Site icon Youth Ki Awaaz

क्या ऐसे समय में ऑनलाइन माध्यम, चुनाव प्रचार और मतदान का विकल्प नहीं हो सकता?

खबर आई कि कोरोना के वैक्सीन बना लिए गए हैं। ऐसा लगा था कि भारत सामान्य अवस्था में पहुंच रहा है। धीरे-धीरे सरकार ने सारी पाबंदियों को हटाना शुरू किया। जनता भी बेखौफ होकर घुमने लगी। नतीजा वही हुआ, जो होना था।

दूसरी लहर में पूरी ताकत से लौटा कोरोना

अचानक से कोरोना महामारी अपनी पूरी ताकत के साथ लौट आई। अचानक ही अस्पतालों में बेड कम पड़ने लगे। अचानक ही ऑक्सीजन के सिलिंडर की कमी महसूस होने लगी। अचानक ही कोरोना की रफ्तार दिन प्रतिदिन बढ़ती ही चली गई। अभी अप्रैल 2021 का ही महीना चल रहा है और स्थिति ये है कि दवाइयों की किल्लत हर जगह महसूस की जाने लगी है।

अपने आस-पास चारों तरफ कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इस भयावह स्थिति में राज्य सरकारें जो कुछ कर सकती थीं, कर रही हैं। अलग-अलग राज्यों में कर्फ्यू लगने लगे हैं। फिर वाहनों की आवाजाही पर रोक लगाई जा रही है। बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली और राजस्थान आदि अनेक राज्यों में राज्य सरकारों ने कर्फ्यू लगा दिए हैं।

दिल्ली सरकार ने तो एक सप्ताह के लिए पूर्ण तरीके से कर्फ्यू की घोषणा कर दी है। अब देश की स्थिति चिंताजनक होने लगी है। यहां तक कि प्राइवेट गाड़ियों में भी मास्क नहीं पहनने पर चलान कटने लगे हैं।

देश में खौफ के बीच बंगाल में चुनाव

एक तरफ तो पूरे देश में इतनी भयावह स्थिति है, तो वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल है, जहां ऐसा लग रहा है कि कोरोना का कोई खौफ ही नहीं है।

चुनाव प्रचार में बड़ी-बड़ी रैलियां निकाली जा रही हैं। पक्ष और विपक्ष, दोनों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। ये बात ठीक है कि स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए चुनाव होने ज़रूरी हैं लेकिन सवाल ये है कि क्या मतदाताओं के जीवन की कीमत पर? या कोई बीच का रास्ता नहीं हो सकता है?

कुछ सालों पहले की बात है कि सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों को हर साल सम्बंधित कार्यालय में जाकर अपने जीवित होने का प्रमाण देना पड़ता था। सेवानिवृत कर्मचारी के जीवित होने के प्रमाण मिलने पर हीं पेंशन जारी रह पाता था। अब समय बदल गया है। अब जीवित रहने का प्रमाण पत्र मात्र आधार कार्ड और अंगूठे के निशान द्वारा दिया जाता है।

जब सेवानिवृत कर्मचारी अपना आधार कार्ड और मोबाइल नंबर डालकर अपने अंगूठे से स्वयं को सत्यापित कर देता है, जो उसी क्षण उसे जीवित होने का प्रमाण पत्र मिल जाता है और फिर उसकी पेंशन जारी रह पाती है।

ऑनलाइन वोटिंग सिस्टम क्यों नहीं?

इसी तरह की व्यवस्था सरकार को वोटिंग में भी करना चाहिए। इतनी बड़ी-बड़ी रैलियों को करने की क्या ज़रूरत है?

आज कल के सोशल मीडिया के ज़माने में सारा प्रचार तो डिजिटली किया ही जा रहा है। फिर कोरोना काल में जनता के जीवन के साथ खिलवाड़ क्यों? सरकार यदि आरोग्य सेतु जैसा एप्पलीकेशन बना सकती है तो फिर वो वोटिंग के लिए इस तरह का एप्पलीकेशन क्यों नहीं बनाती?

जिस तरीके से जीवित प्रमाण पत्र के लिए सेवानिवृत कर्मचारी को अपना आधार कार्ड, मोबाइल नंबर डालकर स्वयं के अंगूठे से स्वयं को सत्यापित करना पड़ता है ठीक उसी तरह की व्यवथा ऑनलाइन वोटिंग के लिए भी हो सकती है। यदि ऑनलाइन वोटिंग की व्यवस्था हो जाए तो बड़े, बुजुर्ग या बाहर रहनेवाले मतदाता सारे अपने मताधिकार का प्रयोग बड़ी आसानी से कर पाएंगे।

एक बात और कि इस ऑनलाइन वोटिंग में मतदाता को सर्टिफिकेट ज़रूर दिया जाना चाहिए ताकि उसे पता रहे कि उसका वोट किसको गया है? इससे चुनावी प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं होगी । यदि इस तरीके की ऑनलाइन वोटिंग की व्यवस्था हो जाए तो सरकारी खर्चे में भी कमी आएगी और कोरोना से लड़ने में भी आसानी होगी।

Exit mobile version