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सड़क से लेकर बैंक तक, जानिए सरकार क्या-क्या बेचने की तैयारी कर चुकी है?

मोदी सरकार के विकास की राह प्राइवेटाइज़ेशन को होकर जा रही है। जिसके परिणामस्वरूप अब आपको जल्द ही पूरे देश में सरकार तो दिखेगी परंतु सरकार की उस कुर्सी के अलावा सरकारी और कुछ देखने को नसीब नहीं हो सकता। ये बातें उठ रही है सरकार के द्वारा लिए गए उन तमाम फैसलों की। जिसके कारण देश की सभी सरकारी सुविधाओं को ठेंगा दिखाने की तैयारी चल रही है।

लक्ष्य पूरा करने की आड़ में सरकारी सम्पत्तियां बेचने की तैयारी

दरअसल, मोदी सरकार ने पिछले महीने पेश किए गए बजट में पहली बार देश की संपत्तियां बेचकर पैसा उगाहने की मुद्रीकरण योजना को खुलकर पेश किया था। अब सरकार इस योजना को अमल में लाकर करीब 2.5 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य बना रही है। इसके लिए 8 मंत्रालयों ने अपनी उन संपत्तियों की सूची तैयार कर ली है जिन्हें आने वाले वक्त में बेचा जाएगा।

इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से प्रकाशित एक खबर के मुताबिक इस सूची में कोर सेक्टर की ज़्यादातर संपत्तियों के साथ-साथ सरकार 150 से ज़्यादा पैसेंजर ट्रेनों को चलाने की जिम्मेदारी प्राइवेट कंपनियों को दे सकती है। यानी जिस ट्रेन में आप सफर करेंगे उसे कोई प्राइवेट कंपनी चला रही होगी और उसके लिए मनमाना किराया आदि वसूल कर सकेगी। इसके अलावा दिल्ली, मुंबई, बंगलुरू और हैदराबाद में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के साथ संयुक्त तौर पर चलाए जा रहे एयरपोर्ट्स में सरकारी हिस्सेदारी भी बेची जाएगी।

पाइपलाइन के लिए 2021-24 तक राष्ट्रीय मुद्रीकरण का रखा गया लक्ष्य

इंडियन एक्स्प्रेस के हवाले से ही पता चलता है कि नीति आयोग फिलहाल वर्ष 2021-24 के लिए राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन तैयार करने में जुटा है। आयोग ने मंत्रालयों से उनकी उन संपत्तियों की जानकारी मांगी है, जिन्हें बेचने के लिए इस पाइपलाइन में शामिल किया जा सकता है। बात बस यहां पाइपलाइन पर आकर समाप्त नहीं होती है। इसके साथ ही राजधानी दिल्ली में स्थित जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम जैसे खेल प्रांगणों को भी प्राइवेट कंपनियों को दे दिया जाएगा। इसका खाका भी तैयार हो रहा है।

स्टेडियम प्राइवेट हाथों में देने को तैयार खेल मंत्रालय

इसके लिए खेल और युवा मामलों के मंत्रालय ने भी खेल स्टेडियमों को प्राइवेट हाथों में सौंपकर 20,000 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है। बताया गया है कि मंत्रालय ने इसके लिए संपत्तियों की पहचान करने की योजना बना ली है। हालांकि, कमेटी ने मंत्रालय को जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम प्रोजेक्ट के लेन-देन से जुड़े सलाहकार की नियुक्ति के विषय में देखने को कहा है। माना जा रहा है कि यह स्टेडियम संचालन और मेंटेनेंस के लिए प्राइवेट कंपनियों को लीज पर दिए जा सकते हैं।

हाइवे मंत्रालय कर रहा है सड़क बेचने की तैयारी

वहीं, दूसरी तरफ सड़क परिवहन और हाईवे मंत्रालय 7200 किमी सड़कों को बेचने की योजना बना रहा है। इसके अलावा सरकार एमटीएनएल, बीएसएनएल और भारतनेट की संपत्तियों से भी पैसा कमाने की योजना तैयार कर रही है। सूत्र बताते हैं कि दूरसंचार विभाग ने कोर ग्रुप को बता दिया है कि वह पहले ही बीएसएनएल की टॉवर सपंत्तियों और भारत नेट की ऑप्टिकल फाइबर को बेचने की योजना पर काम कर रहा है।

बैंकों को भी बेचने की तैयारी

सरकार अब बैंकों को भी बेचने की तैयार कर चुकी है। इसलिए बीते दिनों बैंक कर्मचारियों ने इसके विरोध में प्रदर्शन भी किया था। सरकार धीरे-धीरे बैंकों को भी बेचकर उससे प्राप्त राजस्व को सरकारी योजनाओं में लगाना चाहती है। बैंकिंग सेक्टर में सरकार की बड़ी हिस्सेदारी के कारण बड़ी संख्या में इससे सरकारी नौकरियां भी हैं। अगर इसका निजीकरण होता है तो सबसे बड़ा नुकसान बैंक कर्मचारियों को हो सकता है।

पहली खेप में सरकार ने बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज़ बैंक, आईडीबीआई बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की हिस्सेदारी बेचने का प्लान बनाया है। सरकार अगर बैंकों को बेचने के फैसले पर आगे बढ़ती है तो देश में राष्ट्रीय बैंकों की संख्या घटकर आधे दर्जन के ही करीब रह जाएगी क्योंकि बीते एक-दो सालों में कई सरकारी बैंकों को आपस में मर्ज भी किया गया है।

आने वाले समय में हम बस नीलामी देख सकेंगे

यानि कि कुल मिलाकर कहा जाए तो आने वाले दिनों में आपके पैरों के नीचे की जमीन से लेकर आपके टेलिफोन टावर तक सब इस प्राइवेटाइजेशन की होड़ में एक-एक करके शामिल होते जाएंगे। इसके लिए खाका पूरी तरह से तैयार कर लिया गया है। अब जिस सड़क पर चलने के लिए आप सरकार को टैक्स भर रहे थे अब वही सरकार उसी रोड का हक किसी बड़े प्राइवेट कंपनी को दे देगी। जिसकी शुरुआत वर्ष 2021 के बजट सत्र के साथ हो चुकी है। आने वाले दिनों में हम गठपुतली के भांति बस नीलामी देख सकते है।

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