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क्या लेफ़्ट- कांग्रेस गठबंधन बंगाल चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबला बना रहा है

 

क्या लेफ्ट – कांग्रेस गठबंधन बंगाल चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबले बना रहा है

 

बंगाल विधानसभा के चुनाव अप्रैल महीने में होने जा रहे हैं 294 विधानसभा सीटों के लिए मतदान 8 चरणों में होगा चुनाव में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच है भगवा पार्टी के अकर्मक  प्रचार और टीएमसी नेताओं के पाला बदलने से चुनाव काफी दिलचस्प गया है। 10 सालों से बंगाल की सत्ता पर काबिज ममता बनर्जी की नहीं है कि चुनाव साख का सवाल बन गया है लेकिन उन दोनों पार्टियों के अलावा कांग्रेस लेफ्ट गठबंधन में चुनाव में अपनी दावेदारी पेश कर रहा है इस गठबंधन की कोशिश है कि ममता बनर्जी के विरोधी वोट उन्हें भी मिले ताकि वह अपने वर्चस्व को राज्य में बरकरार रख सके।

 

कांग्रेस – लेफ्ट पार्टियों के लिए अस्तित्व का सवाल है विधानसभा चुनाव

 

करीब 37 साल तक पश्चिम बंगाल में हुकूमत करने वाली लेफ्ट पार्टियों के लिए यह चुनाव अस्तित्व का प्रश्न बन चुका है क्योंकि बीजेपी का बढ़ता जनाधार का सबसे ज्यादा असर कम्युनिस्टों पर पड़ा है 2019 के लोकसभा चुनाव में लेफ्ट का वोट प्रतिशत 2014 लोकसभा चुनावों के 16% के मुकाबले 2% रह गया है वह राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस भी अपने वर्चस्व के लिए संघर्ष कर रही है 2016 के विधानसभा चुनाव में भी इन दोनों पार्टियों ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था और 76 सीटें जीती थी एक बार गठबंधन में फुर्फूरा शरीफ दरगाह के पास की नवगठित पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट भी शामिल है।

 

 क्या तृणमूल कांग्रेस के अल्पसंख्यक वोटरों  में सेंध लगाएगा कांग्रेस – लेफ्ट गठबंधन

 

 बंगाल में 28 फ़ीसदी अल्पसंख्यक आबादी है और करीब 100 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटरों का असर चुनाव नतीजों पर पड़ता है 2011 से ही टीएमसी की कामयाबी में मुसलमानों के वोटों का अहम योगदान माना जाता है इससे पहले अल्पसंख्यक वोटों का एक बड़ा हिस्सा लेफ्ट पार्टियों की तरफ रहता था मौजूदा परिस्थितियों में कांग्रेस लेफ्ट और आईएसएस का गठबंधन मुस्लिम वोटों में भारी सेंधमारी कर सकता है फुर्फूरा शरीफ के पीरजादा अब्बास हुगली जिले के आसपास के चार जिलों में मुस्लिम आबादी में अपना दबदबा रखते हैं और बंगाली मुसलमानों के बीच एक प्रभाव वाला नाम है इससे पहले उनका अघोषित समर्थन ममता बनर्जी की पार्टी की तरफ रहता था। गौरतलब है कि 2016 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट कांग्रेस गठबंधन को 40 मुस्लिम बहुल सीटों पर कामयाबी मिली थी इसी उम्मीद से पार्टी ने आइएसएफ से हाथ मिलाया है।

 

त्रिकोणीय मुकाबले से किस पार्टी को ज़्यादा नुकसान

 

बीजेपी और टीएमसी के इर्द-गिर्द घूम रहे बंगाल चुनाव में कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन किस पार्टी के लिए ज्यादा नुकसानदेह साबित हो सकता है इसको लेकर अलग-अलग राय है एक राय यह भी है कि अगर कांग्रेस गठबंधन टीएमसी विरोधी वोटों का बिखराव करता है तो इसका असर बीजेपी की उम्मीदों पर पड़ेगा क्योंकि तृणमूल का वोट गिरा आफ पिछले तीन चुनावों में हर बार बड़ा है यहां तक कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को 43% वोट मिले थे जबकि पार्टी 34 सीटों से 22 पर सिमट गई थी और यह वोट ग्राफ ममता बनर्जी अपने पास बनाए रखने में कामयाब रहती है तो बीजेपी के लिए जीतना काफी मुश्किल होगा वही है वही एक राय यह भी है कि लेफ्ट कांग्रेस गठबंधन से ममता को अल्पसंख्यक वोटों का नुकसान होगा इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है जहां-जहां 15 से 30% मुस्लिम वोट है वहां ध्रुवीकरण की रणनीति बीजेपी की नैया पार लगा सकती है।

 

बंगाल में सत्ता हासिल करना बीजेपी की प्रमुख योजना में शामिल है इसी वजह से पार्टी आक्रमक प्रचार में लगी हुई है श्यामा प्रसाद मुखर्जी की कर्मभूमि में बीजेपी को सफलता पार्टी की बड़ी रणनीतिक और ऐतिहासिक कामयाबी होगी।

कांग्रेस – लेफ्ट गठबंधन अपने वर्चस्व को बनाए रखने के अलावा टीएमसी के विकल्प के तौर पर पेश कर रही है लेकिन पार्टी के वोट का एक बड़ा हिस्सा  हिंदुत्व के नाम पर बीजेपी के पास चला गया है।

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