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भाजपा को रोकने में कितने कारगर होंगे दीदी के नए साथी तेजस्वी और अखिलेश?

हाल ही में राजद नेता तेजस्वी यादव ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से कोलकाता के नाबन्ना में मुलाकात की थी। वहां उन्होंने आने वाले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को सपोर्ट करने का ऐलान किया था। इधर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी उत्तर प्रदेश में प्रेस कॉन्फेंस कर टीएमसी को सपोर्ट करने ऐलान किया।

इसके बाद से कई अनुमान लगाए जा रहे हैं कि बिहार और यूपी की क्षेत्रीय पार्टी जब पश्चिमबंगाल के विधानसभा चुनाव में अपना दांव आजमाएंगी, तो ऐसे में क्या नतीजे निकलकर सामने आएंगे?

गठबंधन से क्या नए राजनीतिक समीकरण पैदा हो सकते हैं?

अगर बिहार और यूपी की बात हो तो दोनों ही राज्यों में राजद और सपा के लिए सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी भारतीय जनता पार्टी है। इसलिए कहा जा सकता है कि बीजेपी के खिलाफ पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को सपोर्ट करना, क्षेत्रीय पार्टियों का एक गठबंधन हो सकता है। यहां से यह संकेत भी मिलता है कि अगर यह तीनों पार्टियां साथ रहती हैं तो अगले आम चुनाव तक तो एक नया मोर्चा भी ज़रूर सामने उभरकर आएगा। हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव में अभी काफी समय है।

वहीं बीते बिहार विधानसभा चुनाव में राजद ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। राजद जीत से महज़ कुछ ही दूरी रह गई थी। वहीं अब जब पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में चुनाव हैं तो राजद के लिए यह एक अच्छा मौका हो सकता है कि टीएमसी को समर्थन देकर राजद अपनी प्रतिद्वंदी बीजेपी को पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने से दूर रख सके। इसका फायदा उठाकर राजद खुद को पश्चिम बंगाल में एक नया रूप दे सकती है।

2017 यूपी विधानसभा चुनाव में सपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं था। जहां बीजेपी ने 403 सीट में 312 सीट पर जीत दर्ज की थी तो सपा के खाते में महज़ 54 सीट ही आई थीं। अब अगर टीएमसी पश्चिम बंगाल में अच्छा प्रदर्शन करती है तो इससे बीजेपी की छवि पर बहुत बुरा असर पड़ेगा और इसका फायदा सपा को अगले यूपी विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। वहीं अगर टीएमसी सपा के साथ आनेवाले यूपी विधानसभा चुनाव में रहती है तो बंगाली वोटर्स को अपनी ओर खींचने में ये दोनों ज़रूर कामयाब होंगे।

टीएमसी को चाहिए गैर-बंगालियों के वोट

बता दें कि पश्चिम बंगाल में 45 लाख हिंदी भाषी लोग रहते हैं जो बिहार और यूपी से आते हैं। पश्चिम बंगाल में इन दोनों राज्यों के वोटर्स पर अक्सर बीजेपी का ही कब्जा रहा है। अब टीएमसी और ममता बनर्जी को हराने के लिए बीजेपी बड़े पैमाने पर इन वोट्स को आकर्षित कर रही है।

इधर टीएमसी भी हिंदी भाषी निर्वाचन क्षेत्र तक अपनी पहुंच बनाने में लगी हुई है। इसके लिए छठ पूजा आदि त्योहारों को सेलिब्रेट कर टीएमसी इन वोटर्स से एक रिश्ता बनाने में जुटी है। हालांकि, राजद और सपा का समर्थन पाकर टीएमसी हिंदी भाषी वोटर्स को बड़े पैमाने पर आकर्षित करने में कामयाब हो सकती है।

टीएमसी को उम्मीद है कि तेजस्वी और अखिलेश की पहल से हुगली के जूट मिल क्षेत्रों, बैरकपुर, हावड़ा, दुर्गापुर, आसनसोल के औद्योगिक बेल्ट और बिहार और झारखंड से लगे पश्चिम बंगाल के स्थानों पर जहां हिंदी भाषी मतदाता अधिक संख्या में हैं, वहां इसका ठोस लाभ मिल सकता है।

बिहार में कांग्रेस-लेफ्ट के साथ लेकिन बंगाल में खिलाफ

मालूम हो कि भारी संख्या में बीजेपी के केंद्रीय और वरिष्ठ नेताओं द्वारा बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने के बाद भी टीएमसी उन्हें आउटसाइडर्स ही कहती आ रही हैं। वहीं बीजेपी अपने केंद्रीय नेताओं पर चुनावी रणनीति और अभियानों के लिए निर्भर है। हालांकि, टीएमसी का बीजेपी को आउटसाइडर कहना बीजेपी के लिए कोई नुकसानदेह नहीं है।

इसलिये कि ऐसा कहकर ममता बनर्जी उन वोटर्स को टारगेट कर रही हैं जो अन्य राज्यों के हैं और बंगाल में रहते हैं। टीएमसी गैर बंगाली वोटर्स यानी हिंदी भाषी मतदाताओं को सीधे बीजेपी की तरफ जाने से रोकने के लिए तेजस्वी और अखिलेश का समर्थन ले रही हैं।

वहीं राजद का कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड पर हुई रैली में शामिल न होने से यह बात तो साफ हो गई है कि राजद का बंगाल में लेफ्ट-कांग्रेस और अब्बास सिद्दीकी की नई पार्टी से कोई गठबंधन नहीं है। यह अपने आप में एक बड़ी बात है क्योंकि बीते बिहार विधानसभा चुनाव में राजद, लेफ्ट और कांग्रेस साथ में चुनावी मैदान पर उतरी थीं।

इस चुनावी लड़ाई में किसकी जीत होती है यह तो कई अन्य फैक्टर्स पर निर्भर करता है लेकिन राजद का बिहार महागठबंधन यानी कांग्रेस, लेफ्ट और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को ताक पर रखकर टीएमसी को चुनना एक बड़ा दांव है। अगर राजद का यह दांव काम कर जाता है तो राजद बीजेपी के आमने-सामने और ज़्यादा टक्कर में आ जाएगा। जिससे राजद को अपनी पार्टी का विस्तार करने का भी मौका मिलेगा।

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