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अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर सामाजिक एवं मानवीय मूल्यों का हनन

अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर सामाजिक एवं मानवीय मूल्यों का हनन

आज मै अपनी लेख में एक शब्द लिख रहा हूं। वह शब्द है अभिव्यक्ति की आज़ादी, यह काफी चर्चित शब्द है शायद और मैं तो यह कहता हूं कि यह महज़ एक शब्द ही नहीं है, बल्कि आम आदमी के लिए यह वरदान है।  परन्तु, यही शब्द हमारे कथाकथित स्वच्छ छवि वाले नेताओं के लिए हथियार है।

ऐसे तो भारत में हमेशा से चुनावी जुमले काफी जोर-शोर से कहे जाते रहे हैं, परन्तु धीरे-धीरे इनका रूप विकराल होता जा रहा है। चुनावी जुमला भी कोई बड़ी बात नही हैं, क्योंकि यह झूठ नहीं बोलेंगे और लोगो से झूठे वादे नहीं करेंगे तो फिर ये जीतेंगे कैसे !। ऐसे में एक नया स्ट्रेटजी नेताओं के सामने आई है। वह है अपनी चुनावी रैलियों/सभाओं  में अमर्यादित / असभ्य भाषा का प्रयोग क्योंकि, आज कल लोग ऐसी ही भाषा को ज़्यादा पसंद कर रहे हैं।

अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर समाज में अश्लीलता परोसते डिजिटल प्लेटफॉर्म्स 

इसका जीता-जागता उदाहरण आपके सामने है। आज के आधुनिक काल के डिजिटल मीडिया या वेब पोर्टल पर प्रसारित होने वाली अमर्यादित/असभ्य भाषा में गाली, अंगो का खुला प्रदर्शन और तो और यहां पर आपको गाली सीखने और स्वयं को आधुनिक बनाने के लिए फैमिली पैक भी मिलता है। हम जैसे फेमस मिर्जापुर वेब सीरीज की बात करें तो उसमें अमर्यादित/ असभ्य  गलियों की भरमार है (…..छाता खोल देंगे, … वाले चाचा ) तो वहीं उल्लू एप्प, ऑल्ट बालाजी वालों ने तो मनोरंजन की परिभाषा ही बदल कर रख दी हैं।

इनका साफ-साफ कहना है कि बिना फ्रेंच किश और सेक्स दृश्यों के लोगो को कुछ परोसा नहीं जा सकता है। इसलिए ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स अपनी वेब सीरीज जैसे- गन्दी बात, xxx, कविता भाभी और चरमसुख जैसे सॉफ्ट पोर्न वाले वेब सीरीज बना कर लोगो का मनोरंजन करने का पूरा प्रयास करते हैं। 

 इन सब के चलते ऐसे में आम आदमी का क्या कुसूर माना जाए। वैसे, देखा भी जाए तो हमारे तथाकथित सभ्य समाज में आदमी का कुसूर कभी होता ही नहीं है, क्योंकि वो आम आदमी जो ठहरा। चलिए, अब लौट कर हम वापिस अपने विषय पर चलते हैं। हमारे यहां जिस तरह से चुनावों एवं रैलियों /सभाओं में भाषा का प्रयोग होता है, चाहे वह बिहार हो या बंगाल या दिल्ली हो या उत्तरप्रदेश। इन सभी जगहों के चुनावों एवं रैलियों में एक समानता है, वह है अमर्यादित भाषा का प्रयोग और इसके प्रयोग में यहां कोई भी राज्य एक-दूसरे से पीछे नहीं है।

लोकतंत्र की स्वस्थ प्रक्रिया, चुनावों की रैलियों में अमर्यादित भाषा का भरपूर प्रयोग 

आपको याद होगा कि बिहार में चुनाव के वक्त बिहार के सुशासन बाबू कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने एक चुनावी जनसभा में कहा था कि ” एक बेटे के लिए आठ-नौ बच्चे पैदा करने वाले लोगों से क्या विकास की उम्मीद की जा सकती है? तो वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक चुनावी रैली के दौरान बीजेपी नेता इमरती देवी को आइटम कह दिया था। उत्तर प्रदेश में भी ऐसे ही एक चुनावी रैली में  सपा के नेता आज़म खान ने रामपुर सीट पर अपनी प्रतिद्वंद्वी अभिनेत्री-राजनीतिज्ञ जयाप्रदा के खिलाफ अश्लील टिप्पणी की थी।

खान ने उनका नाम लिये बगैर अपनी चुनाव रैली में कहा था कि ” रामपुर वालों, उत्तर प्रदेश वालों, हिन्दुस्तान वालों, आपको उसकी असलियत समझने में 17 बरस लग गए, लेकिन  मैं 17 दिनों में पहचान गया कि वह खाकी रंग का अंडरवियर पहनती है” और इसी तरह बिहार की एक चुनावी रैली में गिरिराज सिंह ने मुस्लिम समुदाय पर निशाना साधते हुए कहा कि  ”जो वंदेमातरम नहीं कह सकते या मातृभूमि का सम्मान नहीं कर सकते हैं, उन्हें माफ नहीं किया जाएगा। “

भारतीय चुनाव आयोग की सत्ता पक्ष के प्रति निष्क्रियता 

वहीं दूसरी तरफ हमारे देश के चुनाव आयोग का हाल कठपुतली जैसा हो रखा है। वह चाह कर भी सत्ता पक्ष के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा सकता, क्योंकि ऐसा करने पर उस अधिकारी के यहां तुरंत ट्रांसफर का सिलसिला और सौ तरह की एजेंसियों का छापा पड़ना शुरू हो जाएगा। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या यह लोकतंत्र के लिए अच्छा है? ऐसे नेता राजनीति में आने वाली अगली पीढ़ी को क्या सिखा रहे हैं? नेताओं की गंदी होती जुबान और उस पर पार्टी नेतृत्व की तरफ से अंकुश ना लगाया जाना समाज के लिए बेहद घातक हो सकता है।

ऐसे में भारत सरकार से और सर्वोच्च न्यायालय से एक ही निवेदन है की वो एक ऐसे कानून का निर्माण करे, जिसमें ऐसे अमर्यादित/असभ्य टिप्पणी करने वाले नेताओं पर उचित करवाई हो और हो सके तो उसे भविष्य में  चुनाव लड़ने के अधिकार से भी वंचित कर दिया जाए या फिर कोई और ठोस प्रभावकारी कदम उठाया जाए तो समाज के लिए बेहतर होगा।

 क्योंकि एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी तत्वों में से एक मर्यादित भाषा का प्रयोग चाहे भी है फिर चाहे वह संवाद प्रतिद्वंदी या विपक्ष के लिए ही क्यों ना हो।  

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