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अहमदाबाद की पिच पर उठते सवाल टेस्ट क्रिकेट को कितना नुकसान पहुंचा सकता है?

भारत ने इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज़ के तीसरे टेस्ट में 10 विकेट से शानदार जीत हासिल की। दूसरी पारी में 49 रनों के टारगेट को मेजबान भारत ने बिना कोई विकेट खोये हासिल कर लिया। जीत के सूत्रधार रहे बाएं हाथ के स्पिनर अक्षर पटेल ने मैच की दोनों पारियों में कुल 11 विकेट लिए। इस जीत के साथ भारतीय टीम ने चार मैचों की सीरीज में 2-1 की बढ़त बना ली है लेकिन महज़ 2 दिनों के भीतर ही समाप्त होने वाले इस टेस्ट मैच के बाद मोटेरा की पिच पर कई सवाल उठने लगे।

दिग्गजों ने कहा, यह पिच टेस्ट क्रिकेट के अनुकूल नहीं

कई पूर्व दिग्गजों ने मोटेरा की पिच के असमतल उछाल और चरित्र को लेकर कई सवाल खड़े किये हैं। पूर्व भारतीय क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण और हरभजन सिंह का मानना था कि यह पिच टेस्ट मैच के लिए अनुकूल नहीं थी। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वान ने भी अपने ट्वीट के जरिए मोटेरा की पिच पर कटाक्ष करते हुए कहा कि यहां दोनों टीमों को तीन-तीन परियां मिलने चाहिए थी। वहीं भारतीय कप्तान विराट कोहली ने पिच का बचाव करते हुए कहा कि कुल 30 में से 21 विकेट सीधी गेंद पर गिरे थे।

आईसीसी की कोशिशों को लग सकता है झटका

पिछले कई सालों से लगातार आईसीसी टेस्ट क्रिकेट को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है। इसी संदर्भ में डे नाइट टेस्ट और वर्ल्ड क्रिकेट चैंपियनशिप का आयोजन किया जा रहा है। जिससे दर्शकों और प्रायोजकों को आकर्षित किया जा सके।

मगर अहमदाबाद टेस्ट की तरह अगर मैच 3 दिन के भीतर ही समाप्त होने लगे, तो फिर इसका नकारात्मक असर टेस्ट क्रिकेट की छवि पर पड़ेगा और आईसीसी की कोशिशों को भी बड़ा झटका लगेगा। ऐसे में वनडे और टी-20 फॉर्मेट के सामने सबसे पुराने फॉर्मेट को बचाए रखने के लिए अच्छी प्रतिस्पर्धा काफी ज़रूरी है।

टेस्ट क्रिकेट में तकनीक का गिरता स्तर

तकनीकी तौर पर टच करने का स्थान मौजूदा दौर में काफी नीचे गिरा है। जिसका कारण है कि पिछले 5 सालों में 55 फीसदी मैचों के नतीजे चार या उससे कम दिन में आए हैं। इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अब पांच के बजाय 4 दिन के टेस्ट मैच कराने की चर्चाएं आम है। इन दिनों खिलाड़ी अपने आप को T20 फॉर्मेट के मुताबिक ढाल रहे हैं जिसका सीधा नुकसान टेस्ट क्रिकेट पर पड़ रहा है।

इसलिए कि परंपरागत फॉर्मेट में अलग स्किल्स की ज़रूरत होती है। यहां पर धीरज और जुझारू तकनीक आवश्यक होती है। गौरतलब है कि इंग्लैंड की टीम अहमदाबाद टेस्ट के अलावा पिछले 4 सालों में 5 बार 100 रनों के नीचे आउट हुई है। सिर्फ धीमी पिच नहीं बल्कि उछाल भरी पिचों पर भी घरेलू टीम को कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।

ब्रॉडकास्टर्स को होता बड़ा नुकसान

पिछले 5 सालों के दौरान 70 फीसदी से ज़्यादा मैचों में एकतरफा जीते देखने को मिले हैं। इससे ब्रॉडकास्टर्स को काफी आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ा है क्योंकि अगर मैच 3 या 4 दिन में ही समाप्त हो जाते हैं तो फिर उन्हें विज्ञापन का घाटा होता है। वहीं संसाधन उतने ही इस्तमाल होते हैं। इसी वजह से न्यूज़ीलैंड क्रिकेट टीम अपने घरेलू जमीन पर एक सीरीज़ में 2 से ज़्यादा टेस्ट मैच नहीं खेलती।

परंपरागत क्रिकेट प्रेमियों के लिए टेस्ट फॉर्मेट का प्रासंगिक रहना काफी ज़रूरी है। आईसीसी समेत सभी देशों के क्रिकेट बोर्ड को टेस्ट क्रिकेट के विकास के लिए घरेलू ढांचे को मजबूत करना होगा। ताकि युवा खिलाड़ी सिर्फ T20 फॉर्मेट को ही प्राथमिकता ना दें बल्कि टेस्ट क्रिकेट में भी वही उत्साह दिखाएं।

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