परंतु, एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय “बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय” जिसमें दुनियाभर के लगभग तीस हज़ार से ज्यादा छात्र/छात्राएं रहकर अध्ययन करते हैं, छात्रों की शिक्षा को लेकर अपना उदासीन रवैया अपनाया हुआ है। जिसको लेकर विश्वविद्यालय के छात्रों में भारी आक्रोश है और उन्होंने विश्वविद्यालय के मुख्य सिंह द्वार को घेरकर विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ अनशन प्रारंभ कर दिया है, तथा आंदोलनरत छात्रों ने विश्वविद्यालय के खुलने तक अनवरत अनशन जारी रखने का आह्वान किया है।
क्या हैं छात्रों की मांग?
विश्वविद्यालय के छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनकी शिक्षा को लेकर बिल्कुल भी तत्पर नहीं है और ये हमारे भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। उनका साफ तौर पर कहना है कि जब दुकानें,शादी – विवाह, ठेके, सिनेमाघर सब कुछ पूर्ववत यथावत चलने लगा है, तो फिर विश्वविद्यालय को क्यों नही खोला जा रहा है?
जब कोरोना के समय देश में चुनावी रैलियों से लेकर तमाम कार्य किए गए हैं तो फिर छात्रों के लिए विश्वविद्यालय खोलने से क्या समस्या है ? अब तो कोरोना कागजों तक ही सिमट कर रह गया है तो फिर विश्वविद्यालय क्यों नही खुल रहा है? क्या सबसे गैरजरूरी हमारी शिक्षा ही है? जिसको पूरी तरह से नजरंदाज किया जा रहा है?
विश्वविद्यालय खोलने से प्रशासन अपने हाथ क्यों खड़े कर रहा है?
इन्हीं तमाम मांगों को लेकर छात्रों ने विश्वविद्यालय के मुख्य सिंह द्वार पर अनिश्चितकालीन अनशन जारी कर दिया है और इन सबके चलते विश्वविद्यालय प्रशासन के हाथ- पांव फूलने लगे हैं। कुलपति अपने तमाम मातहत अधिकारियों को भेजकर छात्रों से बातचीत कर के आंदोलन को खत्म कराने की कोशिश में लगे हुए हैं, लेकिन इस तरह बातचीत का कोई भी निष्कर्ष नहीं निकल पाया है।
छात्रों का साफ तौर पर कहना है, कि जब सभी कार्य चालू हो चुके हैं तो फिर शिक्षा बहाल क्यों नहीं की जा रही है।हमारी मांग है कि सबके लिए विश्वविद्यालय खोला जाए और हमारा अध्ययन-अध्यापन का कार्य प्रारंभ किया जाए।जबकि वहीं विश्वविद्यालय प्रशासन चरणबद्ध तरीके से विश्वविद्यालय खोलने के अपने शासनादेश पर अड़ा हुआ हुआ है। विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि एक साथ सभी छात्रों के एकत्रित होने की स्थिति में कोरोना संक्रमण की संभावना बढ़ सकती है। इसलिए एक साथ सबके लिए हम विश्वविद्यालय खोलने में असमर्थ हैं।
कोरोना के नाम पर गुमराह कर रहा है विश्वविद्यालय प्रशासन?
आंदोलनरत छात्रों का कहना है कि कोरोना के नाम पर छात्रों को गुमराह किया जा रहा है। जब हम से ऑफलाइन क्लासेज का शुल्क लिया जा रहा है, तो हमें ऑनलाइन क्लास करने को मजबूर क्यों किया जा रहा है? कई छात्रों का ये भी कहना है कि ओपन बुक परीक्षा से पूर्व, सेमेस्टर फीस को लेकर छात्रों के ऊपर दवाब बनाया गया था कि बगैर फीस जमा किए पोर्टल नहीं खुलेगा,जिसके कारण छात्रों को कई राज्यों का सफ़र करके फीस जमा करने आना पड़ा था, तब वो परीक्षा दे पाए थे।
ऐसे हालात में छात्रों के मन में आक्रोश भरा पड़ा है और वो किसी भी स्थिति में विश्वविद्यालय खुलने से कम पर समझौता करने को तैयार नहीं हैं। छात्र अपनी बात पर अड़े हुए हैं कि लगभग एक साल के समय में जब विश्वविद्यालय प्रशासन हमारी सुरक्षा की व्यवस्थाएं नहीं कर पाया तो आगे भी कर पाएगा इस बात की क्या गारंटी है, प्रशासन हमें कोरोना का डर दिखाकर अपनी गलतियों को छुपाना चाहता है और हमें गुमराह कर रहा है।
बीच का रास्ता ही रह गया है एकमात्र विकल्प?
छात्र और प्रशासन की इस लड़ाई में अंतिम विजय किसकी होने वाली है? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा,लेकिन कहीं ना कहीं छात्रों की मांगें जायज हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन को अपना पूरा खाका छात्रों के सम्मुख रखकर उन्हें आश्वस्त कराकर, उनका जल्द से जल्द अनशन खत्म कराना चाहिए।
साथ ही साथ छात्रों को भी तुरंत कॉलेज खोलने वाली अपनी जिद्द छोड़कर कुछ दिनों की और मोहलत विश्वविद्यालय प्रशासन को देनी चाहिए, ताकि वो जल्द से जल्द अधूरी रह गई तैयारी को पूरा करे और उनका पुनः अध्ययन-अध्यापन का कार्य प्रारंभ किया जा सके।