सत्यार्थी जी का शिष्टाचार
वाक्या नवम्बर माह के सोलह तारीख की है जब कैलाश सत्यार्थी जी लोक-गायिका मालिनी अवस्थी की बेटी की शादी के रिसेप्शन में शामिल हुये थे। वहां एक ऐसी घटना घटित हुई जो मेरे दिल में घर कर गई। मुझे यह एहसास हुआ की सत्यार्थी जी का दिल कितना विशाल है। बुज़ुर्गों के लिए उनके दिल में कितना सम्मान है। उनके लिए शिष्टाचार के मायने कितने बड़े हैं।
सत्यार्थी जी का समारोह में जाना और भीड़ से घिर जाना
सामान्य तौर पर जब सत्यार्थी जी किसी समारोह में शिरकत करने जाते हैं तो उनके प्रशंसकों की भीड़ उनको चारों तरफ से घेर लेती है। वह लोगों के साथ फोटो खिंचवाने, ऑटोग्राफ लेने, उनसे हाथ मिलाने आदि में व्यस्त हो जाते हैं। सत्यार्थी जी खुशी-खुशी सबसे मिलते व फोटो खिंचवाने को कभी मना नही करते। इसीलिए ऐसी जगहों पर वह लोगों के लिये सहज उपलब्ध रहते हैं।
दरअसल बात जिमखाना क्लब की है जहां पर शादी का रिसेप्शन था। हुआ यूं कि जब सत्यार्थी जी समारोह से बाहर जाने के लिये गेट पर पहुंचे तो वहां पहले ही से प्रसिद्ध शिक्षाविद व भाजपा मार्ग-दर्शक मण्डल के सदस्य श्री मुरली मनोहर जोशी जी अपनी गाड़ी का इंतज़ार कर रहे थे । जब सत्यार्थी जी ने सहसा देखा कि मुरली मनोहर जी खड़े हैं तो सत्यार्थी जी अपनी गाड़ी में न बैठकर सीधे जोशी जी से मिलने चले गए। लगभग 20 मिनिट तक उनके साथ खड़े-खड़े बात करते रहे। गेट पर गाड़ियों का जाम लग गया था जिससे जोशी जी की गाड़ी कहीं जाम में फंसी हुई थी। संयोगवश मैं भी उस समय वहां मौजूद था। मुझे वह घटना याद आ गई जो मुझे मेरे एक मित्र ने सन 2000 के दशक में बताई थी, जो एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन में काम करता था।
यह घटना दक्षिण अफ्रीका के सेनेगल में U.N High Level Group On Education की बैठक के दौरान घटित हुई।
इस बैठक में विश्व बैंक के अध्यक्ष, सनेगल के राष्ट्रपति, कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष व शिक्षा मंत्री तथा सत्यार्थी जी शामिल हुये थे। सत्यार्थी जी उस बैठक में सिविल सोसाइटी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। भारत की तरफ से तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी प्रधानमंत्री वाजपेयी के प्रतिनिधि के रूप में शामिल हो रहे थे। गौरतलब है कि श्री मुरली मनोहर जोशी जी अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में मानव संसाधन मंत्री रहे थे। जिस कारण वह शिक्षा के मुद्दों पर होने बाली अंतेर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में भी जाते रहते थे।
ऐसा कई बार हुआ कि सत्यार्थी जी व जोशी जी ने ऐसी कई कोन्फ्रेंस एक साथ अटेंड कीं।
कई बार तो सत्यार्थी जी को बाल-अधिकार कार्यकर्ता होने तथा उनके व्यक्तिगत संबंध अंतर्राष्ट्रीय जगत में प्रगाढ़ होने की वजह से ऐसे अवसरों पर किसी भी भारतीय से अधिक महत्व दिया जाता था। उपरोक्त परिदृश्य में जोशीजी, सत्यार्थी जी के साथ कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं होना चाहते थे। क्योंकि संभवत जोशी जी को ऐसा महसूस हुआ था कि उनको सत्यार्थी जी से कम महत्व दिया जा रहा है। जबकि वह भारत सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। जिसकी शिकायत जोशी जी ने दबी ज़ुबान में आयोजकों से भी की थी। इससे पूर्व जोशी जी ने एक चिट्ठी यूनेस्को को लिखी थी कि श्री सत्यार्थी को किस हैसियत से इस मीटिंग में बुलाया जा रहा है? बाद में ऐसी ही खबर अखबार में भी छपी थी।
जब डाक्टर जोशी असहज हो गए
जब बैठक शुरू हुई तो मुरली मनोहर जोशी जी को सत्यार्थी जी के पीछे की सीट पर सेकंड राउंड में बैठाया गया। क्योंकि जोशी जी प्रधानमंत्री वाजपेयी के प्रोक्सी थे जबकि सत्यार्थी जी सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि के रूप में पहले राउंड की सीट पर बैठे थे। इससे डॉक्टर जोशी काफी असहज लग रहे थे। यह बातवतब की है जब सत्यार्थी जी को नोबल शांति पुरुष्कार नहीं मिला था।
भोजन हेतु सत्यार्थी जी को सेनेगल के राष्ट्रपति के साथ मुख्य टेबल पर बैठाया गया जबकि जोशी जी को दूसरी टेबल पर बैठाया गया। सत्यार्थी जी ने जब देखा कि हमारे देश के वरिष्ठ मंत्री अलग बैठे हैं तो वह तुरंत राष्ट्रपति की मेज से उठकर जोशी जी की मेज पर खाना खाने आ गए। इस घटना को सुनकर मैं मन ही मन, सत्यार्थी जी की महानता का गुणगान करने लगा। सत्यार्थी जी धन्य हैं कि जोशी जी के बारे में सब कुछ जानते हुये भी उन्होने देश का और उनका मान बढ़ाया।
बात असल मुद्दे पर
जैसा कि मैंने पहले बताया है कि सत्यार्थी जी की गाड़ी सामने खड़ी थी लेकिन सत्यार्थी जी अपनी गाड़ी में न बैठकर सीधे मुरली मनोहर जोशी जी से मिलने चले गए। जहां पर वह अपनी कार का इंतज़ार कर रहे थे। सत्यार्थी जी जोशी जी के साथ खड़े होकर बात करते रहे। जब जोशी जी को को इस बात का अंदाज़ हुआ कि सत्यार्थी जी उनके कारण इतनी देर से खड़े हुये हैं। उन्होंने सत्यार्थी जी से आग्रह किया कि वह अपनी गाड़ी में बैठ जाएं लेकिन सत्यार्थी जी ने मुरली मनोहर जोशी से कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है जब तक आप खड़े हैं मैं नहीं जाऊंगा। हुआ भी यही। जब जोशी जी की गाड़ी आ गई और वह गाड़ी में बैठ गये तभी सत्यार्थी जी अपनी गाड़ी में बैठे।
कहने का मतलब यह है कि श्री कैलाश सत्यार्थी नोबेल विजेता होने के कारण महान नहीं बने हैं बल्कि अपने आचरण, व्यवहार, विचार, शिष्टता और बातों से महान बने हैं। उनके जीवन से संबंधित कई ऐसी घटनाएं हैं जो बहुत ही प्रेरक हैं। वह किसी भी बात का गिला-शिकवा नहीं रखते। कोई खलिश उनके मन में नहीं रहती। उन्हें किसी से कोई नहीं रहता। इसकी झलक श्री मुरली मनोहर जोशी के प्रति किए गए उनके व्यवहार में देखी जा सकती है।
-शिव कुमार शर्मा