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टीना डाबी के तलाक और आयशा की आत्महत्या में यह समाज क्या देखने से चूक जाता है?

बीते दिनों निजी संबंधों के न चल पाने के कारण टीना डाबी ने अपने पार्टनर अतहर से तलाक ले लिया। जिसके चलते वो सामाजिक उपहास का शिकार हुईं। कारण कि हमने तलाक और ब्रेकअप को सहज लेना सीखा ही नहीं है।

आयशा ने आत्महत्या नहीं की, हमारे पूर्वाग्रहों ने उसका कत्ल किया

जिनके तलाक या अधिक ब्रेकअप हुए, उनके निर्णय इस समाज के पूर्वाग्रहों के हमेशा पीड़ित रहे हैं। तलाक और ब्रेकअप्स को “खोट” की तरह देखा गया। अगर किसी स्त्री ने तलाक लिया मतलब ज़रूर कुछ खोट होगा। किसी पुरुष के अधिक ब्रेकअप हुए तो मतलब ज़रूर विमनाइज़र होगा।

मगर इस तरह से कभी नहीं देखा गया कि ब्रेकअप और तलाक रिश्ते बनाने में हुईं अपनी गलतियां सुधारने के सहज निर्णय हैं। हमने आएशा को तलाक लेने लायक माहौल दिया ही नहीं। उसे दूर-दूर तक नहीं दिखा कि तलाक के बाद भी जीवन है। उसके बाद भी कोई उसका हाथ पकड़कर कह सकता है कि वो उससे प्रेम करता है।

इसलिए इस बात को मैं बार-बार दोहराना चाहता हूं कि आएशा ने आत्महत्या नहीं की बल्कि हमारे पूर्वाग्रहों ने उसका कत्ल किया है। जिन-जिन लोगों को आएशा के मरने पर दुःख हुआ है उनको ठीक से याद करके सोचना चाहिए कि पिछली बार उन्होंने किसी के अलग होने के निर्णय का स्वागत किस तरह किया था?

शादी या फिर तलाक यह एक नितांत निजी मसला है

तलाक और ब्रेकअप करने वाले लड़के- लड़कियों के लिए हमारे शब्दकोश में बदचलन, विमनाइज़र जैसे शब्दों से अधिक कुछ नहीं है। हमने कभी नहीं कहा कि तलाक बुराई नहीं बल्कि अपनी गलतियों को सही करने का एक सामान्य सा निर्णय है। हम खुद हर रोज़ अपने आसपास के न जाने कितने लोगों को आएशा बनने के लिए धकेलते हैं।

इन मामलों में महिला जल्दी हार जाती हैं क्योंकि उनके लिए बनाई गई हमारी परिस्थितियां और अधिक निर्मम हैं। पुरुष आत्महत्या नहीं करते मगर सार्वजनिक आलोचनाओं का शिकार उन्हें भी होना पड़ता है। जबकि किसी से जुड़ना, उनसे अलग होना, शादी करना, तलाक लेना नितांत निजी मसला है, पर सार्वजनिक आलोचना की परिधि में आकर नितांत निजी फैसले भी मुश्किल हो जाते हैं।

इसलिए लोग, खासकर लड़कियां ब्रेकअप और तलाक को बचाने के लिए गंदे से गंदे रिश्ते में बनी रहती हैं या खुद को खत्म कर लेती हैं। टीना डाबी आर्थिक रूप से सक्षम थीं, और मानसिक रूप से भी। परिवार भी पहले से ही सक्षम था, इसलिए तलाक का फैसला लेना उनके लिए कुछ सरल रहा। हालांकि, सोशल मीडिया ने उनके इस नितांत साहसिक फैसले की छीछालेदर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

तलाक को हमें अधिक सहज बनाने की ज़रूरत

आएशा के लिए दुःख मनाने वाले कई दोस्त टीना पर मीम्स बना रहे थे। हमें खुद को नुकसान पहुंचा लेनी वाली आएशा से सहानुभूति है मगर टीना से नहीं। यही दोहरापन लड़कियों को आएशा बनने के लिए खुली सड़क देता है। टीना के ब्रेकअप के बाद लिखा था कि ये वक्त बहुत अधिक सेंटी होने से अधिक तलाक पर बात करने के लिए सबसे माफिक वक्त है। वक्त है कि हम तलाक से जुड़े टेबू पर बात करें।

वक्त है कि तलाक को बुरा कहना बंद कर दें। ब्रेकअप्स को बुरा मानना बंद कर दें। तलाक-ब्रेकअप्स दुखद हैं लेकिन बुरे नहीं। तलाक को हमें अधिक से अधिक सहज बनाने की ज़रूरत है। हिंदी में कहीं पढ़ने को मिला था कि घर में घुटकर मरने वाली लड़कियों से तो भागने वाली लड़कियां अच्छी हैं। ऐसा ही मेरा मत रिश्तों को लेकर है।

टॉक्सिक रिश्तों को खींचकर पांच साल करने से अच्छा है कि 5 महीने में तब ही अलग हो जाएं जब लगे कि आने वाला वक्त मुश्किल है। अगर गंभीरता से सोचें तो तलाक एंड नहीं है बल्कि एक पुनर्विचार है। ज़रूरी नहीं कि जिनसे गले लगकर आपने भविष्य के सपने देखे हैं उनपर रिजिड ही हुआ जाए। मेरा मानना है कि कठोर से कठोर हृदय में भी प्रेम उपजने की पूरी गुंजाइश है फिर जिसने जीवन में एकबार भी प्रेम किया है तो उस मन में दोबारा प्रेम स्थापित होने की तो पूरी-पूरी गुंजाइश बची रहती है।

इसलिए एक ब्रेकअप या एक तलाक के बाद भी दूसरे ब्रेकअप और तलाक के लिए मन बनाकर रखना चाहिए। अक्सर देखता हूं कि चार या पाँच ब्रेकअप की बात सुनकर लोग मुंह बनाते हैं, मुंह से भी अधिक पूर्वाग्रह बनाते हैं और आपको ये फील कराते हैं कि ज़रूर आपमें ही कुछ गलत है।

ज़रूर ही आप एक अच्छे पार्टनर नहीं रहे होंगे लेकिन मेरा मानना है कि आप अच्छे पार्टनर थे इसलिए ही अपने आप को करेक्ट करने के लिए आपने तलाक चुना, ब्रेकअप चुना। ब्रेकअप हमारी कहानी के एंड नहीं बल्कि करेक्टिव मीजर्स हैं, एक अपॉर्च्युनिटी है अपने आपको करेक्ट करने के लिए।

“फॉरएवर” शब्द में बुनियादी खोट है

किसी ने मुझसे पूछा तुम्हारे इतने ब्रेकअप हुए तुम शादी मत करना नहीं तो तलाक हो जाएगा। एक तरह से उनके प्रश्न में शादी को अंतिम चुनाव की तरह देखा गया था। यानी शादी मतलब कि विकल्पों का अंत। तलाक मतलब सभी तरह से एंड लेकिन मेरा जबाव था कि जिस तरह मैं ब्रेकअप के लिए सहज हूं उसी तरह तलाक के लिए भी रहूंगा।

एक बार तलाक के बाद दूसरे तलाक के लिए और दूसरे तलाक के बाद तीसरे, चौथे, पाँचवे तलाक के लिए। मैं क्यों अपनी पार्टनर को मेरे साथ रहने की ज़िद करूंगा और क्यों किसी की ज़िद के चलते किसी के साथ खुद रहना चाहूंगा। मैंने अपनी पार्टनर से हमेशा कहा है कि मेरी कोशिश रहेगी कि मैं हर अच्छे-बुरे में उनके साथ रहूं, फिर भी कभी उन्हें ऐसा लगे कि नहीं कुछ और है जो उनका इंतज़ार कर रहा है तो वे मुझे छोड़कर जाने के लिए हमेशा स्वतंत्र हैं। उसकी कोस्ट ब्रेकअप हो चाहे फिर तलाक, उससे क्या फर्क पड़ता है?

कमिटमेंट साथ रहने के लिए नहीं, बल्कि इस बात के लिए होनी चाहिए कि दोनों के लिए जो बेस्ट डिसीज़न होगा वो लेंगे। कई बार बेस्ट डिसीज़न साथ रहने की बजाय अलग-अलग रास्ते चुनने का साथ देते हैं। इसलिए फॉएवर शब्द में बुनियादी खोट है। ये प्रेम में चुनने और अपने आप को करेक्ट करने के अधिकार को  कर देता है।

जब दो लोग साथ रहना ही चाहेंगे तो स्वयं ही साथ रहेंगे। उसमें अधिक गणित की आवश्यकता कहां? अगर दोनों में से कोई एक कुछ और सोचता है तो उसे जाने की अनुमति होनी चाहिए। जाना किसी भी कमिटमेंट की परिधि से बाहर रहना चाहिए।

रिश्ते टूटें तो भी प्रेम में विश्वास खोने की ज़रूरत नहीं

इसलिए एकबार लिखा था कि “तुम्हारे मिलने तक मेरा अपराधी होना जारी रहेगा”। मतलब कि जब तक “तुम” न मिलोगी तब तक जितने चाहे ब्रेकअप हों, जितने चाहें तलाक हों, वे होंगे ही। टीना और अतहर के मामले में भी मेरा यही मत है। उन्हें प्रेम में अपना विश्वास खोने की ज़रूरत नहीं है। इस तलाक के बाद भी उन्हें फिर एक नई कहानी का इंतज़ार करना चाहिए।

फिर किसी के प्रेम में पड़ना चाहिए, फिर किसी के साथ की सेल्फियों पर लिखना चाहिए “Forever”। अगर किसी चीज़ से नहीं डरना चाहिए तो वह है ‘छूटने’ से। इस तलाक के बाद भी उन्हें दूसरे तलाक से डरने की ज़रूरत नहीं है और तब तक डरने की ज़रूरत नहीं है, जब तक कि कोई ऐसा मिल जाए जो तुम्हारे फॉएवर कहने के बाद हमेशा के लिए तुम्हारे साथ रह जाए।

तलाक हो चाहे ब्रेकअप, पहला हो चाहे चौथा, एक महीने का हो चाहे 6 साल पुराना, हर रिश्ता टूटने पर अपने हिस्से का दर्द देकर जाता है। मगर मिलने-बिछुड़ने में जो छटपटाती सी देह है वही ज़िंदगी है। इसका अपना ही सुख है, अपना ही संगीत है पर इसपर कैसा दुखी होना? इसे सेलिब्रेट करने की ज़रूरत है। एक कहानी खत्म हुई, दूसरे दिन दूसरी कहानी शुरू होगी, फिर घबराना कैसा? हरिवंश राय बच्चन ने भी तो कहा है-

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहां मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उसपर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियां
मुर्झाई कितनी वल्लरियां
जो मुर्झाई फिर कहां खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई…

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