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बच्चों की परवरिश और संस्कृति बचाने का जिम्मा अकेले महिलाओं पर ही क्यों?

किसी राज्य का मुख्यमंत्री अगर खुले मंच से औरतों के पहनावे पर टिप्पणी करते हुए संस्कृति की बात करे, तो इससे यह समझ लेना चाहिए की हम एक समाज के तौर पर अभी भी कितने गर्त में हैं। जहां आये दिन महिलाओं के साथ हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, वहां इस बात पर चिंता जाहिर करने की बजाय औरतों की फटी जीन्स पहनने पर चिंता व्यक्त की जा रही है।

जी हां! हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की। जिनके एक बयान से सोशल मीडिया पर भुचाल सा आ गया है। बीते बुधवार को उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान बोला कि फटी जीन्स पहनी हुई माएं अपने बच्चों को कैसा संस्कार देंगी? उनके इस संस्कार वाली बात का पुरजोर तरीके से विरोध हुआ।

मुख्यमंत्री के बयान का सोशल मीडिया पर पुरजोर विरोध

हम उस देश में रहते हैं, जहां एक फटी हुई जीन्स, ब्रा की दिखती स्ट्राप और अपनी आज़ादी और सहूलियत के कपड़े पहन घुमती हुई औरतों को देख समाज की आबरू तार-तार हो जाती है। जिस समाज में आए दिन औरतों को घरों में पिटा जाता है और सड़कों पर उनके जिस्म को नोच खाया जाता है, वहां औरतों के फटे जीन्स पहनने से समाज की संस्कृति खतरे में आ रही है।

सीएम ने राज्य में एक चाइल्ड सब्स्टेंस अब्‍यूज़ वर्कशॉप को संबोधित करते हुए यह विवादित टिप्पणी की थी। तीरथ सिंह ने एक महिला की पोशाक के बारे में विस्तार से वर्णन किया जो एक उड़ान में उसके बगल में बैठी थी। उन्होंने कहा कि महिला ने खुद को एक एनजीओ कार्यकर्ता के रूप में पहचाना और अपने बच्चों के साथ यात्रा कर रही थी।

उन्होंने कहा:

”एक बार जहाज में जब बैठा तो मेरे बगल में एक बहनजी बैठी हुईं थीं। मैंने उनको देखा तो नीचे गमबूट थे। जब और ऊपर देखा तो घुटने फटे हुए थे हाथ देखे तो कई कड़े थे। जब घुटने देखे और दो बच्चे साथ में दिखे तो मेरे पूछने पर पता चला कि पति जेएनयू में प्रोफेसर हैं और वो खुद कोई एनजीओ चलाती हैं। जो एनजीओ चलाती हैं, उनके घुटने दिखते हैं। समाज के बीच में जाती हो। बच्चे साथ में हैं। क्या संस्कार दोगी?”

सीएम के इस बयान के आते ही सोशल मीडिया पर तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गईं। ट्विटर पर हैशटैग रिप्ड जींस ट्रेंड कर गया जिसपर आम जनों के साथ सेलीब्रिटीज़ ने भी ट्वीट करना शुरू कर दिया।

संस्कृति को बचाने का जिम्मा अकेले महिलाओं पर ही क्यों?

यहां इस बात को समझते हैं कि आखिरकार कपड़ों पर हुई टिप्पणी को इतना तुल क्यों दिया जा रहा है? हमारे सामाजिक परिवेश में बच्चे पालने की ज़िम्मेदारी से लेकर घर संभलने तक का सारा बोझ औरतों के कंधे पर लाद दिया गया है। अगर बच्चा कुछ अच्छा करता है तो उसके पिता को शाबाशी मिलती है। मगर वहीं उसने कोई गलती कर दी फिर सीधे उसकी मां पर सवाल उठा दिया जाता है।

फटी जीन्स और संस्कारों की बात की शुरुआत भी यहीं से होती है। साथ ही साथ इस मानसिकता को समझना ज़रूरी है कि आखिरकार संस्कृति, इज्ज़त, परवरिश, धरोहर, संस्कार इत्यादि की बातों का बोझ महिलाओं के उपर ही क्यों डाला जाता है? बच्चों की परवरिश और संस्कृति को बचाने का जिम्मा अकेले महिलाओं के हिस्से क्यों आया है? इनमें पुरुषों की भागीदारी पर कभी सवाल क्यों नहीं उठाया जाता है?

इसका एक ही जवाब है।

हम एक ऐसे स्त्रीद्वेषी समाज में रहते हैं जहां छेड़खानी तो लड़के करते हैं लेकिन स्कूल से नाम लड़कियों का कटा दिया जाता है। पितृसत्तात्मक समाज की संरचना ही ऐसी होती है जहां सदियों से औरतों के हिस्से क्षोभ और प्रताड़ना के सिवा उन्हें कुछ नहीं मिलता है, जहां अपने बेसिक अधिकारों के लिए भी उन्हें सड़क पर उतरना पड़ता है।

घर से बाहर तक जिम्मेदारी साझा करने से समाज का उत्थान होता है

इस मुद्दे पर विरोध करने वालों की प्रतिक्रिया भी समाज की दोहरी मानसिकता को दर्शाती है। लोगों ने सीएम के विरोध में उनकी बेटी की जीन्स और शॉर्ट्स की तस्वीर लगाकर अपना विरोध जताना शुरू कर दिया। विरोध जताने के लिए भी आखिरकार एक लड़की की ही ज़रूरत पड़ रही इस समाज को।

सीएम की बेटी की तस्वीर का इस्तेमाल किए बिना भी लोग अपनी बात रख सकते थे लेकिन औरतों के शरीर का इस्तेमाल किये बिना विरोध जताना अभी तक हमारे समाज ने नहीं सीखा है और यह घटना इस बात का सबूत है। हमारे समाज में पति को परमेश्वर मानने की जो संस्कृति है, उस वजह से पति के कारनामों को दरकिनार करते हुए उनका बचाव करने का भी प्रचलन है।

इसी फेहरिस्त में अब उत्तराखंड के सीएम की बीवी का नाम भी जुड़ गया है। सीएम की बीवी अपने पति के बचाव में उतरकर संस्कृति और धरोहर को बचाने की बात की है। उन्होंने कहा कि

“हम भारत में रहकर भी अपनी वेशभूषा और आचार विचार की बात नहीं करेंगे तो क्या विदेश में करेंगे? सामान्य और मीडिल क्लास व्यक्ति अपनी सांस्कृति धरोहर को बनाए रखने में सक्षम है। जो लोग हो हल्ला कर रहे हैं वे एलीट क्लास हैं, उन्हें हमारी जन समस्याओं से सरोकार नहीं है।”

सीएम साहब को ऐसे बयान देने पर ठहर कर यह सोचने की ज़रूरत है कि ऐसे बयान देने के पीछे की मानसिकता क्या है और इसे किस प्रकार से काउन्टर किया जा सकता है? आखिरकार कोई एक बच्चे के पिता से यह सवाल क्यों नहीं करता है कि वो जिंस पहनकर बच्चों को अच्छी परवरिश देंगे या फिर धोती पहन कर? इस बात को समझने की ज़रूरत है कि घर से बाहर तक जिम्मेदारी साझा करने से समाज का उत्थान होता है, ना कि औरतों के सर पर नैतिकता का बोझ डालकर।

इसके साथ ही कपड़े पहनने और अपनी मर्ज़ी से जीने की आज़ादी की बात से उठकर यह सोचने का वक्त है कि आखिरकार आज भी हमारे देश में दलित और अल्पसंख्यक महिलाओं की क्या स्थिति है? और किस प्रकार के मुद्दों को उठाकर उनकी ज़िन्दगी में बेहतर बदलाव लाया जा सकता है?

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