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“दहेज एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसका परित्याग करना बेहद ज़रूरी”

दहेज शब्द आज के समय में हर किसी के लिए समस्या बन गई है। समाज में लोग आज भी बेटियों को बोझ समझते हैं। वर्तमान समय में दहेज एक अभिशाप बन गया है। इसका दुष्परिणाम बहुत भयानक देखने को मिलता है। ना जाने कितनी महिलाएं दहेज के कारण प्रताड़ना सहती हैं। दहेज के कारण ना जाने कितनी लड़कियों की बहुत देर से या शादी भी नहीं हो पाती होगी।

गरीब के गले में फंदे समान है “दहेज”

हमारे देश में लड़की के जन्म लेते ही दहेज की चिंता शुरू हो जाती है और ना जाने कितनी लड़कियां दहेज के कारण मौत का शिकार होती हैं।जो गरीब हैं, उनके लिए यह फांसी के फंदे समान है। दहेज के खिलाफ 1961 में एक अधिनियम भी बना था। इसमें सजा के प्रावधान के बावजूद महिलाओं को इस प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है।

यह महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने में बिल्कुल भी सफल नहीं रह है। हमारे देश में जो पापी है उन्हें कानून का कोई डर नहीं होता। दहेज मांगने और महिलाओं पर अत्याचार करने में उन्हें तनिक भी शर्म नहीं आती। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना चाहिए ताकि वह विपरीत परिस्थिति में भी अपने पैर पर खड़ा हो सके।

दहेज हत्या और हिंसा मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो कारवाई

दहेज हत्या और महिला प्रताड़ना की जांच और कारवाई को फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए जल्द होना चाहिए। ताकि महिलाओं को जल्द न्याय मिले और उन्हें बार-बार कोर्ट का चक्कर ना काटना पड़े। घरेलू हिंसा को रोकने के लिए कठोर कानून की आवश्यकता है। दहेज को खत्म करने के लिए लोक प्रशासन को गांव- गांव जाकर लोगों को जागरूक करना चाहिए।

इसके लिए हर हफ्ते अभियान चलाया जाना चाहिए। दहेज एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसका परित्याग करना बेहद ज़रूरी है। युवा पीढ़ी जिसे समाज का भविष्य समझा जाता है, उन्हें इस प्रथा को समाप्त करने के लिए आगे आना होगा। ताकि भविष्य में हर स्त्री को सम्मान के साथ जीने का अवसर मिले और कोई भी महिला दहेज हत्या की शिकार ना होने पाए।

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