कुल्टा, छिनाल, वेश्या, रंडी, पतुरिया, तवायफ, स्लट, जानि और भी ना जाने क्या-क्या बोली बना ली है समाज ने! इन सभी शब्दों पर गौर करें, तब पाएंगे कि सभी महिलाओं से ही संबंधित हैं, जिसे समाज में आज भी गालियों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
यह जानकर हैरानी तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिए कि ये जो सभी शब्द हैं, ये महिलाओं को अपमानित करने के सबसे उत्तम कोटि के समझे जाते हैं।
जबकि इन सभी शब्दों का मतलब ही अलग है। इनमें से एक भी शब्द गाली नहीं है। यानि जिसका काम जैसा होता है, वैसे ही उसका नाम रख दिया जाता है। जैसे सुनार, लोहार, बढ़ई आदि।
ग्रंथों में भी कुल्टा का ज़िक्र
वैसे तो कुल्टा शब्द वेद-पुराणों में भी आया है। नज़र डालते हैं ब्रह्म वैवर्त पुराण में लिखित अंश पर- “जो स्वतन्त्र होती है, वह स्वभाव से ही दुष्टा है। उसे निश्चय ही ‘कुल्टा’ कहा गया है, जो दुष्टा है। मनुष्यों में अधम है मगर पुरुष का सेवन करती है, वही सदा अपने पति की निन्दा करती है। अवश्य ही वह किसी नीच कुल की कन्या होती है।”
-ब्रह्मखण्ड : अध्याय 15
अर्थ तो यही निकलता है कि जो स्वतन्त्र हो, आज़ादी पसंद करने वाली हो, वह कुलटा है। अजीब विडंबना है ना? खुद का भला सोचने वाली औरत कुल्टा, कुलक्षिणी? समाज ने वो किया जो मन में आया, जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना ही नहीं।
वेश्या महज़ एक पेशा या फिर गाली?
यह भी वही पेशा है जैसे और काम। क्या हुआ अगर उसने अपने जिस्म की बोली लगाकर अपना भरण-पोषण किया? क्या हुआ अगर उसने अपने शरीर का इस्तेमाल अपने पेट को पालने के लिए किया? वेश्या शब्द अक्सर साहित्य विधाओं में महिला के लिए इस्तेमाल होता है, जो अपनी कला से किसी पुरुष का मन मोह लेती है। वैसे भी हम सभी जानते हैं कि सभ्य समाज के सभ्य पुरुष इनकी गलियों को रंगीन करते हैं।
विवेकानंद जी ने कहा था, “उस दिन मेरे मन में पहली बार संन्यास का जन्म हुआ। उस दिन वेश्या में भी मुझे माँ ही दिखाई पड़ सकी। कोई विकर्षण ना था।”
रंडी! महिलाओं के चरित्र को अपमानित करता एक शब्द
नाच, गाने वाली, अपना पेट पालने वाली रंडी कही जाती है। दुश्चरित्रा और व्यभिचारिणी स्त्री कही जाती है, आज कल तो यह शब्द गाली के रूप में कुछ ज़्यादा ही मशहूर हो गया है।
हवा में उड़ने की ख्वाहिश रखने वाली मैं!
बाहर अकेले घूमने वाली मैं,
शॉर्ट्स पहनने वाली मैं
बाल खोलकर, उछलकर चलने वाली मैं,
अजीब है ना, ये सब करना भी मुझे रंडी बना जाता है।
करीना को रंडी का ताज पहनाने वाले क्या अनकहे ही अपनी बेटियों को भी रंडी नहीं बना देते हैं? दीपिका, आलिया, सब रंडी फिर हम और आप क्या?
रंडी! रंडी! रंडी! तो अब यही सही, अब मुझे रंडी बनना है। आसमान को छूना है और ज़मीन को भी ओढ़ना है और यदि यह सब दुश्चरित्र होने की लक्षण है, तब हां आज की लड़की को वही बनना है।
शहर में हैं तो ‘Slut’ और ‘Whore’ जबकि गाँव में हैं तो डायन और कुलक्षिणी बता कर मार दिया जाता है। वहीं, अगर पुरुष अपना जिस्म बेचे या बोली लगाए तो उसको कोई नाम क्यों नहीं दिया गया? हां! अंग्रेज़ी में ऐसे पुरुषों को ‘जिगोलो’ कहा जाता है, जिसको हम गालियों के तौर पर नहीं इस्तेमाल करते। इसका सीधा यही मतलब हुआ कि गालियां इंसानों की देन हैं। इसका यथार्थ से कोई सम्बन्ध नहीं है।
यह महज़ गालियां नहीं हैं, यह गन्दी सोच है जो पुरुषवाद के द्वारा विकसित की गई है, जो समाज में गालियों के रूप में महिलाओं को शामिल करते हैं।