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भारत की सांस्कृतिक विरासत कुंभ मेला और उससे जुड़ी मान्यताएं

कुंभ मेला भारतीय सांस्कृतिक विरासत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ऐसी मान्यता है कि इंदु के बेटे जयंत के द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कलश लेकर भागते समय नासिक, उज्जैन, प्रयागराज तथा हरिद्वार में कुछ बूंदों के गिरने से ये स्थान पवित्र हो गए। कुंभ का आयोजन हर 12 वर्षों के अंतराल पर किसी एक पवित्र नदी के तट पर होता है।

हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज में त्रिवेणी (गंगा, यमुना और सरस्वती) के संगम पर कुंभ मेला का आयोजन होता है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के वृंदावन और दक्षिण के कुंभकोणम में भी ऐसी परंपरा का भी संदर्भ मिलता है।

कब लगता है कुंभ मेला?

कुंभ भारतीय पंचांग के अनुसार होता है। प्रयाग में कुंभ माघ महीने की अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा के मकर राशि में होने पर आयोजित होता है। हरिद्वार में जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तब यहां कुंभ का आयोजन होता है। नासिक में जब बृहस्पति और सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तो कुंभ मेले का आयोजन होता है।

उज्जैन में जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करे तब उज्जैन में कुंभ मेला लगता है। इसे सिंहस्थ भी कहा जाता है।ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करें तो सम्राट हर्षवर्धन के राज्य काल में 629 ईसा पूर्व में भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक ‘भारत की यात्रा’ में कुंभ मेले का ज़िक्र किया है। तीसरी सदी में कुंभ मेले का स्वरूप बदल गया। अंग्रेजों ने कई टैक्स थोपे और स्नान करने पर प्रतिबंध लगा दिये थे। 1924 में एक बार मेले में स्नान पर लगे प्रतिबंध को तोड़ने के लिए पंडित मदन मोहन मालवीय ने पहले स्नान किया था।

कुंभ का आधार आध्यात्म है

कुंभ मेला दुनिया में अपनी आधुनिकता और विलक्षणता के लिए प्रसिद्ध है। यह दिव्य और भव्य है, जिसका आधार आध्यात्म में है। कल्पवास में रहने वाले श्रद्धालु भक्त आस्था विश्वास की नगरी, तंबुओं के शहर में आकर देवताओं को प्रणाम करते हैं तथा तृप्त होकर यज्ञ दान देते हैं। कुंभ पुण्य के संगम के साथ-साथ एक आस्था का विश्वास है कि इससे हम परमात्मा के करीब जाएंगे, आध्यात्मिक रूप से जागृत होंगे और हमें ज्ञान की प्राप्ति होगी। इसी भरोसे के साथ यहां लोग आते हैं।

प्रयाग कुंभ में ऐसा पहली बार हुआ जब किन्नर अखाड़े की भी पेशवाई निकली। कुंभ मेला अखाड़ों के पहुंचने पर आध्यात्मिक रंग में सराबोर हो जाता है। हाथी, घोड़ा, बैंड-बाजों तथा रथ पालकी के साथ साधु-संतों की शाही पेशवाई निकलती है। सुबह होने से पहले साधु-संत अपने तंबुओं से निकलकर घाट की तरफ जाते हैं। शाही स्नान की परंपरा को देखने और समझने के लिए देश-विदेश से पर्यटक भी पहुंचते हैं।

शाही स्नान कुंभ मेले का बहुत अहम हिस्सा है और इस दौरान एक खास समय में पवित्र नदी के जल में डुबकी लगाई जाती है।

यूनेस्को ने कुंभ को विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर बताया

ऐतिहासिक विरासत कुंभ मेले में श्रद्धालुओं के सुरक्षा के लिए खास इंतजाम किए जाते हैं। सैकड़ों जवान अपने मोटर बोट के साथ निगाहें रखते हैं। पैरामिलिट्री पुलिस की व्यवस्था जिससे पूरा मेला क्षेत्र चारों तरफ से सुरक्षित महसूस कर सके। आतंकी वारदात से बचने के लिए एटीएस के कमांडो निगरानी करते हैं। यात्रियों की रहने की व्यवस्था और स्वास्थ्य शिविर भी पर्यटकों के सुगमता के लिए लगाए जाते हैं।

कुंभ में बिछड़ने की कहानियां सिर्फ किताबों में न रह जाए, इसके लिए कंप्यूटरीकृत खोया-पाया केंद्र हाईटेक तकनीकी का इस्तेमाल किया जाता है। यूनेस्को ने कुंभ को विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर बताया है। इस भीड़ में जाति, लिंग भेद, धर्म की कोई दीवार खड़ी नहीं होती। कुंभ का आयोजन लगभग 50 दिन तक चलता है और इसी दौरान करोड़ों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।

इस बार कुंभ मेला 11 मार्च 2021 को उत्तराखंड की देवनगरी हरिद्वार में आयोजित होने जा रहा है। कुंभ मेले की दिव्य भव्य परंपरा को सरकार ने आम जनमानस के दिलों में संजो दिया है। कुंभ हमारी धरोहर है। सनातन परंपरा का आधार दुनिया भर में होने वाले धार्मिक आयोजन श्रद्धालुओं की संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा है।

” चलो कुंभ चलें ”

                                             

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