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जब चुनावी रैलियों में लाखों की भीड़ जुटाई जा सकती है, तो हमारा कैंपस क्यों नहीं खुल सकता?

जरा सोचिये कि क्या सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के इतने महान बल्लेबाज बन पाते, अगर उन्होंने क्रिकेट की बारीकियां ऑनलाइन कंप्यूटर के सामने बैठ कर सीखी होती? क्या साइना नेहवाल लंदन ओलंपिक का खिताब जीत पातीं, अगर उन्होंने कोर्ट के बजाए बैडमिंटन प्रैक्टिस कंप्यूटर पर की होतीं? नहीं ना?

मगर देश में ऐसे भी कुछ संस्थान हैं जो अपने छात्रों को प्रैक्टिकल कोर्सेज़ भी 13 बाई 15 इंच के लैपटॉप स्क्रीन पर सिखाते हैं। ऐसा ही एक संस्थान है “भारतीय जनसंचार संस्थान”। जो अपने छात्रों को ऑनलाइन माध्यम से पत्रकारिता का गुर सिखा रहा है। जिस पत्रकारिता कोर्स की बुनियाद ही ‘समाज, संवाद और कैंपस है’, आज उस कोर्स को बंद कमरे में सिखाया जा रहा है।

ऑनलाइन क्लास का विरोध करने पर IIMC प्रशासन ने छात्रों को मीटिंग से निकाला

कोई भी शिक्षण संस्थान वहां के शिक्षक और छात्रों के बीच संवादों से मिलकर बनता है। परंतु यदि शिक्षा बीरबल की खिचड़ी की तरह आग से दूर पेड़ पर टंगी हांडी पर पकाई जाय तो उस शिक्षा का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। इसपर यदि छात्र ऑनलाइन क्लास का शांतिपूर्वक विरोध भी करें तो संस्थान द्वारा उन्हें क्लास से बाहर निकाल देना उनके साथ नाइंसाफी ही है।

भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) हर हफ्ते शुक्रवार संवाद का आयोजन करता है। शुक्रवार संवाद आईआईएमसी द्वारा चलाया जाने वाला एक प्रोग्राम है, जिसमें हर हफ्ते ऑनलाइन क्लास में एक मुख्य अतिथि आते हैं जो छात्रों से संवाद करते हैं। इनमें अधिकतर केंद्रीय मंत्री या ब्योरोक्रेट शामिल होते हैं। बीते शुक्रवार को भी इसका आयोजन हुआ।

इस बार के शुक्रवार संवाद में मुख्य अतिथि थे केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और विषय था ‘भारत की जल संस्कृति’। इस बार का शुक्रवार दिन कई मायनों में खास था। इस शुक्रवार को छात्रों के पहले सेमेस्टर का आखिरी दिन था और छात्र काफी दिनों से ऑफलाइन क्लासेज़ की मांग कर रहे थे। हर बार आईआईएमसी प्रशासन कोई न कोई बहाना बनाकर बात को टाल देता है।

प्रशासन से कोई उचित जवाब न मिल पाने के कारण अधिकतम छात्रों ने शांति पूर्ण प्रदर्शन करते हुए अपने ऑनलाइन क्लास की DP (डिस्प्ले पिक्चर) पर एक काले पोस्टर पर #reopencampus लिखा फोटो लगाया था। छात्रों का यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन प्रशासन को इतना ना-गवार गुजरा की पहले तो उन्होंने ऑनलाइन चलते क्लास से छात्रों को बाहर कर दिया। फिर कई अकाउंट को ब्लॉक भी कर दिया। छात्र क्लास से बाहर थे और मंत्री जी का संवाद चल रहा था।

कैंपस में जब सारे काम होते हैं तो फिर हमारी क्लास क्यों नहीं हो सकती?

ये पूर्ण संभावित है कि मंत्री जी की नज़र उन हैशटैग लगी काली DP पर ज़रूर गई होगी। मगर उन्होंने किसी रटे हुए एग्जाम पेपर की तरह अपना भाषण पूरा किया और चलते बने। मंत्री जी बंगाल चुनाव में वोट बटोरने में इतने व्यस्त हैं कि उन्होंने छात्रों से उनके विरोध का कारण भी जानना उचित नहीं समझा। सवाल ये भी है कि मंत्री जी पूछते भी तो क्या?

वो जानते थे की उनके सवाल से पहले ही छात्रों का जवाब उनको रशीद हो जाएगा। जिस कोरोना का डर दिखाकर सरकार देश भर के शिक्षण संस्थानों को बंद कर रखी है, वही सरकार कोरोना से बेखबर हर राज्यों के चुनाव में जीत के लिए गली-गली घूमकर वोट मांग रही है। ये कितना हास्यास्पद है कि इस देश में सिनेमाहॉल, रेस्टोरेंट सब खुल सकता है सिवाय शिक्षण संस्थानों के। चुनावी रैलियों में लाखों की भीड़ जुटाई जा सकती है मगर दो सौ-ढाई सौ की संख्या वाले छात्रों का कॉलेज नहीं खुल सकता।

आईआईएमसी प्रशासन का छात्रों को चलती कक्षा से इस तरह से बाहर करना उसकी असंवेदनशीलता को दर्शाता है। सवाल पूछना हर छात्र का अधिकार है परंतु इसके चलते क्लास से बाहर निकाल देना किसी भी अर्थ में सही नहीं है। छात्रों के आगमन की बात को संस्थान कोरोना का डर बता अपने जिम्मेदारियों से हर बार मुकरता रहा है परंतु उसी संस्थान में आये दिन कोई न कोई आयोजन होते रहते हैं।

फिर चाहे वो अलुमिनी मीट हो या कोई पब्लिक प्रोग्राम। कैंपस में रोज़ टीचर, अधिकारी, कर्मचारी, कैंटीन वाले, कार्यरत मजदूर, कैंपस के गार्ड्स लोग बाहर से आते हैं, परंतु संस्थान को डर सिर्फ छात्रों से है। इसपर प्रशासन छात्रों की समस्याएं सुनने की बजाये उनसे गलत तरीके से पेश आ रहा है।

बहुत देर तक ऑनलाइन क्लासेज़ एटेंड करना काफी मुश्किल

गौरतलब है कि कोरोना महामारी के कारण आईआईएमसी प्रशासन द्वारा पहले सेमेस्टर की क्लास को ऑनलाइन चलाने का फैसला किया गया था। पहला सेमेस्टर मार्च 19 तारीख तक चलना था। पांच महीने चले इस पहले सेमेस्टर में काफी दिक्कतों के बावजूद सभी छात्रों ने जैसे-तैसे कक्षाएं की। महामारी के चलते अचानक से शुरू हुई ऑनलाइन पढ़ाई एक बड़ी चुनौती है। कुछ तो मानसिक समस्या के चलते, कुछ संसाधनों के कमी के चलते।

 

आठ घंटे तक लैपटॉप के स्क्रीन पर टक-टकी लगाये रखना सरदर्द सा बन जाता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि आईआईएमसी में दाखिला लेने वाले में उन छात्रों की भी एक बड़ी संख्या है जिन्होंने लोन लेकर आईआईएमसी की मोटी फीस को भरा है। साथ ही कई छात्र ऐसे भी हैं जिनके पास खुद का लैपटॉप तक नहीं है, जिसके चलते उन्हें बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

ये छात्र इसलिए भी कैंपस खुलवाने के लिए संघर्ष कर रहे कि कैंपस खुलने से उनकी तकनीकी समस्या शायद कम हो जाए। उन्होंने जिस कोर्स को सीखने के लिए इतनी मोटी रकम संस्थान में जमा की है, आखिर उस पैसे का कुछ तो उपयोग हो उनके कुछ सीखने में?

 

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