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“दिनभर बस सोचने से काम नहीं चलेगा, काम आगे बढ़ना भी ज़रूरी”

India lockdown

डायरी लिखने का ना कभी शौक रहा और ना ही ज़रूरी समझा। कई बार शौक में तो कई बार उत्सुकतावश मन में आया कि डायरी लिखी जाए। फिर लगा कि ये रोज़-रोज़ कहां हो पाएगा और हफ्ते दस दिन बाद शायद मन भी न लगे। मन का क्या है? आज ऐसा है, कल कैसा हो खुद को भी नहीं पता! आज जोश में लिख लिया, फिर अगली बार कब मन करे कुछ पता नहीं। इसलिए डायरी लिखने का विचार त्याग ही दिया।

जब कोरोना ने पूरे प्रभाव से दस्तक दिया

ये भी लगता था कि जो भी बड़ी घटनाएं हैं, वो तो याद हैं ही तो उन्हें दर्ज क्या करना, और अगर छोटी हैं तो उन्हें याद रखकर क्या करना? कुछ चीज़ें भूल जाने में कोई बुराई नहीं है। वैसे भी पता नहीं क्यों मैं भुलक्कड़पने को बहुत एन्जॉय करता हूं। अक्सर चीज़ें भूल जाता हूं। कभी ज़रूरी, कभी गैर-ज़रूरी, कभी छोटी, कभी बड़ी लेकिन मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं हुई।

ना ही मुझे ये परेशानी की तरह लगी कि ये कोई बीमारी या समस्या है। खैर बात डायरी लिखने की चल रही थी। तो आज तारिख है 24 अप्रैल 2020 यानि वैश्विक महामारी। कोरोना का दौर जिसको आए हुए करीब 5 महीने हो चुके हैं। कुछ देशों में चरम पर हैं तो कुछ में चरम पर पहुंचना बाकी है। ये अपने देश में कहां और कब तक जाएगा इसका कुछ नहीं पता।

भारत में 23 हज़ार से ज़्यादा केस हैं और करीब 700 लोग मर चुके हैं। यहां भी आए हुए करीब 3 महीने हो चुके हैं और यहां का चरम आया है या आएगा कुछ पता नहीं! बस इतना पता है कि वर्तमान में यह लगातार तेजी से बढ़ ही रहा है। लॉकडाउन को भी एक महीने से ज़्यादा हो चुके हैं और मेरा एरिया 8 अप्रैल से सील है। मैं परसों 12 दिन बाद नीचे उतरा और बाहर गया तो पता चला कि ज़रूरी चीज़ों के लिए व्यवस्था की गई है लेकिन कॉलोनी के सभी गेट बंद हैं। सिर्फ ज़रूरी काम के लिए ही बाहर जाने की अनुमति है।

समय बढ़ने के साथ लगा हर चीज़ बढ़ते रहना ज़रूरी

एक महीने से घर में बैठे हुए और सिर्फ कोरोना के आंकड़े गिनते हुए अजीब-अजीब से ख्याल मन में आते रहते हैं। कभी-कभी काम कर-करके कोफ़्त होती है और कभी-कभी लगता है कि काम है तो अच्छा है नहीं होता तो क्या करते दिनभर? जिनके पास कोई काम नहीं वो क्या करते होंगे दिनभर? इस पूरे समय में इंसान को अपनी अच्छाइयों और बुराइयों से सामना करना पड़ रहा है।

अब उसे पता चल रहा है कि अपनों के साथ वक्त बीताना भी ज़रूरी है क्योंकि वो ज़्यादा दिनों तक ऐसे नहीं रह पाएगा। इंसानी फितरत है उसका मन और शरीर दोनों ही स्थिर नहीं रह सकते चेतन अवस्था में। अभी ये सिलसिला कब तक चलेगा कुछ पता नहीं। कहां जाकर रूकेगा कुछ पता नहीं। इसके बाद कुछ बदलेगा या नहीं ये भी पता नहीं।

आगे का समय पूरा खाली सा दिख रहा है जिसमें कोई भी घटना भरी जा सकती है। आपके पास पूरा समय है कि आप सोचें कि आगे क्या होगा? ज्योतिषी अपना हिसाब लगा रहे हैं। वैज्ञानिक अपना हिसाब लगा रहे हैं और पेशेवर लोग समय के हिसाब से अपने काम को बदलने के प्रयास में लगे हुए हैं। कुछ लोग सलाह भी दे रहे हैं कि लोग अवसाद में न चले जाएं।

कुल मिलकर धंधा अब भी जारी है और शायद यही होना भी चाहिए। दिनभर सोचा तो नहीं जा सकता और सोचने भर से काम नहीं होगा। खाना खाना ज़रूरी है। काम आगे बढ़ना ज़रूरी है और ये उम्मीद बनाए रखना कि सब ठीक हो जाएगा ये भी ज़रूरी है। अगर ठीक हो गया तो तसल्ली रहेगी कि ये बातें और ये अनुभव दर्ज है कहीं न कहीं।

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