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कैसे मेरी माँ ने सेक्स जैसे संवदेनशील और टैबू माने जाने वाले विषय पर खुलकर बात की

कैसे मेरी माँ ने, सेक्स जैसे संवदेनशील और टैबू माने जाने वाले विषय पर खुलकर बात की

कुछ छः महीने पहले मेरी माँ ने मुझे फोन करके कहा कि मुझे ब्लू फिल्म देखनी है। मुझे याद है, मुझे लगा था वाह! यानी इस शब्द का प्रयोग अब भी होता है!

मेरी माँ ने मुझ से कहा कि उन्होंने सुना है कि लोग अपने फोन पर पार्न देखते हैं, क्या यह संभव है? मैंने जवाब दिया हां, यह संभव है। लेकिन, इसके लिए 4G कनेक्शन की ज़रूरत पड़ेगी या मैं आपको एक लिंक भेज सकती हूं, जिससे वो ब्लू फिल्म कंप्यूटर पर देख सकें। 

मैं और मेरी माँ सेक्स जैसे संवदेनशील मुद्दे पर खुलकर बात करते हैं 

वो फोन पर मुझ से बात करते हुए बड़ी लजीली हो रहीं थीं। इसके बाद  मैंने अपने  कुछ सहकर्मियों और दोस्तों से इस बारे में बातचीत की । मैंने उनसे कहा  ए सुनो, आज मेरी माँ और मेरे बीच सेक्स को लेकर बड़ी अजीब बात हुई? वो बड़े बेआराम से हो जाते और कहते  वाह ! हमने इसके बारे में पहले कभी नहीं सुना । माना कि हम लोग अपने माँ-बाप के यौन संबंधों की बात को लेकर बहुत अजीब महसूस सा करने लगते हैं, पर मेरी माँ के कथन को सुनने से उन्हें क्या आपत्ति थी?

इसकी असल क्या वजह है कि हमारे समाज में और परिवारों में सेक्स पर बात करने से उससे हर सूरत में बचने की कोशिश की जाती है? मैं पॉलीएमरस (पॉलीएमरी – यानी कि अनेक पार्टनर के साथ रोमानी और/या लैंगिक तरह से शामिल होना), सेक्सुअल    ( सभी लिंग पहचान और जैविक लिंग के लोगों की तरफ़ आकर्षित होना) हूं और मैंने सेक्स के अलग- अलग पहलू पर कई लोगों से कई बातें भी की हैं। बिना सामने वाले की उम्र, उसकी लिंग पहचान या हमारे परिचय की घनिष्टता से बिना विचलित हुए। 

सेक्स को लेकर मुझे अपने निजी अनुभवों, पर बात करने में झिझक महसूस नहीं होती है 

सेक्स को लेकर मेरे अपने निजी अनुभवों के बारे में या सेक्स पर कोई और बात करने में मुझे कोई झिझक नहीं होती है। फिर, भी जब बात मेरे माँ-बाप और मेरे बीच सेक्स को लेकर हुई बातचीत पर आती है, तब अधिकतर लोग अटपटा सा महसूस करने लगते हैं। अन्य लोगों की तरह जैसे हमारे माँ- बाप भी सेक्स करते हैं, पर उनके यौन संबंधों को लेकर बातचीत लोगों को अक्सर बेआराम कर देती है।

हालांकि, हम वो आर्टिकल बड़े जोश से शेयर करते हैं, जिसमें लिखा हो कि समाज में  माँ-बाप को बच्चों की सेक्स लाइफ   स्वीकार लेनी चाहिए। तो फिर, यही उत्तरदायित्व उनके बच्चों पर क्यों नहीं लागू होता? जब मैं अपने माँ-बाप के यौन संबंधों की बात अपने साथियों से करती हूं ( कभी-कभी जब मैं मन ही मन इसके बारे में सोचती हूं, तब भी), मुझे कुछ अजीब सा लगता है। मेरे दोस्तों ने यह भी कहा है कि अगर उनके भाई-बहन भी अपनी सेक्स लाइफ से जुडी हुईं बातों को  प्रत्यक्ष कर दें तो उन्हें बड़ा अजीब लगता है।

मेरी माँ, पुराने जमानों के अंधविश्वासों में विश्वास नहीं करती हैं 

मेरी माँ बड़ी कूल हैं, अपने समय से कहीं आगे हैं, पर इसके साथ-साथ, वो अपने समाज और परिवेश का हिस्सा भी हैं। मुझे लगता है कि अगर मेरी माँ कानपुर में नहीं होतीं तो वो बहुत अलग होतीं । वो एक काफी स्वालम्बी, संतुष्ट जीवन जीती हैं। वो पचास के दशक की ग्रहणी हैं और ऐसे कई काम करती हैं, जो आम तौर पर आदमियों को सौंपे जाते हैं। बैंक के काम, कागज़ी काम, प्रलेखन, ऑफिस की देखरेख अगर मुझे कभी पासपोर्ट बनाने की ज़रूरत पड़े तो मैं अपने पिता से नहीं, माँ से कहूंगी।

 मेरी माँ हर काम करवा कर छोड़ती हैं। वो भी यह मानती हैं कि औरतों के पास अपना पैसा होना चाहिए। इसके पीछे मेरी माँ की यह अवधारणा है कि आदमी आपको अक्सर कई सारी चीज़ें करने की अनुमति नहीं देंगे, इसलिए आपकी अपनी अलग बचत होनी चाहिए। ताकि, आप अगर कुछ करना चाहें तो आपके पास अपना पैसा हो, आपको किसी को जवाब देने की ज़रूरत ही ना पड़े ।

वो अक्सर व्यस्त रहती हैं और अपने मोहल्ले की औरतों के पैसे को बैंक में डलवाने के लिए उनकी मदद करते हुए या फिर अगर कोई उनकी सहेली अपना कोई छोटा कारोबार शुरू करना चाहती है, तो उसमें उसकी मदद करने के लिए हमेशा आगे रहती हैं।

मेरा नारीवादी होना, मेरी माँ से प्रेरित है 

मेरा नारीवाद, मेरी माँ के रवैए से बहुत प्रभावित है, खासकर पितृतंत्र की अवधारणाओं पर उसकी प्रतिक्रियाओं से, मैंने उनके बचपन की कहानियाँ सुनी हैं, कैसे उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जा रहा था।  पर, उन्होंने अपनी पैंतरेबाजी की और अपने परिवार से कहा मैं इस कालेज को चुन रही हूं। मेरी माँ  मुझे भी कॉलेज के बाहर छोड़ेगी, जो मेरे लिए एक दम ठीक है। मेरी माँ ने अपने घरवालों से कहा कि मुझे एक चुनाव करने दो, जिससे मेरे भाईयों को यह ख्याल नहीं सताएगा कि मैं कहीं और चली गई हूं।

मेरे शादी के मसले पर  मेरी माँ ने मुझसे यह कहा कि तुम्हें पता है,लोग औरतों की शादी इसलिए कर देते हैं, क्योंकि वो कमा नहीं सकतीं। जब मैं अपने लिए कमा रही हूं, उसे मेरी शादीशुदा ना होने से कोई आपत्ति नहीं, हालांकि, हमारे रिश्तेदार मुझे टोकते हैं ।

पहली बार माँ ने ही सेक्स जैसे टैबू  के बारे में मुझसे खुलकर बात की 

18 की उम्र में मैंने बाहर कॉलेज में पढ़ने के लिए, अपना घर छोड़ दिया था। उस ही समय के आस- पास एक बार मेरी माँ ने मुझे फोन करके कहा था कि उन्हें बहुत डिप्रेशन सा लग रहा है, एक खिन्नता, जैसे उसके जीवन का कोई मकसद ही नहीं है। माँ की इस बात को सुनकर , मैं भयभीत होकर वापिस घर भागी थी और उसने मुझसे कहा बाद में कहा कि  तीन महीने से तुम्हारे पापा ने हमको छुआ भी नहीं है। उनके ऐसे कहने का तरीका था, कि उनके बीच सेक्स नहीं हुआ है।

 मुझे याद है, मैंने यूं सोचा था, अब मैं क्या करूँ? मैं पिताजी के पास जाकर यह तो नहीं कह सकती ना कि ‘चलो भाई, चालू करो! तब तो यह बड़ा ही अटपटा लगा था।

पर, हमने इससे पहले भी सेक्स पर बातचीत की थी।कई सालों से हमारी कई बातें हुई हैं। उसने अपने यौन संबंध, सेक्स के सुख, वासना, काम-साहित्य, सेक्स पर पाबंदियां, प्रजनन, माँ बनना इत्यादि पर खुलकर बातचीत की है। ऐसी बातचीत की मेरी पहली चेतना उस समय की है, जब मैं स्कूल में थी। एक नवविवाहिता, जो हमारे रिश्ते में थी। हमारे घर आई थी, माँ से कुछ सलाह लेने के लिए।

आज भी महिलाएं अपने शरीर एवं सेक्स के बारे में नहीं जानती हैं 

माँ ने मुझे उस समय अपने कमरे में चले जाने को कहा था। पर, बाद में उसने मुझसे उनकी बातचीत पर चर्चा की। हमारी रिश्तेदार के कुछ अलग ही सवाल थे जैसे कि क्या हमारे दो गर्भाशय होते हैं? मेरी किशोरावस्था थी, स्कूल में हमें जीव- विज्ञान पढ़ाया जाता था। मुझे याद है कि मुझे लगा था  हैं! ये तो मुझसे उमर में कितनी बड़ी हैं! इन्हें कैसे नहीं पता? पहली बार मुझे इस बात का बोध हुआ कि औरतें अपने शरीर के बारे में कितना कम जानती हैं।

मेरी माँ ने उस चर्चा में मुझसे वो बातें कीं, जो हमारे जीव विज्ञान के क्लास में कभी नहीं  की जातीं थीं।उसने मुझसे विवाह के दायरे में बलात्कार के बारे में बताया और मुझसे यह कहा कि विवाहित स्त्री को सेक्स के लिए राज़ी दे देनी चाहिए, क्योंकि नहीं तो महिलाओं को वैवाहिक बलात्कार और हिंसा का डर होता है। उसने ऐसा बहुत सुना है। हां,आज मैं उसकी बात पर मुड़कर गौर करती हूं तो मुझे उनकी बात बिल्कुल पुरुष प्रधान, पितृसत्तात्मक लगती हैं। पर हम दोनों के इस बातचीत ने हमारे बीच सेक्स की विभिन्न बातचीतों का रास्ता भी तो खोल दिया।

हां, मैंने इससे पहले भी उन्हें अपनी दोस्तों के साथ सेक्स के बारे में ताने मार कर, इशारों में बात करते हुए देखा था।

 मेरी माँ अपनी सेक्सुअल इच्छाओं पर खुलकर बात करती है

मुझे अपनी माँ की इन बातों के बारे में सोचना इसलिए भी दिलचस्प लगता है, क्योंकि मेरे हमउम्र लोगों का, मेरा भी, यह मानना रहा है कि हम सेक्स के प्रति जागरूक पीढ़ी हैं और हमारे माता पिता की पीढ़ी सेक्स के बारे में बातचीत ही नहीं करती थी। मेरी माँ अपनी कामेच्छा को काफी खुल कर व्यक्त करती रही हैं । सेक्स पर हमारी बातचीत ज़्यादातर हिन्दी में ही होती है और कई बार, बिना उन शब्दों का इस्तेमाल किए।

उदाहरणस्वरूप विवाह के सन्दर्भ में सेक्स को लेकर हमारी जो बातचीत हुई थी, उसमें उसने कहा था कि शादी में बहुत बुरा हो सकता है तो इसलिए हां कर देनी चाहिए। मेरे परिवार से किसी की शादी होने पर मेरी माँ ने उससे पूछा था क्या तुम संतुष्ट हो?। यानी, सुहाग रात पर सेक्स हुआ था कि नहीं। कभी-कभी वो मुझसे पूछती हैं कि मैं कब तक पढ़ती रहूँगी, मुझे ज़िंदगी के कुछ मज़े भी लेने चाहिए।

वो मुझमें अपनी बेटी से अधिक, स्वयं के बराबर की एक औरत देखती हैं 

जब मैं कहती हूं कि मैं बहुत मज़े लेती हूं तो वो कहती हैं  कुछ चीज़ें तुम शादी के बाद ही कर सकती हो। हां, पर वो मुझसे अपने सेक्स लाइफ की चर्चा बड़े आराम से करती हैं। मेरे ख़्याल से यह इसलिए कि वो मुझे बराबरी का दर्ज़ा देती हैं। कालेज के लिए मेरा घर से बाहर जाना हमारे रिश्ते के विकास में काम आया। अब वो मुझमें बस अपनी बच्ची नहीं देखतीं, बल्कि एक स्वालम्बी वयस्क औरत भी देखतीं हैं। इसके साथ-साथ मैंने भी उनमें एक औरत का रूप देखना शुरू किया ना सिर्फ एक माँ का।

माना कि वो अपनी इच्छाओं पर बातचीत करने में कुछ शरमाती हैं और आमचलनों पर हम दोनों का टिप्पणी देना उसे ज़्यादा आसान लगता है। पर, उसमें बहुत आत्मविश्वास है। वो बहुत कुछ जानने की इच्छुक हैं और हम जब भी बात करते हैं, तब वह मुझसे सवाल पूछती रहती है।

मेरी माँ अपनी सेक्सुअल लाइफ के अनुभवों को मुझसे शेयर करती हैं

इसके साथ-साथ उसकी बड़ी आध्यात्मिक्‌ / धार्मिक प्रवृत्ति भी है। हर छः महीने वो पूजने को कोई नया देवता ढूंढ ही लेती हैं। उसे पढ़ना पसंद है तो वो वही धार्मिक ग्रंथ हज़ार बार, बार बार पढ़ डालेंगी। हाल में उनके शादी के 35 साल पूरे हुए और वो गोवा जाने के ख्याल से बड़ी उतावली थीं।

उसने मुझसे पूछा अंडरवियर चलेगा क्या? मेरे पास बिकिनी नहीं है। वे मुझे बड़ी- बड़ी सारी बातों का ब्योरा देती हैं और ये भी बताती हैं कि कैसे वो अपनी इन  परिस्थितियों से जूझ रही हैं? जैसे कि मेरे पिता कैसे मोटे होते जा रहे हैं और इसलिए कभी-कभी उसे उनसे सेक्स करने में उन्हें परेशानी होती है।

तो इस सब के होते हुए मुझे सबसे अपना वो पहला सवाल करना है : ऐसा क्यों है कि जब हम अपने परिवार वालों की सेक्स लाइफ के बारे में कुछ सुनते हैं तो हमें एकदम उठ भागने का मन करता है?

पहला तो यह कि यह हमारे माँ-बाप हैं और हममें पीढ़ियों का अंतराल- जेनरेशन गेप है। किसी और का कहना था कि सेक्स को लेकर बहुत कुछ हम पॉर्न देख कर समझते हैं अजीब, भिन्न-भिन्न किस्म के पॉर्न फिर अपने भाई-बहन या माता-पिता को वो सब टेड़ी-मेड़ी हरकतें करते हुए कल्पित करना बड़ा अजीब लगता है। किन्ही दूसरों को, माता पिता के सेक्स संबंध के बारे में सोचना उनको को यह याद दिलाता है कि उनकी सृष्टि इस तरीके से ही हुई है।

कभी-कभी हमारे माँ-बाप यूं कहते हैं कि हम फलाना-फलाना जगह में थे, जब तुम गर्भ में धारण हुए और इससे लोगों को अजीब लगता है। माँ बाप से इन बातों पर बातचीत करने से उनकी सेक्स लाइफ के कुछ पहलू स्पष्ट हो सकते हैं और इसके बारे में सोच कर मेरे कुछ दोस्तों को बहुत उलझन होती है।

अब इनमें से कईं सारी वजहें थोड़ी बेवजह सी हैं। हमारे ऐसे बहुत दोस्त हैं, जिनके बच्चे हैं, हम उनसे यह बातें कहते नहीं झिझकते। हम अपने से उम्र में बहुत बड़े या छोटे लोगों से ये बातें कर लेते हैं। हमें अपने दोस्त, पहचान वाले या किसी और (जिनसे हमारा कोई सेक्सुअल संबंध नहीं) के सेक्सुअल जीवन को स्वीकारने से कोई आपत्ति नहीं है।

फिर हमारे माँ-बाप को लेकर हममें इतनी झिझक क्यों? अगर इस दुनिया में हमारे होने का श्रेय दो लोगों की आनंद भरी सौबत को जाता है तो इस पर दिमाग पर रोड़े लगाने की क्या ज़रूरत है? कोई अपने निर्माण के बारे में क्यों नहीं जानना  चाहेगा? मुझे तो पूरा ब्योरा चाहिए!

जब पॉर्न को लेकर माँ और मेरी बात हुई और मैंने उसे वो लिंक भी भेजे थे। इसके बाद में उसने मुझसे पूछा तुम्हें यह सब कैसे पता है? मुझे याद है, मुझे बड़ी उलझन सी हुई थी और यह कहने के बाद कि मैं अपने लैपटॉप पर पॉर्न देखती हूं,  मैंने उस से कहा था माँ, मैं तुम्हारे से यह बात नहीं करने वाली।

बहुत सारी बातें हममें एक-दूसरे के जेनरेशन गेप के चलते समझ नहीं आतीं  

हमारी बातचीत में यह एक बाधा है। मैं उसे अपनी ज़िंदगी से उदाहरण नहीं दे सकती हूं। जो मैं औरों के साथ कर सकती हूं। हमेशा एक मुझे मत पूछो मुझे कैसे पता है? किस्म की अधूरी बात रह जाती है। एक बार मैं उसे गर्व परेड ( जो समलैंगिक होने के गर्व में या उसके समर्थन में शहर-शहर में निकाली जाती है) की तस्वीरें दिखा रही थी। मैं सोच ही रही थी कि अपनी लैंगिकता की बात साफ- साफ उसके साथ करूंगी  कि वो बोलीं  ये सब हिंजड़े होते हैं क्या?।

बात कुछ बेडौल सी चल रही थी। अक्सर उससे ये बातें करने के समय वह राजनीतिक रूप से बिल्कुल गलत, बेढंगी सी हो जाती हैं। मैंने नहीं, नहीं कहकर ‘क्वीर’ होना कैसा होता है? उन्हें यह  समझाने की कोशिश की। अपनी बात मैंने यूं  खत्म की बाहर तो ये शादी-वादी भी करके रहते हैं।

असुविधाजनक / बेआराम महसूस करने पर हम दोनों की एक अनकही हामी है।मैं अक्सर खुद भांप  जाती हूं, जब उसे मेरी बातों से उलझन होने लगती है। वो यूं नहीं कहती कि ऐसा मत कहो या तुमने दुनिया कहां देखी है? वो सिर्फ अपना सिर हिलाएगी और चुप हो जाएंगी। सवालों के जवाब टटोलना बंद कर देंगी। मुझे जैसे चुप होने का सिग्नल मिल जाता है।

मैं अपनी लैंगिकता के बारे में अपनी माँ को समझाने का प्रयास कर रही हूं 

मैं उनसे कहती हूं कि चलो, माँ कभी और ये बातें  करेंगे, मैं उनसे यूं कहने लगती हूं। अब हमारी बातें भी किसी नई सीख का रेखाचित्र नहीं रहीं हैं। मैं यूं नहीं सोचती कि हमारी बातों के ज़रिए या वो कुछ सीख रहीं हैं या मैं। मैं यह पहचानती हूं कि हां, हमारे बीच ये बातें होती हैं।

मैं चाहती तो हूं कि अपने माता-पिता के सामने अपने इन पहलूओं को पेश कर सकूं  कि मैं नारीवादी हूँ, क्वीर हूं, एक कर्मठ कार्यकर्ता हूं पर मुझे लगता है वो ये बातें नहीं समझ पाएंगे। मैंने अपनी माँ से इतना ज़रूर कहा है कि अगर मैंने शादी की भी तो वैसे नहीं करूंगी जैसे परिवार के और लोगों ने की है।

मैं चुने हुए कुछ लोगों के साथ कोर्ट में होउंगी क्योंकि, मैं शादी की रीत में विश्वास नहीं करती। उनके लिए, अभी, रोमांस और सेक्स को लेकर उनके अपने विचारों की वजह से। मैं सेक्स के दायरे के बाहर हूं। हमें, हमसे पहले आई पीढ़ियों के सेक्स के प्रति सकारात्मक विचारों को समझने की ज़रूरत है, साथ में ये भी कि हमारे विचार भी कोई बहुत पहुंचे हुए नहीं हैं। हम अपने आप को भले ही सेक्स की ओर बहुत सुलझा हुआ और सकारात्मक समझें, पर माँ-बाप पर बात आते ही हम अपने कन्डीशिनिंग/ अनुकूलन के शिकार हो जाते हैं।

हां, अगर हमारी माँ ही हम से पॉर्न देखने पर सलाह ले, फिर तो हर तरह से एक नई शुरूआत संभव है।

चित्रण – सयाली करकरे , अनुवाद – हंसा थपलियाल 

निमिषा एक स्ट्रीवादी शोधक हैं, जिन्हें हाल ही में बिल्लियों के प्रेम का पथ परिवर्तक बनाया गया है। वो संरचना पर काम करने वाली कलाकार हैं, जो अपने अंदर कलात्मक नब्ज़ को जागरूक करना चाहती हैं।

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