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हस्तमैथुन करना कोई शारीरिक या मानसिक बीमारी नहीं है

मास्टरबेट की बात से डर गए जी ? मर्दों के बारे में कुछ ज़रूरी बातें

एक बार काम के सिलसिले में, मैं एक मीटिंग में था। मैंने कुछ चेक करने के लिए अपना फोन ओपन किया और  जो देखा उससे मेरे होश ही उड़ गए ! मेरी आंखों के सामने फ्लेशलाइट (योनि के आकार का सेक्स टॉय जो पुरुष हस्तमैथुन करने के लिए इस्तेमाल करते हैं) का विज्ञापन था। यह देख कर मैंने घबरा कर अपने फोन को इतनी जोर से दबाया कि फोन ही बंद हो गया ! वैसे मुझे उस सेक्सटॉय के विज्ञापन को देखकर इतना आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए था।

बीती रात, मैं अपनी अकेली रातों को रंगीन करने के लिए फ्लेशलाइट ही गूगल कर रहा था और सोच रहा था कि तीन हज़ार वाली इस रंगीन मिजाज़ी लाइट को खरीदा जाए या अपनी हाथ से ही गाड़ी चलाई जाए। सस्ता डुप्लीकेट चाइनीज़ मास्टरबेटर खरीदने का रिस्क नहीं लेने का, बाबू भईया कहीं लेने के देने ना पड़ जाए।

मैंने कभी भी अपनी जान-पहचान के मर्दों को मास्टरबेटर्स के बारे में बात करते हुए नहीं सुना। एक बार यूं ही अपने सिंगल मित्रों से पूछा, कि क्या वो कभी इसका इस्तेमाल करना चाहेंगे? यह सुनकर उन्होंने मेरी ओर ऐसे देखा, जैसे मैंने उनकी मर्दानगी पर ही सवाल उठा दिया हो। दुनिया में शीशे और दिल से भी नाजुक एक चीज़ होती है, जो कभी भी टूट सकती है- वह है हमारे भारतीय मर्द का अहंकार।

 खासतौर पर जब बात सेक्स की हो, वैसे भी स्ट्रेट मर्द एक से माहौल में पले बढ़े होते हैं। जिसमें हर आदमी और औरत के बीच के शारीरिक रिश्ते को ही सही माना जाता है, जिससे हर मर्द को लगता है कि सेक्स करना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। इसके साथ ही वे मानते हैं कि औरतों पर भी उनका जन्मसिद्ध अधिकार है।   

मैं विकलांग हूं और अपनी बीमारियों से जूझता रहता हूं। इसके चलते मेरे अन्दर सवाल पैदा होते हैं। अपनी इन दिक्कतों की वजह से मुझे हमेशा लगता है, कि शायद मैं किसी भी चीज़ पर हक नहीं जता सकता, बस प्यार और नेकी की मांग कर सकता हूं। इस वजह से मैं अपने बदन से खुद सुख पाने की नई कोशिशें भी करता रहता हूं।

हमारे दिमाग में सिर्फ औरत आदमी के बीच होने वाले सेक्स की छवि, फेविकोल लगा के छप गयी है। यह हाल है कि लड़का ऊपर, लड़की नीचे वाली पोजीशन के अलावा किसी और तरह का सेक्स का ज़िक्र भी आउट ऑफ सिलेबस लगता है। इस बदस्तूर सोच के चलते, मेरी कई प्रेम कहानियां शुरू होने से पहले ही समाप्त हो गईं हैं।    

अपने शरीर एवं उससे जुड़ी किसी भी समस्या पर खुलकर बात करें 

एक खास समय की बात है, मेरा छोटा सा अफेयर चल रहा था। उसी दौरान मेरे मूत्र मार्ग में इन्फेक्शन हो गया(ये मेरी कमज़ोर कड़ी है, एक नार्मल मर्द के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं होती पर मुझ जैसे पुराने इन्फेक्शन से जूझने वालों के लिए, यह खतरे की घंटी होती है। इसकी वजह से मेरी प्यार की गाड़ी पर ब्रेक लग जाता है, पूरा चक्का जाम हो जाता है। मैंने कई तरीके ढूंढें जो ‘काम’ के काम आते हैं। इसके चलते मैं तीन हज़ार का लिंग का आकार बढ़ाने वाला, ‘पीनिस एक्सटेंडर’ ले आया। क्या यह काम आएगा या नहीं? इसके बारे में कैसे बात करूं? उस समय किस्मत खराब थी, इस समय के चलते मैं कोई निर्णय नहीं ले पाया और उस अफेयर का प्रोग्राम समय से पहले ही ‘ऑफ एयर’ हो गया।

मुझे अपने शरीर को लेकर शर्माना नहीं चाहिए, पर किसी भी छोटे-बड़े रिलेशनशिप में पड़ने से पहले अपने शरीर के बारे में बताने में शर्मिंदगी महसूस होती ही है। मेरे शरीर की कमियों के बारे में एक पूरी पोथी बन जाती है और जब तक आप पूरी पोथी पढ़ कर समझ पाएं, सामने वाला जा चुका होता है। चाहे कोई कुछ भी कहे, विषमलैंगिक आदमियों और औरतों को बड़े टिपिकल लोग ही पसंद आते हैं।  

अगर आपकी कोई विकलांगता है, तो अपनी सेक्सुअल चाहत को बयान करना और मुश्किल लगने लगता है। मेरा एक दोस्त पैराप्लेजिक है- यानी उसके शरीर के निचले भाग में पैरालिसिस/paralysis है। जब उसने खुद को चरम सुख देने के रास्ते में आने वाली दिक्कतों के बारे में मुझे बताया, मैं हक्का बक्का रह गया। मैंने इसके बारे में पहले सोचा ही नहीं था। उसकी बात सुन कर खुद को छूकर आनंद पाना, स्पेशल अधिकार सा लगने लगा जो कि हर किसी को नहीं मिलता।

ऐसा नहीं होना चाहिए, बहुत गहरी विकलांगताओं के साथ जीने वालों के लिए एक उपकरण होना चाहिए। जिससे वो भी चरम सुख का आनंद पा सकें। हमें सेक्स थेरेपिस्ट की ज़रुरत है, जो हमें इसके बारे में समझा सके और हमारी बातें सुन सकें। हमें कितना कुछ करना बाकी है, पर फिर भी कोई एक्टिविस्ट इसके बारे में हमसे बात नहीं करता है।

अक्सर विकलांग इंसानों के लिए यह बातें करना आसान नहीं, ज़्यादातर लोग अपने परिवार के साथ रहते हैं। जो उनकी देखभाल करते हैं, उनके साथ और सामने सेक्स की बात करना, चुल्लू भर पानी में डूब मरने जैसा लगता है। लोगों की नज़रों में, विकलांगता सिर्फ दिन ब दिन जीने की कोशिश के बारे में है। उनकी बातों को सुनकर लगता है कि हमें अपनी इच्छाओं के बारे में बात ही नहीं करनी चाहिए।

सेक्स कोई शर्म का विषय नहीं है, इस पर खुलकर बात होनी चाहिए 

ये सारी बातें मुझे वापस मुद्दे पर ले आती हैं, मर्दों का खुद को आनंद देने वाला मुद्दा। सही शब्दों में आत्म-आनंद,  हम उसके बारे में क्यों बात नहीं करते हैं? क्या इसलिए क्योंकि पितृसत्ता (patriarchy) की दुनिया में, सेक्स मर्दों की जागीर मानी जाती है? मर्दानगी को लेकर जो एक नॉर्मल धारणा है ना कि सब सही चल रहा है तो फिर बात क्यों करें ! या फिर शायद इन दोनों कारणों  से! मतलब अगर कोई सही-स्वस्थ दिखने वाला मर्द सेक्सोलॉजिस्ट के पास जाना चाहे तो उसकी इज़्ज़त चौपट हो जाए।

क्योंकि भाई, समाज बात का बतंगड बना देगा। ऐसी सोच की वजहों से तो नीम-हकीमों के धंधे चलते हैं। जो शहर की दीवारों पर मर्दों की समस्याओं का हल निकालने का दावा करते हैं। “अपने नजदीकी बाबा या दवाखाना पहुंचें !”

हम एक ऐसे समाज में रहते हैं, जहां अगर औरतें अपने आपको सुख देने की सोचें, तो उसे एक नुमाइशी किस्म का सेक्सुअल रूप दे दिया जाता है। मर्द सेक्स के बारे में बात करें तो चलेगा। लेकिन, औरतों को यह करते हुए सुना तो, सब फुसफुसाने लगते हैं। अगर मर्द हस्तमैथुन या सेक्स के चुटकुले शेयर करें तो चलेगा। पर, उसके बारे में मिल कर, बैठ कर बात करना ! ये उनके लिए असंभव सा काम है ! कैसे क्या होता है? कितना मज़ा आता है? कुछ भी नहीं।

जिसे हम मर्दानगी कहते हैं, उसके अंदर ही अंदर ये सोच बसी है कि केवल औरतों और आदमियों के बीच का सेक्सुअल सम्बन्ध, नार्मल है- यानी वही हेट्रोनोर्मेटिविटी। हमें यह बताने की कोशिश, कि हम कैसे और किस से प्यार कर सकते हैं?  किस-किस रूप में सेक्स का आनंद उठाना चाहिए और किस रूप में नहीं? आनंद की बात करने पे भी सामाजिक पाबंदियां हैं। 

यहां बात सिर्फ विकलांगता की नहीं है। स्वयं को आनंद देना, हर एक की सेक्सुअलिटी का गहरा हिस्सा है। इसके बारे में खुलकर बात करनी चाहिए। इसे प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे अन्य मर्दों को भी आत्म-आनंद के नए पहलू पता चलेंगे। अपनी मर्दानगी का प्रमाण दूसरों को देने से पहले, वो खुद को सुख देने के बारे में सोचेंगे। तरह-तरह के शरीर, तरह-तरह के अनुभव, इस पर भी बात करना ज़रूरी है।

एक दूसरे से सीखने-समझने के मौके मिलेंगे। समाज को इसकी ज़रूरत है। सेक्स में जीत के झंडे कैसे गाड़ते हैं, ये सिखाने से बेहतर है कि उनको अपने शरीर से प्यार करना सिखाया जाए। जब वो अपने शरीर को समझेंगे, तभी तो दूसरे के शरीर को भी समझ पाएंगे। इससे इमोशनल और साइकोलॉजिकल, दोनों तरीकों से उनका फायदा होगा।

सेक्स से जुड़ी भ्रांतियों को समाज से दूर करना होगा  

सेक्स से सम्बंधित जो शर्म है, हिंसा है, सब कम होगी। मर्ज़ी का मतलब समझ आएगा। दुनिया बेहतर होती जाएगी। विषमलिंगी लोगों को ‘नार्मल’ मानकर और उनके आगे-पीछे नियम बनाकर, समाज सबकी सेक्सुअल सोच को सीमित कर देता है और अगर आप विकलांग हैं, फिर तो और भी ज्यादा!

मुझे व्यक्तिगत रूप से ऐसा लगता है कि स्वयं को आनंद देने के बारे में खुलकर बात करने से विकलांग लोगों का बहुत फायदा होगा। हमारी ये दुनिया कितनी पेचीदा बन गयी है। जहां सेक्स का दरवाज़ा शादी के बाद खुलता है। ज़िंदगी में कितनी बार ‘ना ’ सुनना पड़ता है, कितनी बार इकतरफा प्यार हो जाता है।

ऐसे में, अगर अपने शरीर को प्यार करने, और उसे आनंद देने के तरीके मिल जाएं तो बहुत कुछ बेहतर हो जाएगा इससे हमारी पर्सनालिटी निखरेगी, आत्म-विश्वास बढ़ेगा। हमें उम्मीद मिलेगी कि भविष्य में बनने वाले रिश्ते सफल हो सकते हैं। ज़िंदगी में मिठास आएगी। मज़ेदार नई कहानियां भी तो मिलेंगी ! खासकर उन मर्दों की, जिनके निजी शस्त्र कभी चाईनीज हस्तमैथुन वाली मशीन में फंसे हों। हा-हा!


नोट- अभिषेक अनिका एक लेखक, कवि और रिसर्चर हैं। अपने बारे में बताते हुए वो अपनी विकलांगता और एक पुरानी बीमारी का ज़िक्र करते हैं, क्योंकि यह उनके क्रिएटिव और एकेडमिक कोशिशों को आकार देते हैं।

लेख- अभिषेक अनिका, चित्रण- एक्सोटिक डर्टबैग, अनुवाद- नेहा, प्राचीर

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