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ब्रज की विश्वप्रसिद्ध अनूठी लट्ठमार होली का त्यौहार

ब्रज की विश्वप्रसिद्ध अनूठी लट्ठमार होली का त्यौहार

                                       “मेरी चुनर में पड़ गयो दाग री, कैसो चटक रंग डारो”

ऐसी मान्यता है कि ब्रज में होली खेलने के रिवाज़ की 5000 साल पुरानी परंपरा है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष होली का उत्सव चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। होली का उत्सव पूरे हर्षोल्लास के साथ पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा होली की उमंग भगवान श्री कृष्ण के बृज क्षेत्र के बरसाने में देखने को मिलती है। जहां देश भर में से होली अधिकतम 3 दिन तक मनाई जाती है, वहीं ब्रज में इस त्यौहार के रंग महीने भर तक उड़ते हैं।

क्या है होली के त्यौहार की कहानी

बसंत पंचमी की तिथि से यहां पर होली के उत्सव की धूम शुरू हो जाती है। यह त्यौहार भगवान श्री कृष्ण और राधा के प्रेम संगम का है। नए कपड़ों और नई साड़ियों के साथ बृज की भूमि में होली खेलने का रिवाज़ है, यहां की जो हुरियारिन हैं। वे नई दुल्हन की तरह इस रंग भरे उत्सव के लिए सजती हैं। यह श्रृंगार पूरे तन-मन-धन से पूरे आत्मसमर्पण के संग वह ठाकुर जी के साथ होली खेलने के लिए करती हैं।

विश्व प्रसिद्ध ब्रज की लट्ठमार होली का रिवाज़

नंदगांव से भगवान श्री कृष्ण होली खेलने के लिए अपने गांव वालों के साथ बरसाना जाया करते थे और गोपियां उन्हें लाठियों से मारा करती थी। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ब्रज में ‘लट्ठमार’ होली खेली जाती है और बृज की लट्ठमार होली की पूरे देश में अपनी एक अलग चमक ही नहीं है, बल्कि विदेशी सैलानी यहां की होली को देखने के लिए और सुंदर छटा को अपने नजरों में कैद करने के लिए आते हैं।

इसी परंपरा को निभाने के लिए बरसाने वाले गोपी भाव में आते हैं। नंद गांव वाले गोपभाव में आते हैं, तब वहां होली होती है। होरिहार नंद गांव से बरसाना होली खेलने जाते हैं और गोपियां उन्हें लट्ठ मारती हैं, इस पल को जीने के लिए होरिहार वर्ष भर इंतजार करते हैं। धोती,बगलबंदी,पाक सजाए मस्ती में वह होरियारिनों को होली खेलने के लिए आमंत्रण देते हैं। लट्ठ की तड़तड़ाहट और उड़ते हुए रंग गुलाल के साथ वहां के दृश्य को लोग अपने दिलों में संजो लेते हैं।

मथुरा की फूलों और लड्डुओं की अनोखी होली

मथुरा ही एक ऐसी जगह है, जहां फूलों से,लड्डुओं से होली खेलने का रिवाज़ है। ब्रज में कई मंदिरों में अनेक प्रकार के फूलों को भक्तों के ऊपर उड़ाया जाता है। भगवान द्वारिकाधीश ने यहां भक्तों के संग होली खेली और भगवान के साथ उनके श्रद्धालु जमकर आनंद लेते हैं।

ब्रज की लट्ठमार होली के अनूठे रंग

विश्व प्रसिद्ध होली के नाम से प्रसिद्ध बृज की लट्ठमार होली में प्यार, मोहब्बत, मिठाई, ठंडाई, पिटाई तथा ग्वालिनों के साथ ठिठोली करने वाली होली को देखने प्रतिवर्ष लाखों-करोड़ों लोग आते हैं। ब्रज में उड़ते गुलाल और पिचकारियों के रंग में रंगने के लिए श्रद्धालु आतुर रहते हैं। उनको ऐसा आनंद आता है, जैसे भगवान श्री कृष्ण की कृपा बरस रही हो।

यहां सात रंगों वाला लाल, हरा, पीला, तोतई, केसरी, चंदन और नारंगी रंग का सतरंगी गुलाल विशेष रूप से तैयार किया जाता है। खास बात यह है कि ब्रज में केसरी रंग के गुलाल की सबसे ज्यादा मांग है। यहां के गुलाल की खासियत यह भी है कि यह किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाता। इन्हीं रंगों के साथ ब्रजवासी कृष्ण भक्ति में सराबोर प्रेम सद्भाव के साथ होली खेलते हैं।

ब्रज की होली में रंग है, हुड़दंग है, तरंग है, उमंग है, भाईचारा तथा हुरियारिनों का प्रेम है। यहां की फिजाओं, बहारों और ब्रज की हर गली में उमंग है। यह त्यौहार है, हिंदुस्तान की महान सभ्यता और संस्कृति को अपने दिलों में संजोकर रखने का है। यह त्यौहार गालों में गुलाल मलने तथा पानी से खेलने का नहीं है। यह त्यौहार है, पुरानी रंजिशे मिटाकर प्रेम सद्भाव हर्षोल्लास के साथ अपनी संस्कृति सभ्यता को संजो कर रखने का है।

इस वर्ष होलिका दहन 28 मार्च 2021 को तथा 29 मार्च 2021 को होली का उत्सव मनाया जाएगा। गौर करने की बात यह है कि अब की बार पूरे भारत में ब्रज की होली कोरोना कॉल की दृष्टि से कैसी होगी ।

              “हम तो बृजवासी हैं ब्रज की होली हमारी जान, कान्हा को जो धाम बाकी होरी है पहचान”।

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