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वर्क फ्रॉम होम : बढ़ता वर्क लोड और घटती प्रॉडक्टिविटी के साथ स्वास्थ्य समस्याएं

कोरोना महामारी के कारण देशभर में लगे व्यापक लॉकडाउन को लगभग एक वर्ष पूरा हो गया है। ऐसे में लोग अपनी अच्छी और बुरी दोनों अनुभवों को याद कर रहे हैं। उन अच्छी और बुरी यादों से प्रत्येक व्यक्ति उबर गया है लेकिन एक अनुभव ऐसा है जो अब भी लोगों का साथ छोड़ने को तैयार नहीं है और वो अनुभव है वर्क फ्रॉम होम का।

बढ़ता वर्क लोड और स्वास्थ्य समस्याएं

वर्क फ्रॉम होम लॉकडाउन के शुरुआत में बेहद आरामदायक और सुखी रखा। ऑफिस वर्क के साथ-साथ एक्सरसाइज़, कुकिंग आदि सब चलने लगा। वो कहते हैं न कि सब बस एक वेकेशन का इंतज़ार कर रहे थे। बस ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल रही थी तो वर्कफ्रॉम होम ने ये सपना भी पूरा कर दिया।

पूरा लॉकडाउन बेहतर गुज़र रहा था। रोज़ का वही सेम रूटीन उठो, बनाओ-खाओ और काम पर लग जाओ। ना बाहर जाने की टेंशन और ना ही किराए और बस की चिक–चिक। लेकिन कहते हैं न कि बॉस को इम्प्लाई का आराम से काम करना कहां पसंद होता है? तो बस वर्क फ्रॉम होम के नाम पर एक्स्ट्रा टारगेट दिया जाने लगा। वक्त–बेवक्त ऑफिस मीटिंग्स होने लगीं। इससे किराए के पैसे तो बचने लगे लकिन वर्किंग आर्स और टारगेट बढ़ते चले गए।

जहां एक्सरसाइज़ करना शुरू किया था वहां एक्सट्रा वर्क लोड के कारण सारा दिन स्क्रीन के सामने बेठने के कारण तकलीफें शरीर में शुरू हो गईं। आंखों में दर्द, शरीर में दर्द और मोटापा तो जैसे दोस्त बन गए। बॉस को जब याद आता तब ही कॉल आ जाता। मी-टाईम तो जैसे खत्म ही हो गया और प्रॉडक्टिविटी तो ज़ीरो हो गई।

वर्क फ्रॉम होम को वर्क कल्चर का हिस्सा बिल्कुल नहीं बनाया जा सकता

वर्क फ्रॉम होम के नाम पर काम बढ़ना तो सम्स्या रहा ही, साथ ही सोने पर सुहागा तब हो गया जब घरवालों को लगा कि वर्क फ्रॉम होम का मतलब तो छुट्टी हो गया। घर के सदस्य ये चाहत पालने लगे कि घर का काम अब वर्कफ्रॉम होम वाली से ही कराया जाए। तो ये शर्त लगने लगी कि पहले घर का काम निपटा लिया जाए उसके बाद ऑफिस को संभाला जाए। इन दोनों शर्तों के बीच फंसी तो केवल मैं, क्योंकि दोनों ही काम मुझे अति प्रिय और मेरी जिम्मेदारी लगते थे।

कहते हैं न कि अति हर चीज़ की वर्जित है। उसी तरह कुछ ही महीनों में वर्क फ्रॉम होम जाल लगने लगा। एक्सट्रा टारगेट होने के कारण मी–टाईम मिलना बंद हो गया और घर में रहकर भी घर से कटकर रहने लगी। काम करने के लिए वातावरण की भी आवश्यकता होती है, जो कि वर्क फ्रॉम होम के दौरान नदारद ही रहा जिसके कारण प्रॉडक्टिविटी घटती चली गई।

बस फिर क्या हुआ? कुछ ही महीनों में वर्क फ्रॉम होम को कह दिया अलविदा और ऑफिस जाकर काम करने से कर लिया सजदा।

लेकिन अब जब देश में दोबारा लॉकडाउन की संभावना जताई जा रही है ऐसे में वर्कफ्रॉम को दोबारा लागू करने और वर्क-कल्चर का हिस्सा बनाने की सोच भी बेहद मज़ाकिया और निरर्थक है। इससे प्रॉडक्टिविटी तो कम होती ही है, साथ ही व्यक्ति अपने काम और घर में बैलेंस नहीं बना पाता। देश में यदि फिर से लॉकडाउन होता भी है तो वर्क फ्रॉम होम को वर्क कल्चर का हिस्सा कतई नहीं बनाया जा सकता।

 

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