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नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष आखिर क्यों कमज़ोर पड़ जाता है?

मेरा उद्देश्य किसी भी धर्म जाति की विचारधारा को ठेस पहुंचाना नहीं है बल्कि देश को सच्चाई से रूबरू कराना है। आज हम देख पा रहे हैं कि देश के अंदर नरेंद्र मोदी या भाजपा को चुनौती देने की शक्ति कोई नेता नहीं कर पा रहा है और न जनता किसी नेता को उस काबिल समझ रही है। इसको गहराई से जानने के लिए जमीनी हकीकत से रूबरू होना आवश्यक है। आइए देखते हैं ऐसा क्यों ?

विपक्ष के अंदर वैचारिक तालमेल की कमी

देश की तस्वीर साफ-साफ सबके सामने है कि गरीब, दलित, पिछड़ा, आदिवासी, मजदूर, किसान ही विपक्षी पार्टियों का वोट बैंक रह गया है। मगर फिर भी सभी पार्टियां प्रतिनिधित्व के मामले में आपको सवर्णों पर आश्रित दिखेगी जिसकी विचारधारा भाजपा की विचारधारा से मेल खाता है। चाहे आप कांग्रेस में देख लीजिए या अन्य विपक्षी पार्टियों में।

गाँव से लेकर राज्य तक के संगठनों में आपको उच्च जातियों के पदाधिकारी की संख्या हमेशा ज़्यादा मिलेगी। यही कारण है कि नरेंद्र मोदी यानी भाजपा का विरोध जमीनी स्तर पर कहीं नजर नहीं आता है। इसलिये कि अन्य पार्टियों में भी बैठे हुए लोग भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से तालमेल बैठाकर अपने लोगों को गुमराह करने का कार्य कर रहे हैं।

इसका सीधा उदाहरण समझिए कि जब कोई विपक्षी पार्टी का बड़ा नेता यानी राष्ट्र अध्यक्ष कोई फैसला लेता है, तो उसको सब को मानना चाहिए तब जाकर पार्टी व संगठन जमीनी स्तर पर तैयार होता है। लेकिन जब बड़ी बड़ी विपक्षी पार्टियों ने सीएए और एनआरसी का विरोध खुले तौर पर किया उसके बावजूद कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों के पदाधिकारियों ने जो कि उच्च वर्ग से आते हैं उन्होंने इसका समर्थन किया।

देश के अंदर ये विचारधारा तेजी से फैलाने का कार्य हो रहा है जिसे विपक्षी पार्टियां इसलिए नहीं समझ पा रही हैं, क्योंकि उनको अपने वोटर को प्रतिनिधित्व देना ही नहीं आ रहा है। या शायद वो भी यही चाहते हैं कि वर्चस्व देश के अंदर एक ही विचारधारा का बना रहे।

सही मुद्दों पर सरकार को घेरने में विफल

विपक्षी पार्टियां अपना मुद्दा तैयार नहीं कर रही हैं। जनता के हितों वाले मुद्दों की जगह ऐसी चीज़ों पर सरकार से बहस कर रही है जिससे लगता है कि दोबारा सरकार में आना इनके लिए तो फिलहाल बहुत मुश्किल है। आपको ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे। आप CAA NRC का मुद्दा ले सकते हैं। इस मुद्दे को भारतीय जनता पार्टी अपनी कई नाकामियां छुपाने के लिए लेकर आई जिसपर राजनीति हो सके और उनकी यह मंशा विपक्षी पार्टियों ने पूरी कर दी।

देश के अंदर से जब राम मंदिर जैसा मुद्दा सुलझ गया तो अब दूसरा मुद्दा जो लाया गया है, वह है CAA और NRC, जिसमें विपक्ष बुरी तरह फंसता चला गया। देश की भावनाओं को, युवाओं की भावनाओं को, किसानों की भावनाओं को एवं तमाम जमीनी हकीकत से जुड़ी भावनाओं को अगर विपक्ष पार्टी समझती तो आज देश के अंदर यह नौबत नहीं आती। देश में नरेंद्र मोदी के विपक्ष में खड़े होने के लिए कोई नेता ही तैयार नहीं हो पा रहा है।

जब पूरे देश में बेरोजगारी एवं अन्य समस्याओं से देश गुजर रहा था तब कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए जो मुद्दा लाई उसका नाम था राफेल। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने पूरा लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन देश के अंदर तमाम ऐसे मुद्दे थे जिन्हें अहम मुद्दों में तब्दील किया जा सकता था। कांग्रेस गांव-गांव तक राफेल का मुद्दा लेकर गई। आप सोचिए भारत के वे गांव जिन्हें शौचालय में शौच करने के लिए सिखाया जा रहा है उन्हें राफेल किस हद तक समझ में आया होगा?

विपक्ष के पास भाजपा की धार्मिक कट्टरता का काट न हो पाना

भारतीय जनता पार्टी ने जिस प्रकार से देश के अंदर एक धार्मिक डर पैदा कर दिया है उसे हमें समझने की ज़रूरत है। खासतौर पर विपक्षी पार्टियों को। जो व्यक्ति नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में बात करेगा वह सच्चा हिंदू है और जो सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठाएगा वह नकारा हिंदू साबित होगा।

ऐसे कई मामले देश के अंदर सामने आ चुके हैं और यही हकीकत है। अरविंद केजरीवाल को भी आतंकवादी, हिंदू विरोधी और टुकड़े-टुकड़े गैंग का साथी कहा गया। यही मानसिकता जमीनी स्तर तक भी हावी होती जा रही है। जो लोग नहीं करना चाह रहे हैं, उन्हें डर और दबाव के चलते करना पड़ रहा है। जिसमें अहम रोल खास तौर पर मीडिया का भी है।

जनता पर यह दबाव बनाया गया है कि जो भाजपा है, वही हिंदुत्व है। बाकी सब बस दिखावा है। इसका तोड़ निकालने में विपक्षी पार्टियां हमेशा विफल रही हैं।

जनता के मुद्दों पर संघर्ष करके ही मुकाबला संभव

जिस-जिस राज्य के अंदर हिंदू-मुस्लिम करके चुनाव लड़ा गया वह राज्य भारतीय जनता पार्टी ने जीत लिया और जिस राज्य में मुद्दों पर चुनाव लड़ा गया वह राज्य भारतीय जनता पार्टी हमेशा हार गई। इसलिये कि जब-जब धर्म जाति के ऊपर चुनाव लड़ा गया तब-,तब विपक्षी पार्टियों में बैठे तमाम पदाधिकारियों ने भाजपा का साथ देने का कार्य किया है।

आखिर में मैं यही कहना चाहूंगा कि देश के अंदर अगर धर्मनिरपेक्षता को कायम रखना है तो सबको समान अवसर देकर ही रखा जा सकता है। ना कि एक जाति और धर्म विशेष की विचारधारा को देश के अंदर फैलाकर। विपक्षी पार्टियों को उनके असली वोटर को प्रतिनिधित्व देना ही होगा एवं पार्टी के मुद्दों से हटकर जनता के मुद्दों पर संघर्ष करना होगा। नहीं तो भाजपा का मुकाबला न आज संभव है और न कल होगा।

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