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गुजरात का जलियांवाला कांड, जहां मारे गए थे 1200 लोग

ये है गुजरात का जलियांवाला कांड, जहां आज मारे गए थे 1200 लोग

आज़ादी की लडाई में अनेक लोगों ने भाग लिया और अनेक स्थलों पर नरसंहार हत्याकांड हुए थे, लेकिन कुछ हत्याकांडो को लोग जानते हैं, लेकिन कुछ शहीदों के बारे में कम ही लोग जानते हैं। उनमें ही शामिल है पाल दढ़वाव का हत्याकांड, जहां अंग्रेजो की गोलीबारी में 1200 से अधिक आदिवासी लोग शहीद हो गए थे।

7 मार्च, 1922 के दिन विजयनगर तहसील के पाल दढवाव गांव में राजस्थान के कोलीयारी गांव के कॉंग्रेसी  कार्यकर्ता मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में हजारों स्वतंत्रता सेनानी एकत्रित हुए थे। इस सभा में अंग्रेज़ों द्वारा आदिवासियों पर लगाए जा रहे कर व शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने की चर्चा की जा रही थी।

इसी बात से गुस्साए ब्रिटिश अधिकारी सुरजी निनामा के आदेश के बाद अंग्रेज़ी सिपाहियों ने अंधाधुंध गोलीबारी कर 1200 से अधिक निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इस नरसंहार में यहां के पूर्व सरपंच कमजीभाई डामोर के घर के पास स्थित एक कुंए में लोग जान बचाने के लिए कूद पड़े थे। इतिहासकारों के अनुसार पूरा कुंआ लाशों से भर गया था। अब इस कुंए पर उन शहीदो की याद में यहां स्मारक बना दिया गया है।

डेढ दशक पहले बनाया वीरांजलि वन


गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2003 में 1200 वीर आदिवासी जवानों की शहादत के लिए 1200 पौधे लगाकर इस वीरांजलि वन का उदघाटन किया था। इस वन के बाद यहां के स्थानीय लोग अब इस जगह पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए बडी संख्या में लोगों की भीड जमा होती है।

इस आंदोलन के माध्यम से जिस आदमी ने यहां-वहां आदिवासियों में जागृति का काम किया था, उसका नाम था, मोतीलाल बनिया (तेजावत)। उस समय मोतीलाल के एक खास आदमी थे, रामजी भाई मंगलाजी परमार। इन्होंने ही घटना के दिन आदिवासियों को बड़ी संख्या में इकट्ठा होने के लिए प्रेरित किया था। महीनों तक घर बार छोड़ कर वे इस दुर्गम इलाके में घूमे थे।

आदिवासी अंग्रेज़ों के बढ़ते अत्याचारों और लगान की वृद्धि से दुःखी थे 

अंग्रेज़ों के कहने से विजयनगर रियासत की आदिवासी विरोधी नीतियों के कारण आदिवासी दु:खी थे। जागीरदारों द्वारा बिना कुछ लिए-दिये बेगार करवायी जाती थी। वन उपज पर सरकार ने पाबंदी लगा दी थी और जंगलों को काटा जाने लगा था। सागोन की लकड़ी इंग्लैण्ड व अन्य देशों में भेजी जाने लगी थी। अंग्रेज़ों ने जगह-जगह   छावनियां स्थापित कीं और विभिन्न विभागों के कार्यालय खोले, उनके भवनों में वही लकड़ी उपयोग में ली गई थी।

 इसलिए जंगलों को भारी नुकसान हो रहा था। जो भी थोड़ी बहुत खेती-बाड़ी होती, उस पर लगान लगा दिया था। आए दिन लोगों को सरकारी कर्मचारियों और जागीरदार के आदमियों द्वारा परेशान किया जाता था। इस सारे माहौल में मोतीलाल जैसा संकल्पी नेता आदिवासियों को मिला। मोतीलाल यहां कई बार आए थे। उनके खिलाफ अंग्रेज़ों  ने फरारी का फरमान जारी किया था, तब भी कई दिनों तक वह यहां इस इलाके में छिपकर रहे थे।

जलियांवाले बाग की तरह निर्दोष लोगों पर फायरिंग 

लेकिन, 7 मार्च 1922 को जब वे आदिवासियों की सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी ब्रिटिश अधिकारी सुरजी निनामा के आदेश के बाद अंग्रेज़ी सिपाहियों ने अंधाधुंध गोलीबारी कर 1200 से अधिक निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इसी स्थल पर एक कुंआ था, जो आज भी इस घटना की रोंगटे खड़ी कर देने वाली याद दिलाता है। इसी कुंए में लोग अपनी जान बचाने के लिए एक-एक कर कूदते गए थे। बताया जाता है कि यह कुंआ उस समय लाशों से पूरा भर गया था।

वर्तमान में इस कुंए के ऊपर एक स्मारक बना दिया गया है। इसके साथ ही गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां मारे गए 1200 लोगों की याद में 1200 पौधे रोपे थे, जिनमें से अब कई वृक्ष का रूप ले चुके हैं।

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