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“महामारी के बजाय हमारे देश में मनोरंजन बना कोरोना”

"महामारी के बजाय हमारे देश में मनोरंजन बना कोरोना"

भारत में ज्ञानचंदों की कोई कमी नहीं है, यहां आपको यूनिवर्सिटी और कॉलेज से ज्यादा ज्ञान चाय और पान की दुकानों पर मिल जाएगा। मार्च, 2020 में जब कोरोना से पहली बार भारत का सामना हुआ था, तो तमाम अनुमान और शोधपत्र जारी किए गए की कोरोना गर्म वातावरण में बेअसर हो जाता है और वह टेंपरेचर बढ़ते ही तड़प कर मर जाएगा, कुछ विशेषज्ञों ने बताया कि ठंड में इसके बढ़ने के आसार बहुत ज़्यादा हैं।

हालांकि, यदि बहुत ज़्यादा ठंड पड़े तब भी ये ठंड से सिकुड़कर मर जाएगा। कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा था कि ताली बजाने से जो ऊर्जा उत्सर्जित होती है, उसकी गर्मी से कोरोना जलकर मर जाएगा। हालांकि, इन सब शोधपत्रों को पढ़ने के बाद मुझे भी उम्मीद हो गई थी कि इतने गहन विचारकों के रहते कोरोना भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है और उसका अंत तो सुनिश्चित है।

लेकिन, उसी बीच इन समस्त शोधछात्रों के आदर्श माननीय सरकार ने सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा करके इनके उन्मुक्त विचारों से देश को लाभान्वित होने से रोक लिया जिसका परिणाम हुआ कि पूरे देश को एक लंबे समय तक घरों में बंद पड़े रहकर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से ही अपना शोधकार्य पूर्ण करना पड़ा। उसी बीच कोरोना के प्रभाव को रोकने के लिए कई दवाओं और वैक्सीन का असफल प्रयास किया गया। लेकिन, भारत में लोग अत्यधिक मिलनसार स्वभाव के होने के कारण कोरोना से भी मित्रता कर लिए और ऐसा माहौल बना दिए की अब वो एलियन की भांति पृथ्वी छोड़कर जा चुका है। अब उससे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है।

आखिर कैसे फिर से कोरोना ने जन्म ले लिया

इसके बाद खूब धड़ल्ले से शादियां, रैलियां और मस्तियां हुईं, लेकिन कोरोना ने कोई महाभारत तो देखी नहीं थी जो कर्ण की भांति अपने दोस्तों का साथ निभाता, उसने बिना किसी को खबर किए फिर हमारे देश में अपना धावा बोल दिया और इस बार पहले से भी ज्यादा आक्रामक रूप में धावा बोला है। कोरोना जब पहली बार भारत दर्शन को आया था, तो उस समय एक राग मीडिया ने खूब अलापा था कि कोरोना को जमातियों ने फैलाया है, वो भी इस प्रकार से जैसे मानो जमातियों ने ही कोरोना को दूसरे ग्रह से लाकर पूरे भारत में छोड़ दिया हो।

हालांकि, इसके बाद चीज़ें कई प्रकार से बदलीं और लोगों को ज्ञात हुआ कि जमातियों की पकड़ केवल भारत और पाकिस्तान तक ही नहीं है, लेकिन कोरोना से प्रभावित पूरी दुनिया है, तो यह जमातियों वाली बात में कोई विशेष दम नहीं है फिर सरकार के तामीरदारों के द्वारा तमाम प्रकार की बातें जनता के बीच फैलाई गईं, ताकि अपनी और सरकार की वास्तविक असफलताओं को छुपाया जा सके।

सरकार की असफलता तो कहीं जनता की लापरवाही को बताया जा रहा है कारण

अभी ताजा मामले कोरोना की दूसरी लहर से हैं, जो अब पहले से भी खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है। जहां एक दिन में रिकार्ड तो़ड डेढ़ लाख से ऊपर पॉजिटिव लोग पाए जा रहे हैं और हज़ारों की संख्या में मौतें हो रही हैं।जिसमें सबसे बुरी हालत महाराष्ट्र की है जहां हर रोज़ लगभग साठ हजार पॉजिटिव लोग पाए जा रहे हैं और चार पांच सौ लोग जिंदगी का साथ छोड़ रहे हैं। कोरोना के पुनः वापसी और इस प्रकार विकराल रूप धारण करने के पीछे मूल कारण क्या हैं?

ये तो किसी को नहीं मालूम हैं, लेकिन धीरे-धीरे इस मुद्दे को लेकर राजनीति शुरू हो चुकी है। जहां देश के अन्य कई हिस्सों में चुनावी सरगर्मी है, वहां जमकर भीड़ जुटाई जा रही है। उस इलाके में कोरोना जैसी कोई भी संक्रामक बीमारी का प्रभाव नहीं है तथा चुनावरहित अन्य भागों में कहीं आंशिक लॉकडाउन तो कहीं नाइट कर्फ्यू लगाकर बढ़ते कोरोना के प्रभाव को रोकने की कोशिशें की जा रही हैं।

गैर भाजपा शासित राज्यों के तरफ से आरोप लगाए जा रहे हैं कि केंद्र सरकार उनकी अनदेखी कर रही है और हमें सुविधाओं से वंचित रख रही है इसलिए कोरोना फैल रहा है, तो कहीं लोगों की लापरवाही को प्रमुख कारण बताया जा रहा है।

जमातियों के बाद प्रवासी मज़दूर बने कोरोना वाहक

यहां तक कि अपनी लापरवाही को छिपाने और दोष दूसरों के सिर मढ़ने के चक्कर में राज ठाकरे ने तो सारी हदें लांघ कर इतना तक कह दिया की महाराष्ट्र में बढ़ते कोरोना मामलों का मुख्य कारण प्रवासी मज़दूर हैं, जो दूर-दूर से आए हैं और पूरे महाराष्ट्र में कोरोना फैलाए हुए हैं। हालांकि, इस प्रकार का यह कोई पहला बयान नहीं है जो ठाकरे परिवार के तरफ से जारी किया गया है उनका राजनैतिक इतिहास ही यही रहा है कि वो दबों कुचलों को और दबाकर अपना वर्चस्व कायम किए हैं और आज सत्ता भी हासिल कर चुके हैं।

वर्तमान समय में जबकि सत्ता से सवाल पूछना गुनाह माना जा रहा हो उस समय में यह ज़रूरी हो जाता है कि गुनहगार बनकर भी सवाल पूछा जाए, क्योंकि लोकतांत्रिक देश में अलोकतांत्रिक सराकरें लोकतंत्र की नींव को ही खोखला करती हैं फिर उसके बाद सारे सवाल और सारी जतन व्यर्थ हो जाते हैं। इसलिए यह ज़रूरी है कि ऐसे अलोकतांत्रिक बयानों को सिरे से खारिज किया जाए और सरकार से सवाल किए जाएं।

प्रवासी मज़दूरों की आड़ में अपनी नाकामी छिपाती महाराष्ट्र सरकार

हां, यह सच है कि प्रवासी मज़दूरों का एक बड़ा समूह बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और अन्य राज्यों से रोज़गार की तलाश में महाराष्ट्र और गुजरात के लिए रवाना होता रहा है और आकस्मिक लॉकडाउन में कोसों की दूरी पैदल तय करने के बाद भी फिर से हिम्मत करके जीविकोपार्जन हेतु पुनः उन्हीं बड़े शहरों की ओर वे रुख किए हैं।लेकिन, इसका यह कतई मतलब नहीं है कि वे कोरोना वाहक बनकर गए हैं।

यात्राएं शुरू की गईं हैं तो वो सरकारों के सहमति से की गई हैं, यात्राएं बंद भी की गईं तो सरकारों की सहमति से की गई। ऐसे में इस प्रकार के बेतुके बयानों से साफ तौर पर जाहिर होता है कि इनके मन में वंचितों के प्रति सहानुभूति के बजाय नफरत का विष भरा पड़ा है, जो समय-समय पर निकलता रहता है। यदि इस बात में तनिक भी सच्चाई है कि प्रवासी मज़दूरों ने कोरोना वाहक का काम किया है तो फिर आप सत्ता में बैठकर क्या कर रहे थे? क्यों माहौल बनाया कि कोरोना जा चुका है? क्यों गाड़ियों को ठूंस-ठूंसकर भरकर चलाना शुरू किया? क्यों बहुतायत में सस्ते मज़दूरों को यूपी बिहार से मंगाया गया? ये दोमुंहा होना बिल्कुल भी सही नहीं है कि सब कुछ स्वयं कर के गलतियों को दूसरे के सर मढ दिया जाए। जिनके खून-पसीने से ये आप बड़ी-बड़ी इमारतें देख रहे हैं जब बात इनके वजूद की आ जाएगी तो ये उन्हीं इमारतों को खाक भी कर सकते हैं।

सत्ता वंचितों और शोषितों का शोषण करके ही चलती है, लेकिन यही शोषण एक दिन सत्ता के अंत का कारण भी बनता है। खैर, लोकतांत्रिक देशों की सभी लोकतांत्रिक सरकारों को कोरोना महामारी से विधिवत निपटने के लिए बधाई, यही कार्यप्रणाली आपकी सरकार के ताबूत में कील ठोकेंगी।

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