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पाठक की पंडिताइन

पाठक जी बेफिक्र होकर अपना बिजनेस संभालते थे, घर की तो उनको बिल्कुल भी चिंता नहीं थी , क्योंकी उनकी पत्नी ने पुरे घर के साथ उनको भी संभाल रखा था, चाहे उनका सुबह को उठते चाई हो या रात को सोते समय दूध सुबह से लेकर शाम तक का सबकी देखभाल करने कि जिम्मेदारी पंडिताइन ने बहुत अच्छे से संभाल रखी थी।।

 

6 बच्चों की जिम्मेदारी , अरे पाठक जी के माता पिता,  वो भी तो बच्चे ही थे, और पाठक जी के 5 बच्चे जो इतने शैतान की खुद शैतान भी शरमा जाएं, (जोक सपाट के लिए कहा है ये)

 

पाठक जी काफ़ी पढ़े लिखे और सुलझे हुए इंसान थे,

 

वो काम के प्रति बहुत ही जिम्मेदार और निष्ठावान थे।

 

उनके कई गुणों के कारण समाज में उनकी बहुत इज्ज़त थी।

 

सभी उनको बहुत मानते थे ।

उनसे सलाह, मशवरा भी लिया करते थे। इनके बिल्कुल विपरीत थी पंडिताइन , ज़्यादा पढ़ी लिखी तो नहीं लेकिन हा समझदार बहुत थी, किताब पढ़ ना पाए लेकिन रामायण की बहुत सी चौपाई मुंहजबानी याद थी उनको,

घर परिवार , आस पास में बहुत लोग बातें बनाते थे लेकिन कोई फर्क नहीं एक कान से सुन दूसरे से निकाल देती थी।।

 

पाठक जी अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे, और उससे ज़्यादा उनका सम्मान , उनकी पंडिताइन को ज़रा सा भी कोई कुछ भी बोले तो उसकी ख़ैर नहीं समझिए।।

 

बनारस के मैदागिन जगह पर उनका मकान जिसमे पति पत्नी अपने बच्चो के साथ बड़ी ही हंसी ख़ुशी के साथ रहा करते थे,

उनकी गृहस्थी सुखपूर्वक चल रहीं थीं।

 

उनके चार बच्चों में पहली संतान जो लड़की बाकी के 3 लड़के, पढ़ने में सबसे होशियार उनकी बड़ी बेटी ही थी,

बच्चे सभी मां के ज़्यादा करीब थे, जो कुछ उन्हें चाहिए होता, मां के पास ही फरमाइश करते और मां तो उनकी अलादीन के जिन्न से ज़्यादा तेज जो हर फरमाइश को झठ से पूरा कर देती।।

 

पाठक जी कभी कभी पंडिताइन को बोल भी देते थे इतना दुलार प्यार मत दिखाओ लेकीन मां की ममता और प्यार अपार होती है। उसके लिए तो बच्चों की ख़ुशी से बढ़कर कुछ भी नहीं होता है।।

 

धीरे धीरे समय बीतता गया बच्चे बड़े होते गए, बेटी की शादी एक अच्छे से घर में हुई 3 बेटों की भी हो गई, लेकीन कोई भी लड़का योग्य नहीं निकला या यूं कहे कि पिता की कमाई खाने वाले ही निकले।।

पाठक जी कभी कभी चिल्ला उठते लेकीन पंडिताइन उन्हें समझाती अरे बच्चे है जब खुद के बच्चे होंगे तब तक संभल जाएंगे।।

 

पाठक जी ने एक बात हमेशा कहते थे कि अत्यधिक प्रेम इनके प्रगति का अवरोध बन सकता है।।

माता पिता पुत्र की शादी उनकी खुशी , और ज़िम्मेदारी बाटने के लिए किए थे लेकिन उन्हें क्या पता की उनका खुद का घर ही बट जाएगा,

उनकी धर्म पत्नी जिससे संसार में वो सबसे अधिक प्रेम करते है , वो तक उनसे दूर हो जाएगी, ( कहानी अभी बाकि है)

 

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