कोई भी रिश्ता विश्वास की बुनियाद पर टिका होता है लेकिन जब वही विश्वास खो जाए, और वो शक में बदल जाए तो रिश्ते में कड़वाहट के सिवाए कुछ नहीं बचता। मगर इस कड़वाहट की भुक्तभोगी अक्सर महिलाएं ही होती हैं जिन्हें इस शक का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है।
शक के आधार पर पति ने पत्नी के प्राइवेट पार्ट तार से सिल दिये
शक होना किसी मनुष्य का प्राकृतिक स्वभाव है परंतु उस शक में मानवता की सारें हदें लांघ देना किसी भी हद तक जायज़ नहीं है। हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में हम प्रत्येक दिन ऐसी चौंकाने वाली खबरें सुनते हैं जहां शक के कारण महिलाओं के साथ बर्बरता की गई।
एक ऐसी ही बेहद चौंकाने वाली खबर रामपुर जिले के मिलक एरिया से जहां एक 25 वर्षीय पति ने अपनी 22 वर्षीय पत्नी के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल एफेयर के शक में बर्बरता की हद पार कर दी। पत्नी के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की बात से मना करने के बावजूद पति ने उसकी एक न सुनी और उसके हाथ बांध कर प्राइवेट पार्ट में कॉपर की तार से सिलाई कर दी।
सिर्फ इस कारण से कि उसे अपनी पत्नी पर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का केवल शक मात्र था। पुलिस ने जानकारी दी की महिला फिलहाल ठीक है और उसके पति को गिरफ्तार कर लिया गया है। यह दुर्घटना बेहद चौंकाने वाली है। इसलिए नहीं कि महिला के साथ बर्बरता हुई बल्कि इसलिए भी चौंकाने वाली है क्योंकि भारत में 2018 में 158 वर्षों पुराना एडल्टरी कानून कानून रद्द कर इसे अवैध करार दिया गया था।
एक्स्ट्रा मैरिटल एफेयर के नाम पर की जाने वाली बर्बता के खिलाफ कानून
इस कानून के अनुसार यदि कोई पुरूष किसी विवाहित महिला के पति के आज्ञा के बिना उससे संबंध बनाता है तो इसे दंडनीय माना जाएगा। किंतु सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पति अपनी पत्नी का मालिक नहीं है और यह कानून महिला को पति की संपत्ति के रूप में पेश करता है। इस कानून को रद्द हुए लगभग 4 वर्षों का समय बीत गया है लेकिन लोग इस कानून को अपनाने को तैयार नहीं लगते।
आज भी एक्सट्रा मैरिटल एफेयर के कारण होने वाले हिंसा और बर्बरता कई सवाल पैदा करते हैं। घरेलू हिंसा भी एक्सट्रा मैरिटल एफेयर का ही एक कारण है जो तेलंगाना में किया गया एक सर्वे यह बताता है। तेलंगाना में 2018 में 3000 घरेलू हिंसा के मामले दर्ज किए गए जिसमें से 40% का कारण एक्सट्रा मैरिटल अफेयर ही बताया गया।
मगर ऐसा भी नहीं है कि एक्सट्रा मैरिटल अफेयर के नाम पर की जाने वाली बर्रबता के लिए किसी सजा का प्रावधान ना हो। भारतीय दंड संहिता यानी IPC के सेक्शन 498-A, सेक्शन 323, 506 तथा 326 के तहत आपराधिक मामले दर्ज कर सजा का प्रावधान करता है।