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हिमालय को जिस तरह से चीरा जा रहा है, वह पारिस्थितिकी के लिए बहुत ही खतरनाक है

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके बहुत ही संवेदनशील हैं। पहाड़ों में स्थानीय लोग पेड़, पौधों, पर्वतों, नदी आदि को देव-देवताओं के रूप में मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। जिस तरह से लगातार पहाड़ों में अवैज्ञानिक तरीके से विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, वह बहुत ही गंभीर विषय है।

उत्तराखंड में जो आपदाएं आ रही हैं, वो प्राकृतिक नहीं मानव जनित हैं

चमोली जिले के एक गांव के सरपंच मंगल उपाध्याय जी ने बताया कि बुग्यालों​ (पर्वतीय घास के मैदान) में जब स्थानीय लोग जाते थे, तो वहां चप्पल जूते खोलकर जाते थे। लोगों की एक मान्यता थी कि बुग्याल (पर्वतीय घास के मैदान) में बहुत सारी जड़ी बूटियां पाई जाती हैं, जिनके संरक्षण के लिए इस तरह के और अन्य कई सारे तरीके लोगों द्वारा बनाए गए थे।

आज जिस तरह से बुग्याल का अनियंत्रित तरीके से दोहन किया जा रहा है, वह बहुत खतरनाक है। बुग्यालों में जहां ज़ोर से आवाज़ लगाने पर भी पहाड़ के खिसकने का डर होता है, वहां जोर से बोलना भी प्रतिबंधित था। स्थानीय लोगों द्वारा हिमालय क्षेत्र में रहने के अपने तौर-तरीके थे। हिमालय के इन संवेदनशील पहाड़ों में आज सुरंग खोदकर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बनाना और ब्लास्ट कर बड़े पत्थरों को तोड़ने का काम किया जा रहा है।

स्थानीय लोग बताते हैं कि लगातार इस तरह की जो प्राकृतिक आपदा आ रही है, वह प्राकृतिक घटनाएं नहीं हैं।  ये मानव जनित ये हैं, जो समय के साथ बहुत खतरनाक रूप लेता जा रहा है। इस तरह के निर्माणों पर अगर रोक नहीं लगाई गई, तो जब हिमालय पूरी तरह से गरजेगा, तब उस त्रासदी को रोकने की हिम्मत किसी के पास नहीं होगी।

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याचिका पर भी अबतक कोई सुनवाई नहीं

जोशीमठ (चमोली) के ठीक सामने वाले गांव रूपस्या बगड़ और खासिया बगड़, चाई गांव के नीचे से जब सुरंग खोदी गई, तो स्थानीय लोगों को भरोसे में रखा गया कि आप लोगों को सारी सुख-सुविधाएं दी जाएंगी और लोगों का विस्थापन भी ठीक तरीके से किया जाएगा। लेकिन जब नेपाल में भूकंप आता है, तो उस समय यह गांव सुरंग में अंदर धंस जाते हैं।

आज स्थिति यह है कि इन लोगों के पानी के स्रोत (नौले-धारे), खेत-खलियान, रास्ते और लोगों के घर आड़े तिरछे हो गए हैं और लोग लगातार वहां खौफनाक ज़िन्दगी जीने को मजबूर हैं। शासन-प्रशासन के द्वारा कोई सुनवाई नहीं हो रही है। लोगों के द्वारा उच्च न्यायालय में याचिका भी दायर की गई है, जिस पर भी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। जिस तरीके से लगातार हिमालय जैसे संवेदनशील पहाड़ों को चीरा जा रहा है, वह स्थानीय समाज, लोगों, प्रकृति, और परिस्थितिकी के लिए बहुत खतरनाक है।

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ते पर्यावरणीय खतरों और पर्यावरण को बचाने के स्थानीय प्रयासों को समझने के लिए आप यह फिल्म देख सकते हैं।

यह लेख गोपाल लोधियाल जी ने लिखा है

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