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मशरूम की खेती करके आर्थिक रूप से सशक्त कैसे बनें?

सामाजिक परिवर्तनशाला के एक शिविर में भाग लेने के लिए जब हम झाझा (जमुई जिला, बिहार) गए थे तो एक दिन फील्ड विज़िट पर हमें केड़िया गांव जाने का मौका मिला। वहां पर काफी लोग जैविक कृषि कर रहे हैं। वहीं पर सबसे पहले हमने लोगों को मशरूम की खेती करते हुए देखा।

कैसे शुरू की हमने मशरूम की खेती?

हमने जब उनसे मशरूम उगाने के बारे में जानकारी मांगी तो उन्होंने विस्तार से पूरी प्रक्रिया की जानकारी दी। इसके बाद हमें लगा कि यह तो हम भी कर सकते हैं, और इसे आर्थिक रूप से सशक्त होने का जरिया बना सकते हैं। इसके बाद हमने यह पता लगाने की कोशिश की, कि मशरूम का बीज कहां मिलता है? पता चला कि इसके लिए भागलपुर जाना पड़ेगा जो कि हमारे यहां से काफी दूर है।

हमारी जिज्ञासा बढ़ रही थी तो हम लगातार खोजते रहे कि पास में कहां पर मशरूम का बीजा मिल सकता है? फिर कुछ समय बाद पता चला कि बांका में ही विनीता मशरूम नाम की एक दुकान है जहां पर 100 रु./किलो के भाव से मशरूम का बीज मिलता है। वहां से हम 4 किलो बीजा लेकर आए और उनसे मशरूम उगाने का अपना प्रयोग शुरू कर दिया।

आर्थिक रूप से सशक्त बना सकता है मशरूम

शुरुआत में मशरूम उगाने के बाद बिक्री के लिए बाज़ार की खोज करना एक चुनौतीपूर्ण काम था, क्योंकि हमारे इलाके के आर्थिक रूप से कमजोर आदिवासी लोग यह नहीं खरीदते हैं। दूसरा कारण यह भी है कि उनके लिए मशरूम मौसमी खाद्य वस्तु है जो कुदरती रूप से होता है। इसलिए हमने गांव के नजदीक के छोटे शहरों/कस्बों में जाकर लोगों को व्यक्तिगत रूप से संपर्क करके पहली दफा का उपज को बेचा।

शुरुआत में बहुत ज़्यादा फायदा तो नहीं हुआ लेकिन उगाने की लागत और बेचने के लिए बाज़ार जाने में हुए पेट्रोल खर्च के ऊपर थोड़ा फायदा भी हुआ।

 

हम अब भी इसे नया-नया करना शुरू किए हैं। थोड़े समय में जब अच्छे से सीख जाएंगे तो उपज भी बढ़ेगी। अभी ग्राहकों की पहचान भी हो गई है। अब जब कभी बाज़ार जाते हैं तो लोग बुला-बुलाकर पूछते हैं कि मशरूम लेकर कब आएंगे?

हम यह भी सोच रहे हैं कि आने वाले समय में संगठन के काम के साथ-साथ संगठन के क्षेत्र में, महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के माध्यम से मशरूम की खेती करने के लिए बढ़ावा दें ताकि हमारे आदिवासी समुदाय के लोग आर्थिक रूप से सशक्त बन सकें।

 


लेखक- महेश हेम्ब्रम

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