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चार साल से न्याय की भीख मांग रहा यह दलित परिवार, FIR में आरोपियों के नाम तक नहीं

भारत की धीमी कानूनी प्रक्रिया आज किसी से भी छिपी हुई नहीं है। इसके परिणामस्वरूप निर्दोष भी कई दिनों तक जेल की चारदीवारी के पीछे अपनी ज़िन्दगी बीता देते हैं और इसी कानूनी प्रक्रिया का हवाला देकर कई दोषियों के ऊपर कोई कारवाई तक नहीं की जाती। जिसके कारण कानून की लगाम से छूटकर वो बेफिक्र घूमते हैं और अगली अप्रिय घटनाओं की तैयारी करते रहते हैं।

नाबालिक बच्ची को अगवा कर किया बलात्कार

ऐसी ही कुछ स्थिति झारखंड के गोड्डा जिले में देखने को मिला। जहां दल और बल के सामने कारवाई की धीमी प्रकिया एक बार फिर से शंका की दृष्टि में है। दरअसल, यह पूरा मामला कोरी जाति के एक परिवार के इर्द-गिर्द घूमता है। जहां 4 साल पहले श्रीदेवी कोरी की नाबालिग भतीजी के साथ गांव के कुछ दबंग लोग संतोष शुक्ला, छोटे बाबू पांडेय, छोटू पांडेय ने अगवा कर उसका बलात्कार किया था।

इस मामले में उनके खिलाफ केस होने के बाद अबतक करवाई चल ही रही है। जेल हो जाने के डर से अब यही लोग अपने चिरपरिचित दबंग स्वभाव का परिचय देते हुए कोरी परिवार के ऊपर केस वापस लेने का दबाव बना रहे थे। साथ ही बार-बार उन्हें कुछ अनहोनी घटना की चेतावनी देकर डरा भी रहे थे।

जब यह बात उनके पल्ले पड़ी कि इन धमकियों से कुछ होने वाला नहीं है तब उन्होंने इन धमकियों को सच करने की ठानी। 1 मार्च को अपने घर से कुछ दूर शौच करने गई श्रीदेवी कोरी को इन्होंने मिलकर जला दिया।

एफआईआर में आजतक आरोपियों के नाम की जगह ‘अज्ञात’

श्रीदेवी के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ सुन जब परिजन उसके पास गए तो जलती हुई श्रीदेवी को देख डर गए। उसके बाद ही वो बेहोश हो गई। परिजनों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया परंतु गंभीर स्थिति को देखते हुए अस्पताल से उनको लखनऊ रेफर कर दिया गया, जहां पुलिस को बयान देने के क्रम में श्रीदेवी की मृत्यु हो गई।

मामला यहां सबकुछ स्पष्ट दिखता है कि किस तरह बदले की भावना में आकर संतोष शुक्ला सहित उनके साथियों ने श्रीदेवी को आग के हवाले कर दिया। साक्ष्य के तौर पर अपने अंतिम क्षणों में भी मृतिका ने अपने मुंह से दोषियों का नाम लिया। बावजूद इसके जब आपकी नज़र इस घटना की एफआईआर पर जाएगी तो आपको अब भी दोषियों के नाम की जगह अज्ञात लिखा हुआ देखने को मिलेगा। जो कि कानून के लिए खुद ही एक शर्मशार कर देनी वाली घटना है।

इस मामले की गहराई समझने के लिए और दोषियों पर अबतक कारवाई नहीं होने की वजह पूछने के लिए जब खबरखण्ड ने गोड्डा थाना के प्रभारी से बात की तो उनका कहना था कि, “अबतक किसी ने भी अपराधियों को मृतिका को जलाते हुए नहीं देखा है। मृतिका का जो बयान लखनऊ में दर्ज किया गया है वो अभी तक हमारे पास साक्ष्य के तौर पर नहीं आए हैं। जब साक्ष्य मजिस्ट्रेट के पास आ जाएगा तो उनकी ही इजाज़त के बाद हम साक्ष्य देख पाएंगे और फिर कोई कार्यवाही होगी।”

यानी कि कुल मिलकर ये कहावत की हाथ-कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फ़ारसी क्या, बिल्कुल जूठी साबित होती है। पानी की तरह साफ दिखता सच भी कानून की नज़रों में बंधी पट्टी के आगे गायब हो जाता है। शायद इसलिए भी समाज के वंचित लोग न्याय से भी वंचित रह जाते हैं।

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