Site icon Youth Ki Awaaz

वैवाहिक जीवन और परिवार की ज़िम्मेदारियों के बावज़ूद आईएएस बनने वाली बुशरा बानो की कहानी

वैवाहिक जीवन और परिवार की ज़िम्मेदारियों के बावज़ूद आईएएस बनने वाली बुशरा बानो की कहानी

भारत में IAS( इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज ) के लिए सिविल सर्विस की परीक्षा को सबसे कठिन माना जाता है। किसी को IAS बनने का सपना देखना जितना बड़ा और आकर्षक लगता है और सुनने में उतना ही अच्छा महसूस भी होता है लेकिन, इससे भी कहीं अधिक मुश्किल भरा होता है एक आईएएस बनना।

इसकी सही से तैयारी करने के लिए स्टेशनरी, किताबों और कोचिंग से लेकर किसी बड़े शहर में रहकर पढ़ाई करने तक के सफर में बहुत समय और धन खर्च होता है। ऐसे में उच्च वर्ग के बच्चों का आईएएस की तैयारी करना एक साधारण सी बात है लेकिन, कमजोर व मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चों के लिए यह महज एक सपना होता है। IAS बनने के लिए विशेष रूप से प्री, मेंस और इंटरव्यू की तैयारियां भी करनी पड़ती हैं, जो कि एक प्रतिभागी के लिए बहुत ही कठिन यात्रा होती है।

इसकी कठिनाई का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर वर्ष सिर्फ प्री एग्ज़ाम में 95 प्रतिशत से अधिक छात्र असफल साबित होते हैं और जो बचते हैं, वे ही आगे के मैन्स एग्जाम में बैठ पाते हैं। वैसे, हमारे पास करियर बनाने के लिए कई विकल्प होते हैं, लेकिन IAS या IPS जैसी सिविल सर्विस की बात ही कुछ और होती है।

 कम उम्र में सफलता के साथ राष्ट्र की सेवा, व्यवस्थाओं में परिवर्तन, मान सम्मान, शानो शौकत भरे सपने लिए लाखों युवा हर साल सिविल सर्विस की परीक्षा में बहुत ही उम्मीदों के साथ बैठते हैं, जिनमें से कुछ ऐसे भी विद्यार्थी शामिल होते हैं जो विषम परिस्थितियों में भी संघर्ष करते हुए सफलता की इबादत लिखकर दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाते हैं। 

आत्मनिर्भर भारत में नारी सशक्तिकरण का एक सशक्त उदाहरण बनीं ऐसी ही एक महिला हैं डॉ. बुशरा वानो, जिन्होंने शादी के बाद स्वयं का  प्रशासनिक अधिकारी बनने का सपना साकार किया तो आइए जानते हैं इनके इस दिलचस्प सफर के बारे में।

सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है डॉ बुशरा वानो

मध्यमवर्गीय परिवार की महिला पीसीएस अधिकारी डॉ. बुशरा वानो ने अपने जीवन के सफर की नई शुरूआत 2016 में सऊदी अरब से वापस अपने वतन लौटकर की। संसाधनों की कमी के बाबजूद भी डॉ.बुशरा वानो कठिन परिश्रम करते हुए अपनी मेहनत और लगन से सफलता के पथ पर डटे रहीं।

पहले प्रयास में असफल होने के बाद भी हिम्मत ना हारते हुए, दोगुने उत्साह के साथ अलीगढ़ में अपने परिवार व बच्चों के बीच रहकर प्रतिदिन किताबों, सोशल मीडिया व इंटरनेट की मदद से वर्ष 2018 में लगभग 10 से 15 घंटे तक पढ़ाई की और यूपीएससी की परीक्षा में AIR- 277वीं रैंक प्राप्त कर सफलता का परचम लहराया।

 वर्ष 2019 में भी यूपीपीसीएस की परीक्षा में 6वीं रेंक के साथ सफलता हासिल की और अपनी सभी जिम्मेदारियों को निभाते हुए 2020 में भी यूपीएससी की परीक्षा दी, जिसका कि अभी परिणाम आना बाकी है। डॉ. बुशरा वानो ने अपने करियर की शुरुआत उत्तर प्रदेश के जनपद फिरोजाबाद से 5 मई 2020 को उपजिलाधिकारी के रूप में की। वर्तमान में बुशरा इसी पद पर जनपद फिरोजाबाद की तहसील टूंडला में अपने पदीय उत्तरदायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वहन करने के साथ-साथ अपने परिवार की जिम्मेदारी भी बखूबी रूप से निभा रहीं हैं।

उपजिलाधिकारी डॉ बुशरा वानो ने एक मुलाकात के दौरान पूछे जाने पर बताया कि वह मध्यम वर्गीय परिवार से हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश की जनपद कन्नौज के कस्बा सौरिख में हुआ है। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की रेजिडेंशियल कोचिंग एकेडमी में पढ़ाई और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पीएचडी मैनेजमेंट में की है।

 निकाह के बाद की एक नए सफर की शुरुआत

मेरठ के रहने वाले एएमयू से इंजीनियरिंग कर चुके अस्मार हुसैन से पढ़ाई के दौरान ही निकाह हो गया। वह हार्वे सऊदी अरब स्थित एक यूनिवर्सिटी में अध्यापन कार्य करते थे। विवाह होने के बाद वर्ष 2014 में बुशरा अपने पति के साथ सऊदी अरब चली गईं। वहां पर अपने पति के साथ में असिस्टेंट प्रोफेसर बन कर उन्होंने भी अध्यापन कार्य शुरू कर दिया था।

शादी के बाद सऊदी अरब में उनकी ज़िन्दगी अच्छी चल रही थी। उन्हें किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन वह अपने वतन के लिए कुछ करना चाहती थीं। इसलिए दो साल बाद ही वह अपने पति के साथ भारत लौटकर आ गईं और भारत आकर तुरंत ही UPSC की तैयारी शुरू कर दी और तब तक की जब तक की सफलता नहीं मिल गई। इस तरह अपना घर परिवार संभालते हुए पूरे देश की महिलाओं के लिए एक मिसाल बन गईं।

सामाजिक व नई सोच रखने वाली महिला अधिकारी हैं डॉ. बुशरा वानो

जनपद फिरोजाबाद की तहसील सदर से अपने करियर की शुरुआत करने वाली डॉ. बुशरा वानो का पर्यावरण व बच्चों से विशेष स्नेह है, जिसका जीता जागता उदाहरण उस समय देखने को मिला जब अवकाश के दिन भी प्रशासनिक सेवाओं में व्यस्त होने के बावजूद समय निकालते हुए, वे 26 जनवरी 2021 की शाम को भारत माता पार्क के खुले मैदान में पहुंची और जनआधार कल्याण समिति द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान क्षयरोग से पीड़ित व उससे स्वस्थ हो चुके बच्चों के बीच रहते हुए, एक परिवार के सदस्य की तरह सभी का सम्मान व उत्साह वर्धन किया।

उनके साथ कुछ यादगार पल भी बिताए और एक नई सोच के साथ पहल करते हुए एकजुट होकर “आओ हम सब मिलकर टीबी मुक्त भारत बनाएं” का भी संदेश दिया, जो उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ताओं व गणमान्य लोगों के बीच चर्चा का विषय बना रहा।

Exit mobile version