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“युवाओं में जुनून तो है, मगर खेती-किसानी के प्रति नहीं”

कृषि क्षेत्र में हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि युवा खेती नहीं करना चाह रहे हैं। यह स्थिति एक संकट की स्थिति है। युवा गांव में नहीं रहना चाह रहे और अगर रह भी रहे हैं तो खेती को हाथ नहीं लगाना चाहते। ये पूरे देश की स्थिति है और हमारे नीति-निर्माताओं के सामने चुनौती है कि ऐसी नीतियां बनाएं जिससे गांवों में युवा रह सकें और खेती-किसानी कर सकें।

खेती-किसानी से दूर भागता युवावर्ग

आज-कल के युवा, पहले की अपेक्षा शिक्षित हो रहे हैं। पढ़-लिखकर ये शहरों की ओर चले जाते हैं। नौकरी करते हैं, बिज़नेस करते हैं। किसान भी जी-तोड़ मेहनत करके अपने बच्चों को पढ़ाते-लिखाते हैं और चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ाई-लिखाई कर नौकरी या बिजनेस करें। अब आप कहेंगे कि सवाल तो ये था कि वो खेती करना क्यों पसंद नहीं करते? या यूं कहें कि आजकल के युवा पढ़े-लिखे होने के बावजूद खेती करना क्यों पसंद नहीं करते?

कहने का तात्पर्य ये हुआ कि अगर युवा शिक्षित हैं तो उन्हें भली-भांति पता होगा, कि खेती का हमारे जीवन में कितना महत्व है? सभी लोग जानते हैं और मानते हैं कि अगर किसान खेती नहीं करेगा, तो देश दुनिया की बढ़ती आबादी खाएगी क्या? मगर जितनी तेजी से आबादी बढ़ रही है, किसान उतने ही कम होते जा रहे हैं। अगर किसान नहीं हुए तो लोगों को खाना मिलना कम हो जाएगा। अनाजों की कीमत बढ़ जाएगी।

गरीब लोग अनाज खरीदने से वंचित रह जाएंगे। जिसके पास अधिक पैसे होंगे वो सारे खाने खरीद ले जाएंगे। गरीब भूखा मरेगा। जीवों की हत्या और मांस का सेवन बढ़ जाएगा वगैरह-वगैरह। इतना तो एक आम पढ़ा लिखा युवा आसानी से समझ ही जाता है। मगर फिर भी ऐसी क्या बात है जो वो ये सब जानते हुए भी खेती के महत्व को नज़रअंदाज कर देता है? वो चाहे तो पढ़ने-लिखने के बाद रोजगार के लिए दर-दर भटकने से अच्छा, खेती कर के अपना खुद का बिज़नेस खड़ा कर सकते हैं । फिर भी क्यों नहीं कोई भी युवा इस विकल्प को चुनना पसंद करता है?

आखिर क्या वजहें हैं?

इसका कारण यह है कि हम युवा जब गांवों को छोड़कर शहरों में पढ़ाई-लिखाई के वास्ते बस जाते हैं, हम देश-दुनिया की तमाम बातों से अवगत होते हैं। हमें शहरों की चकाचौंध पसंद आ जाती है। हम इसके आदि हो जाते हैं और हमारे सपने बदल जाते हैं। जी हां, हमारे सपने बदल जाते हैं। हमारा मकसद अब सिर्फ खेती करके अपना पेट भरना और सादा जीवन जीना नहीं रह जाता।

हम बहुत बड़े-बड़े सपने बुन लेते हैं और उन सपनों को पूरा करने के लिए जी जान से जुट जाते हैं। कोई बहुत बड़ा बिज़नेसमैन बनना चाहता है। कोई इंजीनियर बनना चाहता है। कोई कलाकार बनना चाहता है। कोई अभिनेता या अभिनेत्री, तो कोई विज्ञान में कोई चमत्कार हासिल करना चाहता है। यहां तक कि आजकल के ये युवा पूरे ब्रह्मांड की सैर करने तक के सपने पाल लेता है।

इन्हें पाने के चक्कर में कई ज़िन्दगियां बर्बाद भी हो जाती है। हासिल कुछ नहीं होता। फिर भी एक सनक होती है, एक जुनून होता है। यह अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीना चाहते हैं, उन्हें इसी में खुशी मिलती है। हां, आजकल के युवा जुनूनी हो गए हैं। जानता हूं युवाओं में जुनून का होना तो आम बात है लेकिन आजकल ये थोड़ा अधिक हो गया है। उन्हें जुनून है ना सिर्फ पैसे कमाने की, बल्की अपना नाम कमाने का भी।

जुनून तो है लेकिन खेती के प्रति नहीं

उन्होंने किताबों में अनगिनत लोगों का इतिहास पढ़ा है, जिनके नाम की मिसालें पूरी दुनिया देती हैं। आज के युवा उन्हीं में से एक बनना चाहते हैं। इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाना चाहते हैं। नहीं तो कम से कम गिनीज़ बुक में तो ज़रूर अपना नाम लिखवाना चाहते हैं।

जुनून इतना कि भूखे पेट सुबह से शाम काम करते हैं। कहीं से बना बनाया बेस्वाद खाना खा लेते हैं। एक साल गया नहीं कि दूसरा आ जाता है, पता भी नहीं चलता। अपने घरों से दूर रहकर काम करते हैं। देखभाल करने वाले परिवार के लोग होते ही नहीं, परिणामस्वरूप तबीयत बिगड़ जाती है। शरीर से कमज़ोर, मनोवैज्ञानिक दबाव, अनेक मानसिक और शारीरिक रोग, आजकल के युवाओं को कटी-कटी और टुकड़ों की ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर देते हैं। अब अगर इसे उनकी सनक और जुनून का परिणाम नहीं कहा जाए तो फिर क्या कहा जाए?

इसीलिए मेरा सवाल तो इससे उल्टा यह है कि आखिर इतना पढ़ाई-लिखाई करने के बाद, देश दुनिया की तमाम बातों को जानकर और लंबे सपने देख कर कोई युवा खेती करने क्यों जाए?


लेखक- प्रेम रावत

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