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“कोविड से अगर हम जीत भी गए तो इससे उत्पन्न मानसिक तनाव से जीतना आसान नहीं होगा”

mental health

कोविड-19 की वजह से 2020 महामारी का साल रहा। जहां इकॉनोमी, महंगाई, स्वास्थ्य, रोज़गार, आपदा या कहें जीवन स्तर को छूने वाला हर पहलू इस महामारी की गिरफ्त में रहा। अब कोविड-19 2021 में पहुंच चुका है। जहां पहले शुरुआती लॉक डाउन के बाद ये माना जा रहा था कि कोविड से लड़ाई बस कुछ दिन के लिए ही है और हम ये जंग आसानी से जीत जाएंगे, ऐसा हो नहीं सका।

कोविड ने मानसिक स्वास्थ्य को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है

उस मार्च से इस मार्च तक पूरे एक साल होने वाले हैं। इस बीच बस यही बदला है कि पहले लगाए गए लॉकडाउन के बाद लोगों के बीच भय और तनाव की स्थिति थी। वहीं अब फिर से बढ़ते कोविड केस के बीच लोगों के बीच लापरवाही और एक तरह की ऊब ने जगह ले ली है।

अब चाहें आप हों या मैं, हम सभी के बीच ये डर तो है कि कोविड के मामले अब फिर से बढ़ रहे हैं। साथ ही घरों में रहते-रहते एक अजीब से मानसिक तनाव ने हम सबको ही जकड़ लिया है, जो इस बात का सबूत है कि हम कोविड के डर से कम अपनी मानसिक खींचतान से ज़्यादा जूझ रहे हैं।

सब की ही तरह कोविड 19 ने मेरे मानसिक स्वास्थ्य को भी बहुत हद तक प्रभावित किया है। सभी की तरह मेरे लिए भी 2020 कुछ नया, कुछ बेहतर पा लेने का साल था लेकिन महामारी ने आगे आने वाली सभी योजनाओं पर पानी फेर दिया। मेरे कुछ इंटरव्यूज़ थे, जिन्हें लेकर मैं बेहद  उत्साहित थी, क्योंकि ये कुछ वैसा था कि अगर मिल जाए तो सरपट दौड़ती ज़िन्दगी एक अलग ही ट्रैक पर पहुंच सकती थी।

तब तक हमें अंदाज़ा नहीं था कोविड दुनिया में दस्तक दे चुका है बल्कि ये कहें कि हमारे जीवन में भी।

तनख्वाह की अनिश्चितता की वजह से मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी

कोविड के चलते मुझे अपनी नौकरी को भी छोड़ना पड़ा, क्योंकि महामारी के चलते उसका कोई स्थायित्व मुझे नज़र नहीं आ रहा था। मेरे पास काम था लेकिन उसकी कोई तनख्वाह नहीं। मतलब ये कोई नहीं जानता था हमें पैसे कब मिलेंगे? मिलेंगे भी या नहीं? जिससे थक-हारकर मैंने उस काम को छोड़ने का फैसला कर लिया।

जो कि मेरे मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक खराब फेज़ रहा, क्योंकि मैं देख रही थी कि कैसे मेरे परिचितों की सैलरी काटी जा रही है या नौकरी से निकाला जा रहा है। तब अपनी नौकरी खोकर खुद को सामान्य रख पाना कोई आसान काम नहीं था। फिलहाल ये वो दौर है जब हमें सोचना पड़ रहा है कि कैसे अपने उस विज़न (भविष्य) को बचाया जा सके जिसके लिए हम काम कर रहे हैं?

फिर इसी बीच मेरे अपनों को भी कोविड19 ने अपनी गिरफ्त में ले लिया और तब मैंने जाना असल तनाव क्या होता है। जब हम चारों तरफ एक ही खबर धड़ल्ले से सुनते आ रहे हों तब खुद को नॉर्मल रख पाना मुश्किल होता है। कोविड ने हमें बेहद तनावपूर्ण फेज़ में ला छोड़ा है। कोविड पर हमने विजय पा भी लिया लेकिन अपने मानसिक तनाव पर विजय पाना अभी बाकी है।

वहीं साथ ही खबरों में आए दिन दिखाई जाने वाली वो तस्वीरें जो हमें भीतर तक झकझोर रही थीं। फिर चाहे वो बिहार स्टेशन पर भूख की वजह से मरने वाली महिला की हो, जिसमें बच्चा अपनी मरी हुई मां को जगाने की कोशिश कर रहा था।

मजदूरों के कदमों की आहट ने मुझे लंबे समय तक नहीं सोने दिया

एक ऐसा दौर जहां नौकरी, शिक्षा, व्यापर, बस, ट्रेन ही नहीं बल्कि कहें तो जीवन ही एकदम थम गया था। जो जहां था, वहीं फंस कर रह गया। इसी के चलते लाखों लोग अचानक ही नौकरियों से बर्खास्त कर दिए गए। चंद मुट्ठी भर लोगों को छोड़ दिया जाए, तब आप पाएंगे कि एक बड़ा तबका जिसमें हर स्तर का डेली वेज़ वर्कर शामिल है, वो इतना मोहताज हो गया कि उसके खाने-पीने के भी लाले पड़ गए।

मैं अब भी भूली नहीं हूं, जब सड़कें सुनसान थीं तब रोज़ कई सौ लोग पैदल हमारे घरों के सामने से निकला करते थे। कोई हैदराबाद से चल कर आ रहा होता था, तो कोई बिहार तक जाने को अपने परिवार के साथ शहर से निकला था। रात के अंधेरे में लोग अपने ही देश, अपने ही प्रदेश से ऐसे निकलते थे, मानो जैसे कोई अपराधी कहीं से भाग निकला हो।

सड़कों पर चलते कदमों की आहट ने मुझे बहुत लंबे समय तय सोने नहीं दिया। ये मानसिक तौर पर मेरे लिए एक बेहद खराब दौर था। आज भले ही वैक्सीन घर-घर तक आ गई हो और हम कोविड 19 से उबर भी जाएं लेकिन इससे उत्पन्न मानसिक तनाव से जल्दी उबर पाना हमारे बस का नहीं।

फिलहाल हम एक ऐसे समय में हैं जहां से आगे कोई भी मंज़िल साफ नज़र नहीं आ रही है। हम आर्थिक रूप से भी एक खराब दौर में हैं। जहां पहले से ही काम कर रहे लोगों को निकाला जा रहा हो, सार्वजनिक उपक्रम बेचे जा रहे हों, महंगाई अपने चरम पर हो, वहां किसी नए रोजगार को खोजना आसान नहीं है।

कोविड ने हमें हर स्तर पर प्रभावित किया लेकिन साथ ही महामारी ने हमें इन सबसे उबरने की शक्ति भी दी है। मानसिक तनाव के साथ ही मजबूती भी इस समय की एक ज़रूरत रही, जिसमें अपनों के साथ ने हमें बखूबी खड़े रहने का साहस दिया।

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