभोग मात्र वस्तु समझी जाती हैं सिर्फ बेटियां?

जन्म से नहीं आती है दया, ममता, त्याग, प्रेम जैसी भावनाएं, यकीन मानिए
फिर ना जाने क्यों इन भावनाओं का बोझ ढोती हैं सिर्फ बेटियां?
कहने को तो संस्कृति, प्रथा, रीतियां होती है हर किसी की, यकीन मानिये
फिर ना जाने क्यों सभी पाबंदी और बंधनों से बंधी होती हैं सिर्फ बेटियां?

वैसे तो चरित्र हर मनुष्य का होना चाहिए उत्तम, यकीन मानिये
फिर ना जाने क्यों चरित्रवान खोजी जाती हैं सिर्फ बेटियां?
हर जीव स्वछंद है इस संसार में विचरने को, यकीन मानिये
फिर ना जाने क्यों दहलीज़ तक सीमित कर दी जाती हैं सिर्फ बेटियां?

मां-बाप का ही खून होता है उसके बच्चे में, यकीन मानिये
फिर ना जाने क्यों पराई कहलाती हैं सिर्फ बेटियां?
प्रकृति ने कोई अंतर नहीं किया है, यकीन मानिये
सिर्फ ढोंगी समाज का अभिशाप होती है बेटियां!

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