आज बिहार दिवस पर सभी लिख रहे हैं कि गर्व है बिहार पर। माफ कीजिये पर मैं जितना देख पा रहा हूं इतिहास छोड़कर पूरा वर्तमान और आनेवाला निकट भविष्य केवल अंधकार ही दिख रहा है। वैसे आपने भी केवल लिखा ही है क्योंकि बिहारियों में बिहारी अस्मिता होती ही नहीं है। सभी अपनी-अपनी जाति पर गर्व करते हैं। बिहारी होने से पहले सबकी अपनी-अपनी जाति आड़े आ जाती है।
देश का एक राज्य जो हर तरह के प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होते हुए भी आज एक बीमारू राज्य है। जातिवाद में आकंठ डूबा यह राज्य भूखों और नंगों का एक ऐसा राज्य है जो सबसे उपजाऊ होने के बावजूद न ढंग का कृषि प्रधान है और न कोई उद्योग धंधा है।
यहां चिकित्सा व्यवस्था इतने निम्न स्तर का है कि दिल्ली सरकार कहती है कि बिहारी दिल्ली आकर उनके अस्पताल भर देते हैं। राज्य में कोई एक ढंग का सरकारी अस्पताल नहीं है। अगर कोई गहन बीमारी हो तो लोग दूसरे राज्य भागते हैं।
यहां शिक्षा व्यवस्था इतने निम्न स्तर का है कि पूरे देश का शिक्षा व्यवसाय हमारे छात्रों पर जी रहा है। कॉलेज छोड़िए, कॉलेज में प्रवेश की तैयारी की पढ़ाई के लिए भी कोटा जाना पड़ता है। दशकों हो गए जब कोई परीक्षा कदाचार मुक्त हुई हो। मैट्रिक परीक्षा से लेकर पीएचडी तक भ्रष्टाचार है। पीएचडी कराने के लिए अध्यापक 5 से लेकर 6 लाख लेते हैं।
रोजगार का तो मामला यह है कि दिल्ली में ऑटो ड्राइवर से लेकर हर फैक्ट्री का मजदूर बिहार से जाता है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक बिहार का मजदूर ही मिलेगा। कई राज्य तो हमारे लोगों को पटक-पटककर मारते हैं।‘बिहारी’ पूरे देश में गाली के रूप में प्रयुक्त होता है। अगर कोई बीमार राज्य का उदाहरण देता है तो कहता है कि एकदम बिहार समझ लिए हो का?
दिल्ली में किसी को गाली देकर बुलाना हो तो कहते हैं अरे बिहारी। मुंबई वाले भईया कहकर मजाक उड़ाते हैं। इसके बावजूद आप को लिट्टी चोखा और लुंडी सुतरी पर इतराना है तो इतराईये।